नीतीश लेंगे अब चिराग से बदला

नीतीश लेंगे अब चिराग से बदला

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया था। रामविलास पासवान उस समय बीमार पड़ गये और चुनाव के दौरान ही उनका निधन भी हो गया। पार्टी की बागडोर चिराग पासवान पहले से संभाले थे और उनका ही यह फैसला था। मजे की बात यह कि चिराग सिर्फ नीतीश का विरोध कर रहे थे और भाजपा का पूर्व की भांति समर्थन करते हुए अपने को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान बताते थे। इस राजनीतिक तमाशे से बिहार की जनता भी नाराज हो गयी और लोजपा को सिर्फ एक विधायक मिल पाया। चिराग पासवान की पार्टी ने नीतीश कुमार के वोटों का बंटवारा कर दिया। माना जाता है कि इसके चलते नीतीश कुमार की 25-30 सीटें कम हो गयीं। इस तमाशे के पीछे भाजपा का भी हाथ रहा और विधानसभा चुनाव में उसे फायदा भी मिला। नीतीश कुमार उस समय तो कुछ नहीं बोले लेकिन अब चिराग पासवान को सबक सिखाना चाहते हैं। उधर, जद(यू) को संगठित करने के लिए नीतीश ने आरसीपी सिंह को अपना उत्तराधिकारी बना दिया है।

बिहार में कुछ माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड सीटों के मामलों में विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बाद तीसरे स्थान पर फिसल गई थी। बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन से नीतीश कुमार सरकार बचाने में सफल रहे। जेडीयू को कई सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की वजह से हार मिली। अब लगता है सीएम नीतीश चिराग पासवान से बदला लेने के मूड में है।

नीतीश कुमार एलजेपी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह को अपने पाले में करने की कोशिश में लगे हैं। राजकुमार सिंह ने गत दिनों नीतीश के करीबी मंत्री अशोक चौधरी से उनके आवास पर पहुंचकर मुलाकात की। हालांकि, राजकुमार सिंह ने नीतीश की पार्टी में शामिल होने की अटकलें खारिज करते हुए कहा कि चौधरी से उनके पुराने संबंध हैं। एलजेपी के इकलौते विधायक से जब यह पूछा गया कि चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर रहते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि आप उनकी बात मेरे मुंह में मत डालिए। राजकुमार सिंह ने दावा किया कि वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि कौन से एनडीए में हैं नीतीश वाले में अथवा चिराग वाले में? इसके जवाब में राजकुमार सिंह ने कहा कि बिहार में एनडीए अभी नीतीश कुमार का है।


राजकुमार सिंह ने जेडीयू में शामिल होने की अटकलें खारिज तो कीं, लेकिन एनडीए को नीतीश का बताकर और हवा भी दे दी। राजकुमार सिंह के इस बयान के मायने लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में वे एलजेपी छोड़कर जेडीयू का दामन थाम सकते हैं। दरअसल, वे अशोक चैधरी के घर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरीके से चिराग पासवान, सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रहे। उसके बाद उनके इकलौते विधायक का मंत्री अशोक चैधरी के कार्यक्रम में शामिल होना कई मायनों में अहम माना जा रहा है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक जमा खान जेडीयू में शामिल हो गए थे। उन्हीं के साथ निर्दलीय विधायक सुमित सिंह ने भी जेडीयू की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। ऐसे में संभावना यही जताई जा रही है कि आने वाले कुछ दिनों में सीएम नीतीश, चिराग को झटका दे सकते हैं।

बिहार चुनाव के बाद जेडीयू में बदलाव की बयार शुरू हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी और सांसद आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कमान संभालने के बाद आरसीपी सिंह ने संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव शुरू कर दिया है। संगठन को मजबूत बनाने और नेताओं को जमीनी स्तर से जोड़ने के लिए पार्टी अध्यक्ष के निर्देशों पर सभी जिलाध्यक्षों को बदल दिया गया है। पार्टी अध्यक्ष ने अब सभी जिलों की जिम्मेदारी चुनाव हारने वाले मंत्री और विधायकों को सौंप दी है। आरसीपी सिंह ने पूर्व मंत्री संतोष निराला और पूर्व विधायक राहुल शर्मा जैसे कद्दावर नेताओं को भी अब जिला अध्यक्ष बना दिया है। जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा किये गये इस बड़े फेरबदल से पार्टी नेताओं में हलचल मची हुई है। प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने सभी जिलाध्यक्षों की सूची जारी कर दी है। इस सूची को देखा जाये, तो कई ऐसे नाम शामिल हैं, जिन्हें चुनाव में करारी शिकस्त मिली थी।

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का राजनीतिक उत्तराधिकारी राज्यसभा में संसदीय दल के नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह हैं। यह बात जेडीयू के किसी दूसरे नेता ने नहीं कही बल्कि नीतीश कुमार ने खुद पार्टी कार्यकर्ताओं से कही है कि उनके बाद सब कुछ आरसीपी सिंह ही देखेंगे। बिहार चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि अंत भला तो सब भला, ये अंतिम चुनाव है। हालांकि बाद में कहा कि वो अंतिम चरण का चुनाव था, इसलिए ऐसा कहा था, लेकिन अब नीतीश ने खुद ही अपना सियासी वारिस के तौर पर आरसीपी सिंह के नाम का संकेत दिया है।


शरद यादव के बाहर होने के बाद से आरसीपी सिंह जेडीयू में नंबर दो की सियासी हैसियत वाले नेता माने जाते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वो खासमखास माने जाते हैं और साये की तरह साथ रहते हैं। कहा जाता है कि बिहार में शायद ही ऐसा कोई फैसला हो, जो नीतीश कुमार ने बिना आरसीपी सिंह की सलाह के लिया हो। आरसीपी सिंह सिर्फ नीतीश कुमार के राजनीतिक, रणनीतिकार और सियासी सलाहकार ही नहीं बल्कि उन्हीं के कुर्मी समुदाय से आते हैं। बिहार के नालंदा जिले के मुस्तफापुर में 6 जुलाई 1958 को जन्में आरसीपी सिंह के पिता का नाम स्वर्गीय सुखदेव नारायण सिंह था। माता का नाम स्वर्गीय दुख लालो देवी।

आरसीपी सिंह की शुरुआती शिक्षा हाई स्कूल, हुसैनपुर, नालंदा और पटना साइंस कॉलेज से हुई। बाद में जेएनयू में पढ़ने के लिए गए। राजनीति में शामिल होने से पहले आरसीपी सिंह प्रशासनिक सेवा में रहे। उत्तर प्रदेश कैडर से आईएएस रहे, वो रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर और फतेहपुर के जिलाधिकारी रहे। इस दौरान आरसीपी सिंह की सपा के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा से नजदीकियां बढ़ी। इस तरह के अनुभवी व्यक्ति को नीतीश ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया है। (हिफी)

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