भारत के इतिहास में तोड़-मरोड़

भारत के इतिहास में तोड़-मरोड़

लखनऊ। इतिहास हमारा बीता हुआ कल है और हमारा सनातन धर्म व वैदिक साहित्य जब हमारे शौर्य, शालीनता और सद्चारित्रता की गाथाएं सुनाता है, तब इतिहास में कायरता, कलुष और कदाचार की बातें कहां से आ गयीं, यह सोचने की बात तो है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गत दिनों असम सरकार के दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में यह सवाल गंभीरता से उठाया कि हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा क्यों गया? हमारे इतिहास के साथ पक्षपात क्यों किया गया? विशेष रूप से मुगलकालीन इतिहास में अकबर को महान कहकर राणा प्रताप की वीरता की उपेक्षा की गयी। उन्होंने 17वीं शताब्दी के अहोम जनरल लचित बार फुकन का जिक्र करते हुए कहा कि लचित ने सरिया घाट के युद्ध में मुगलों को परास्त किया था। इसी प्रकार 150 साल से ज्यादा शासन करने वाले 30 साम्राज्यों के इतिहास को हमारे देश की नयी पीढ़ी नहीं पढ़ पा रही है। इसलिए जरूरत है कि इतिहास को फिर से लिखा जाए और देश के गौरव को बढ़ाने वालों की अमर गाथा विस्तार से सुनी और सुनाई जाए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर यह बात कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने इतिहास को भूल जाता है, वह अपने भूगोल को कभी सुरक्षित नहीं रख सकता। इसलिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इतिहास को लेकर जो बात दिल्ली के सम्मेलन में कही है, उस पर अमल करने में भी देरी नहीं होनी चाहिए। केन्द्र में भाजपा की सरकार है और लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक कानून पारित कराने में सरकार को कोई दिक्कत भी नहीं है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इतिहासकारों से कहा है कि इतिहास को भारतीय संदर्भ में दोबारा लिखें, और उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार उनके प्रयासों को पूरा समर्थन देगी। असम सरकार के दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा, मैं इतिहास का विद्यार्थी हूं, और कई बार सुनने को मिलता है कि हमारा इतिहास सलीके से प्रस्तुत नहीं किया गया, तथा उसे तोड़ा-मरोड़ा गया है। शायद यह बात सच है, लेकिन अब हमें इसे ठीक करना होगा 17वीं शताब्दी के अहोम जनरल लचित बारफुकन की 400वीं जयंती पर आयोजित तीन-दिवसीय समारोह के दूसरे दिन केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा, मैं आपसे पूछता हूं - हमारे इतिहास को सही तरीके से और गौरवशाली तरीके से प्रस्तुत करने से हमें कौन रोक रहा है। बारफुकन की याद में 24 नवंबर को लचित दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा, मैं यहां मौजूद सभी विद्यार्थियों और यूनिवर्सिटी प्रोफेसरों से आग्रह करता हूं कि हमें इस चीज को लोगों के दिमाग से बैठालना होगा कि हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है, और उन्हें भारत के किसी भी भाग में 150 वर्ष से ज्यादा शासन करने वाले 30 साम्राज्यों और मुल्क की आजादी के लिए संघर्ष करने वाली 300 हस्तियों पर शोध करनी चाहिए। विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित इतिहासकारों और विद्यार्थियों को आश्वस्त करते हुए अमित शाह ने कहा कि केंद्र उनकी शोध को पूरा समर्थन देगा। उन्होंने कहा, आगे आइए, शोध कीजिए और इतिहास को दुरुस्त कीजिए। इसी तरह हम अपनी अगली पीढ़ियों को प्रेरणा दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों के वृहद लाभ के लिए इतिहास को दोबारा समझे और देखे जाने का वक्त आ गया है। मुगल साम्राज्य के विस्तार को रोकने में लचित की भूमिका का उल्लेख करते हुए अमित शाह ने कहा कि उन्होंने (लचित ने) सरियाघाट के युद्ध में अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद मुगलों को परास्त किया।

अमित शाह ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर भारत तथा शेष भारत के बीच मौजूद रही दूरी को पाट दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार के प्रयासों की बदौलत पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित हुई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से आग्रह किया कि लचित बारफुकन की पुस्तकों का कम से कम 10 भाषाओं में अनुवाद करवाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश को लचित के साहस और बहादुरी के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

पूर्वोत्तर में मुगलों को धूल चटाने वाले लचित बोरफुकन अपने जज्बे के लिए जाने जाते थे, जिन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था।ं लचित बोरफुकन को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है ऐसा किस लिए कहा जाता है। वो इससे पता चलता है लचित ने मुगलों को कई बार धूल चटाई और हमेशा युद्ध में हराया। लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उस पर फिर से अपना कब्जा कर लिया था और मुगलों को गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था। इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ सराईघाट की लड़ाई लड़ी थी। इस युद्ध में मुगल सेना ने 1,000 से अधिक तोपों के अलावा बड़े स्तर पर नौकाओं का उपयोग किया था, लेकिन फिर भी लचित की रणनीति के आगे उनकी एक नहीं चली थी। उन्होंने शिवाजी की तरह मुगलों की कई बार रणनीति फेल की थी और युद्ध के मैदान में हराया था। गुवाहाटी पर मुगलों का कब्जा होने के बाद लचित ने शिवाजी की तरह ही उनको बाहर निकाला था।मुगलों को हराने वाले लचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय की याद में हर साल असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। लचित के नाम पर नेशनल डिफेंस एकेडमी में बेस्ट कैडेट गोल्ड मेडल भी दिया जाता है, जिसे लचित मेडल भी कहा जाता है।

लचित बोरफूकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। इन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध में अपनी सेना का प्रभावी नेतृत्व किया, जिससे असम पर कब्जा करने का मुगल सेना का प्रयास विफल हो गया था। उन्होंने भारतीय नौसैनिक शक्ति को मजबूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा दी थी।

इसीलिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लचित बोरफूकन स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है। इस पदक को रक्षाकर्मियों हेतु बोरफुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था। ऐसे शूरवीर का 25 अप्रैल, 1672 को निधन हो गया। (हिफी)

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