अशक्त कांग्रेस अब भक्त के हवाले

अशक्त कांग्रेस अब भक्त के हवाले

बिहार। कांग्रेस का बिहार कभी मजबूत गढ़ हुआ करता था लेकिन अब वहां पार्टी की हालत बहुत खस्ता हो गयी है। लालू यादव की पार्टी का साथ न मिला होता तो शायद इतने विधायक भी नहीं मिल पाते। कहते हैं ठोकर खाने के बाद लोग संभल जाते हैं लेकिन कांग्रेस को लगता है ठोकरें खाने में ही मजा आता है। नीतीश कुमार को जब मीडिया भी घेर रही है,तब भी कांग्रेस को अपनी कलह से फुर्सत नहीं मिलती। कांग्रेस के नये प्रभारी भक्त चरण दास को अब यह जिम्मेदारी दी गयी है।

बीते बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा था। खराब प्रदर्शन को लेकर पार्टी के अंदर लेटर बम भी फोड़े गए थे। बिहार चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल सहित कई नेताओं ने प्रदर्शन को लेकर सवाल खड़े किए थे। कांग्रेस पार्टी की कार्यशैली को लेकर अंदर-बाहर चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया था। इस बीच कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के दिग्गज कांग्रेसी भक्त चरण दास को बिहार कांग्रेस का प्रभारी नियुक्त किया है। दास ने पहली ही बैठक में बिहार कांग्रेस की गुटबाजी का लाइव टेलिकास्ट अपनी आंखों से देखा है। भक्त चरण दास की मौजूदगी में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच जमकर हाथापाई हुई और कुर्सियां चलीं। इतना ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर प्रत्याशी भी पार्टी मीटिंग से गायब रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में कांग्रेस के दिन अब कब बहुरेंगे?गौरतलब है कि कांग्रेस ने बिहार में 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे केवल 19 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी। इसके बाद से ही संगठन में फेरबदल को लेकर चर्चा काफी तेज थी। अब गोहिल की विदाई के बाद नए प्रभारी भक्त चरण दास के लिए संगठन को मजबूत करने और पार्टी को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती होगी।


बिहार के प्रभारी पद से शक्ति सिंह गोहिल के मुक्त होने के बाद कांग्रेस के 11 विधायकों के एनडीए में जानें के दावे ने हंगामा खड़ा कर दिया है। इस बीच भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ एक साइन बोर्ड पार्टी बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी इस सच्चाई को स्वीकार कर ले तो बेहतर होगा। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन और उसके संगठन के हालात को देखते हुए बीजेपी की तरफ से बड़ा हमला किया गया तो इसके लिए कांग्रेस का प्रादेशिक नेतृत्व जिम्मेवार है।बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा कहते हैं, 'जब थाली ही नहीं तो भोजन क्या परोसा जाए ? कांग्रेस का संगठन, नेतृत्व और विचारधारा तीनों लुप्त हो चुके हैं। कांग्रेस सिर्फ एक साइन बोर्ड पार्टी बनकर रह गई है। वहां प्रभारी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं।

राकेश सिन्हा ने कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र का पराभव होने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सिर्फ परिवार विशेष की पार्टी होकर रह गई है।जनता का आकर्षण, कार्यकर्ताओं का रुझान और विचारों के प्रति स्पष्टता तीनों की कमी के कारण कांग्रेस के प्रभारी अपने-आप को असहाय महसूस करते हैं। उधर, जेडीयू के प्रधान महासचिव के सी त्यागी ने भी कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में हुई गड़बड़ी और उसके बाद आए चुनाव परिणाम के चलते कांग्रेस के भीतर असंतोष है। इसी का यह असर दिखाई पड़ रहा है।

बहरहाल, बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनने के बाद पहली बार भक्त चरण दास अपनी तीन दिवसीय बिहार यात्रा पर जब पटना पहुंचे तो उन्हें अपनी पहली ही बैठक में कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी और अंतर्कलह का पता चल गया। कांग्रेस नेता संजीव टोनी ने दास के सामने जमकर हंगामा किया। दास ने पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं को मीटिंग में बुलाया था। इस मीटिंग में तकरीबन सभी लोग आए लेकिन हाल ही में चुनाव लड़ने वाले 51 प्रत्याशियों में ज्यादातर प्रत्याशी गायब रहे। पार्टी का सिंबल हासिल करने के लिए जो प्रत्याशी पटना से दिल्ली दौड़ लगाते थे, वही प्रत्याशी दास के तीन दिन पटना ठहरने के बाद भी उनसे नहीं मिल सके। हारे हुए 51 प्रत्याशियों में से ज्यादातर प्रत्याशी भक्त चरण दास के बुलाने पर मीटिंग में नहीं आए।

एक बडा सवाल यह पूछा जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस को अब लोग विकल्प क्यों नहीं मानते। सत्तारूढ होना तो दूर की बात है, बिहार में कांग्रेस को अब लोग विकल्प तक नहीं मानते हैं। बिहार में आने वाले दिनों में पंचायत चुनाव होने हैं। पंचायत चुनाव में भी जहां दूसरी पार्टियां रणनीति बनाने मे लग गई है, वहीं कांग्रेस पार्टी में इसको लेकर किसी ठोस रणनीति का अभाव है। बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। इसके पीछे के कारण में लोगों को अब पार्टी प्रभावी विकल्प के तौर पर नजर नहीं आती है। कांग्रेस पार्टी भी इसको समझने को तैयार नहीं है। कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि चुनाव के वक्त दूसरे पार्टी के नेता टिकट लेने जरूर आ जाते हैं, लेकिन जैसे ही जीतते हैं तो मोल-भाव करने लगते हैं। इसके अलावा जो प्रत्याशी चुनाव हार जाते हैं वह अगले चुनाव तक का समय किसी दूसरी पार्टी में ठिकाना तलाशने में लगा देते हैं।

बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा का कहना है कि कांग्रेस पार्टी पिछले 35 सालों से आत्ममंथन तो कर रही है और संगठनात्मक रूप से पार्टी लगातार आगे बढ़ रही है। हम ये भी जान रहे हैं कि गलती कहां हुई और आगे इसमें कैसे सुधार होगा। बीते दिनों जो घटना घटी है उस पर हमने दो-तीन नेताओं पर कार्रवाई की सिफारिश की है। अगर ये लोग पार्टी में हैं तो उनको निकाला जाएगा और अगर पार्टी में नहीं हैं तो फिर उनसे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। हमारे कांग्रेस प्रभारी ने सख्त लहजे में कहा है कि पार्टी में अनुशासन पहली प्राथमिकता है और हमलोग भी उसी पर अमल करेंगे। बिहार के सभी 9 प्रमण्डलों में कांग्रेस प्रभारी की यात्रा होने वाली है। भागलपुर से इसकी शुरुआत होगी। हमलोग बिहार के बेहतर भविष्य के लिए कांग्रेस पार्टी को मजबूत कर रहे हैं।

बिहार चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि सच को स्वीकार करने के लिए कांग्रेस को अब बहादुर होना ही पड़ेगा और ये जितना जल्दी हो जाए उतना अच्छा है। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी कहा था कि यह चुनाव नई दशा बनाम दुर्दशा का चुनाव है लेकिन, यह बात कहीं न कहीं कांग्रेस पर ही फिट बैठ रही है। बिहार के नए कांग्रेस प्रभारी को भी अब गुटबाजी और अंतर्कलह से पार पाना पहली प्राथमिकता होगी। (हिफी)

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