UP में विधायक राजभर का निधन - रहे चुके थे विधानसभा अध्यक्ष

UP में विधायक राजभर का निधन - रहे चुके थे विधानसभा अध्यक्ष

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायक सुखदेव राजभर का लंबी बीमारी के बाद सोमवार शाम यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह करीब 70 वर्ष के थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत तमाम राजनीतिक हस्तियों ने राजभर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। आजमगढ़ जिले की दीदारगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुखदेव राजभर ने हाल ही में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुये बसपा से किनारा कर लिया था।

मुख्यमंत्री योगी ने ट्वीट किया " उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष एवं माननीय विधायक श्री सुखदेव राजभर जी का निधन अत्यंत दुःखद है। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति।"

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा " अत्यंत दु:खद। यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ राजनेता श्री सुखदेव राजभर जी का निधन अपूरणीय क्षति। शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना, दिवंगत आत्मा को शांति दे भगवान! 'सामाजिक न्याय' को समर्पित आप का राजनीतिक जीवन सदैव प्रेरणा देता रहेगा। विनम्र श्रद्धांजलि।"

पांच सितम्बर 1951 को आजमगढ़ जिले के बडगहन गांव में जन्मे श्री राजभर ने पांच बार विधानसभा की दहलीज लांघी। वह लालगंज क्षेत्र से तीन बार और दो बार दीदारगंज क्षेत्र के विधायक चुने गये। मायावती सरकार के कार्यकाल में वह 2007-2012 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे।

उन्होने लालगंज विधानसभा चुनाव से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और मात्र 24 मतों से जीत हासिल की। इसके बाद वह 2002,2007 में उन्होने चुनाव जीता मगर 2012 में उन्हे सपा उम्मीदवार के हाथों हार का सामना करना पडा। वर्ष 2017 के चुनाव में उन्होने पिछली हार का बदला लेते हुये एक बार फिर दीदारगंज का प्रतिनिधित्व किया था। वह बसपा में पार्टी संगठन और सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे।

हाल ही में उन्होने बसपा से किनारा कर लिया था जिसके बाद उनके सपा में शामिल होने के कयास लगाये जा रहे थे। उन्होने अपने पुत्र कमलाकांत को सपा की सदस्यता दिलायी थी। उनका एक पत्र वायरल हुआ था जिसमें लिखा था कि उन्होने हमेशा शोषित, वंचित, दलित और पिछड़े वर्ग के हक की लड़ाई लड़ी है। वर्तमान परिस्थितियों में इस वर्ग के हक की आवाज को दबाया जा रहा है। ऐसे में बहुजन मूवमेंट और सामाजिक न्याय कमजोर पड़ रहा है। स्वास्थ्य ठीक न होने से समाज की लड़ाई में समुचित योगदान नहीं दे पा रहा हैं।

वार्ता

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