नीरज शेखर भाजपा में शामिल

नीरज शेखर भाजपा में शामिल
  • whatsapp
  • Telegram

नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र देने वाले खाटी समाजवादी नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के पचास वर्षीय पुत्र नीरज शेखर भाजपा में शामिल हो गये हैं। नीरज शेखर द्वारा समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा शामिल होने की असल वजह समाजवादी पार्टी द्वारा नीरज शेखर इस बार लोकसभा चुनावों में बलिया लोकसभा सीट से टिकट नहीं दिये जाने को माना जा रहा है। नीरज शेखर इस सीट से 2007 और 2009 में सांसद चुने जा चुके हैं, लेकिन 2014 में नीरज को बलिया से हार का सामना करना पड़ा था।

भाजपा की सदस्य ग्रहण करने से पहल नीरज शेखर आज दिल्ली में भाजपा नेता अनुराग ठाकुर, नीरज शेखर सोमवार देर रात अमित शाह, महासचिव भूपेन्द्र यादव, सांसद निशिकांत दूबे और अनिल बलूनी, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिले थे। उन्होंने कल सोमवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंपा था। नीरज शेखर का राज्यसभा में कार्यकाल अगले साल 25 नवंबर को पूरा होने वाला था। अब बलिया सीट पर उपचुनाव होगा और उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा उन्हीं को अपना उम्मीदवार बनाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चंद्रशेखर पर राज्यसभा के उपसभापति हरिबंश की पुस्तक चंद्रशेखरः द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स का विमोचन करेंगे।

बता दें कि नीरज शेखर की भाजपा में जाने की अटकलों को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने कहा था कि राजनीतिक पार्टी एक ट्रेन की तरह होती है, लोग चढ़ते हैं उतर जाते हैं।

पचास वर्षीय नीरज शेखर दो बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं. 2007 में अपने पिता के निधन के बाद बलिया लोकसभा सीट से वह पहली बार सांसद निर्वाचित हुए थे. 2009 में उन्होंने इसी सीट से दोबारा लोकसभा के लिए जीत हासिल की. इसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में हार जाने के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के लिए नमित किया. उच्च सदन में नीरज शेखर का कार्यकाल नवंबर 2020 में समाप्त होने वाला था।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में हुई करार हार से अभी उबर भी नहीं पाई थी कि सांसद नीरज शेखर ने राज्यसभा और पार्टी से इस्तीफा देकर उसे बड़ा झटका दे दिया है। कभी नीरज शेखर अखिलेश यादव के करीबियों में गिने जाते थे। बता कि बलिया संसदीय सीट से लगातार चंद्रशेखर चुनाव जीतते रहे। वह कभी सपा के सदस्य नहीं थे, लेकिन तत्कालीन सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव उनके खिलाफ कभी अपना प्रत्याशी नहीं उतारते थे। पिछले दिनों राज्यसभा में प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने भी नीरज शेखर के किसी व्यवहार पर बिना शर्त यह कहकर माफी मांगी थी कि घटना के दिन वह सदन में उपस्थित नहीं थे।

सन 2007 के उपचुनाव में नीरज शेखर ने स्वयं को पिता की राजनीतिक विरासत के वारिस के तौर पर तो पेश कर दिया, लेकिन उसी पिता की एक निशानी मिटा दी। नीरज ने चंद्रशेखर की बनाई पार्टी सजपा का सपा में विलय कर दिया था और बरगद के पेड़ की जगह साइकिल के निशान पर चुनाव लड़ा था। चंद्रशेखर की पहचान ऐसे नेता के रूप में होती थी, जिसे शीर्ष से कम मंजूर नहीं होता था। चाहे वह सत्ता हो या संगठन, किसान परिवार में जन्में चंद्रशेखर अपनी इस लाइन पर बरकरार भी रहे। आपातकाल विरोधी लहर में 1977 का चुनाव जीतकर पहली बार बलिया से संसद पहुंचे चंद्रशेखर ने तब जनता दल सरकार में मंत्री पद ग्रहण करने की बजाय पार्टी के अध्यक्ष पद को तवज्जो दी थी। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी बनायी और आजीवन अध्यक्ष रहे। चंद्रशेखर मंत्री बने भी तो सीधे प्रधानमंत्री। उन्हांेने जनता पार्टी का अध्यक्ष रहते हुए कन्याकुमारी से नई दिल्ली के राजघाट तक पदयात्रा निकाल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नींद उड़ा दी थी। देश के आठवें और इकलौते समाजवादी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज के इस कदम से सवाल उठने लगा है कि उन्होंने अपने पिता की जिस समाजवादी खड़ाऊं के साथ राजनीतिक विरासत संभाली थी, वे खड़ाऊं उतारकर कमल की गोद में बैठ गये हैं।

Next Story
epmty
epmty
Top