उप चुनाव में कांग्रेस को नये चेहरे की तलाश

उप चुनाव में कांग्रेस को नये चेहरे की तलाश

भीलवाड़ा। राजस्थान में हो रहे विधानसभा उपचुनाव में राजसमंद विधान सभा सीट पर इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस को जनता से बहुत उम्मीदें हैं।

दरअसल इस क्षेत्र में कांग्रेस लगातार तीन विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी है और उसके पास मेवाड़ी रण में लड़ने के लिये क़द्दावर योद्धा फ़िलहाल दिखाई नहीं दे रहा है ।

राजसमंद का लगातार तीन बार राजस्थान विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने वाली भाजपा नेत्री किरण माहेश्वरी की गत दिनो कोरोना संक्रमण से असामयिक मृत्यु हो गयी थी। इस कारण यहाँ रिक्त सीट के लिए उपचुनाव की तैयारियाँ चल रही है ।

उपचुनाव में सहानुभूति की लहर भाजपा को अपने पक्ष में दिखाई दे रही है इसलिए विधायक की विवाहित पुत्री दीप्ति माहेश्वरी यहाँ से भाजपा की स्वाभाविक दावेदार हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का उसे आशीर्वाद प्राप्त है। अपनी माँ की राजनीतिक विरासत वाली सीट पर अपने दावे को मज़बूत करने के लिए दीप्ति ने क्षेत्र में दौरे, उद्घाटन और शोक बैठकों में जाना भी शुरू कर दिया है।

सोशल मीडिया पर 'किरण दीप्ति माहेश्वरी' पेज बनाकर उसने युवाओं को जोड़ रखा है तो अपनी माँ के नक़्शे कदम पर चलते हुये भाजपा के बड़े नेताओं को जन्म दिवस पर बधाई देने और महापुरुषों की जयंती पर उन्हें याद करने के लिए पेज बनाकर फ़ेस बुक पर अपलोड कर रखे है ।

भाजपा से यहाँ टिकिट चाहने वालों की बहुत लम्बी लाईन नहीं है। दीप्ति के अलावा पूर्व सांसद स्व. हरी ओम सिंह के पुत्र कर्मवीर सिंह का नाम भी सुर्ख़ियों में है। उनके लिये क्षेत्र का राजपूत समुदाय गोलबंद है। पर पास की दोनों विधान सभा सीटों नाथद्वारा और देवगढ़ पर भाजपा ने 2018 में राजपूत प्रत्याशी खड़े किये थे और सांसद दिया कुमारी भी इसी वर्ग से है, लिहाजा अन्य जातियों का विरोध होने की सम्भावना जतायी जा रही है। इनके अलावा पूर्व चैयरमेन अशोक रांका, महेन्द्र कोठारी, दिनेश बड़ाला, गणेश पालीवाल, मानसिंह बारहठ, भाजयुमो जिलाध्यक्ष जगदीश पालीवाल के साथ प्रमोद सामर का नाम भी चर्चा में है।

कांग्रेस के दावेदारों में पूर्व नगर परिषद सभापति आशा पालीवाल एक चर्चित चेहरा हैं, जो विधानसभा अध्यक्ष डा. सीपी जोशी के करीबियों में भी शुमार हैं। आशा पालीवाल सीधे चुनाव में नगर परिषद सभापति चुनी गयी थी। उन के पति दिवंगत प्रदीप पालीवाल डॉ सीपी जोशी के बेहद करीबी और राजसमंद कांग्रेस के बड़े नेता थे। उनका कुछ समय पहले बीमारी से निधन हो गया था।

कांग्रेस में डॉ सीपी जोशी के करीबी बड़े मार्बल व्यवसाई महेश लखावत भी चुनाव लड़ने के इच्छुक बताये जा रहे हैं। पंचायत चुनाव में उन्होंने भाजपा के गढ़ से अपनी पत्नी अंजु लखावत को जिला परिषद का चुनाव जिताया हालाँकि अंजु कांग्रेस की ओर से जिला प्रमुख पद का चुनाव भी लड़ी थीं, पर बोर्ड में कांग्रेस का बहुमत नहीं था ।

उपचुनाव में कांग्रेस के टिकिट के लिए पूर्व जिला प्रमुख नारायण सिंह भाटी की भी मज़बूत दावेदारी है। वह 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और किरण माहेश्वरी से करीब 25 हजार मतों से हार गए थे।

सवा दो लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जनमानस की बात करें तो पहली बार हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा से महिला उम्मीदवारों के नामों की ही अटकलें लगायी जा रही हैं। क्षेत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति का मतदाता निर्णायक भूमिका में है। मार्बल की खानें और उदयपुर के नज़दीक होने से यहाँ धनबल भी चुनाव पर बड़ा असर डालता रहा है

राजसमंद के बारे में एक ख़ास बात यह है की यहाँ अब तक हुये 15 विधानसभा चुनाव में आठ बार ग़ैर कांग्रेस विधायक रहे है और इनमे से एक को छोड़कर कोई भी विधायक इस जिले का स्थानीय निवासी नहीं था। कांग्रेस ने भी यहाँ से सात चुनाव जीते है पर उसके सभी विधायक रेलमगरा तहसील के ही जीत का परचम लहरा पाये।

इस जिले के पाँच विधायक सरकार में मंत्री भी बने। कांग्रेस ने राजसमंद में वर्ष 2003 में आख़िरी विधान सभा चुनाव जीता जब उसके प्रत्याशी बंशीलाल गहलोत ने जीत का परचम लहराया। इसके बाद पिछले 15 साल में हुए तीन विधान चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस वापिस नहीं आ सकी। ये तीनों चुनाव दिवंगत किरण महेश्वरी ने बड़े अंतर से जीते थे।

बाहरी प्रत्याशियों को राजसमंद विधानसभा अधिक रास आई है। इनमें 1977 में जीते जनता पार्टी के कैलाश मेघवाल उदयपुर के थे। 1990 और 1993 में विजयी रहे भाजपा के नानालाल वीरवाल चित्तौड़गढ़ जिले के घोसुंडा के रहने वाले थे। वर्ष 2003 में भाजपा से विधायक रहे बंशीलाल खटीक सरदारगढ़ के हैं। इसके बाद के तीन चुनाव जीती किरण महेश्वरी उदयपुर की निवासी थीं। यहाँ की वर्तमान सांसद दिया कुमारी भी जयपुर की हैं।

1952 से अब तक हुए विधानसभा चुनावों में राजसमंद विधानसभा चुनाव में सात बार कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। 1957 और 1962 में निरंजननाथ आचार्य (दो बार), 1967 में अमृतलाल यादव, 1972 और 1980 में नानालाल वीरवाल (दो बार), 1985 में मदनलाल खटीक और 1998 में बंशीलाल गहलोत ने जीत का वरण किया ।

भाजपा ने इस विधान सभा में छह बार जीत हासिल की। 1990 और 1993 में शांतिलाल खोईवाल जीते। वर्ष 2003 में बंशीलाल खटीक और वर्ष 2008, 2013 और 2018 में लगातार तीन बार किरण माहेश्वरी जीती। आपात काल के बाद 1977 में हुये चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार कैलाश मेघवाल ने जीत हासिल की। वर्ष 1952 में पहले चुनाव में यहाँ से कृषक पार्टी के भैरूसिंह ने जीत दर्ज की।

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