अटल जी की गंभीर व गुदगुदाती बातें

अटल जी की गंभीर व गुदगुदाती बातें

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री और अजातशत्रु राजनेता पंडित अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म दिन 25 दिसंबर निकट आते ही उनकी याद ज्यादा आने लगती है। अटल जी जैसे नेता तो सर्वकाल प्रासंगिक रहते हैं। लम्बे समय तक वह विपक्ष के नेता रहे लेकिन संसद में उनका भाषण बहुत ही मन लगाकर लोग सुनते थे। वह तीन बार प्रधानमंत्री रहे। इस बीच उनके भाषण कभी गंभीर चिंतन की दिशा देते रहे तो कभी गुदगुदाकर हंसाते भी रहे। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने एक बार अटल जी की आलोचना करते हुए कहा कि वो (अटल बिहारी बाजपेयी) बहुत हाथ हिलाहिला कर बात करते हैं। अटल जी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि 'वो तो ठीक है लेकिन क्या आपने कभी किसी को पैर हिलाकर बात करते देखा हैं....।' इतना सुनते ही सदन के सभी सदस्य खिल खिलाकर हँसने लगे। हंसने वालों में श्रीमती इन्दिरागांधी भी शामिल थीं। अटल जी कभी-कभी सदन को गंभीर भी कर देते थे। सन् 1996 में उनकी सरकार विश्वासमत में एक मत से गिर गयी थी। उस समय उनका भाषण लोकतंत्र को झकझोरने वाला था। अटल जी ही विपक्ष के एक मात्र ऐसे नेता थे जिनको तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने भारत का पक्ष रखने के लिए जेनेवा भेजा था। ऐसे बहु आयामी प्रतिभा के धनी पंडित अटल बिहारी बाजपेयी को उनके जन्म दिन पर हम सभी श्रद्धा के सुमन अर्पित कर कृतज्ञता ज्ञापित करें।

सन् 1975 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी जेल में बंद थे. फिर इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी। उसके बाद सब लोग छूट गये। चुनाव प्रचार के लिए कम वक्त मिला था. दिल्ली में जनसभा हो रही थी। जनता पार्टी के नेता आकर स्पीच देते थे, पर सब थके हुए से लगते थे। फिर भी जनता हिल नहीं रही थी। ठंड थी, बारिश भी हल्की-हल्की होने लगी थी, पर लोग जमे बैठे थे। एक नेता ने बगल वाले से पूछा कि लोग जा क्यों नहीं रहे। बोरिंग स्पीच हो रही है और ठंड भी है। तो जवाब मिला कि अभी अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण होना है। इसीलिए लोग रुके हुए हैं। अटलजी आये। शुरू किया- बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने। खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने। बाद में अटलजी ने बताया कि दूसरी लाइन उन्होंने वहीं पर बना दी थी। जनता मंत्रमुग्ध हो गई थी। इंदिरा गांधी ने एक बार अटल जी की आलोचना की थी कि वो बहुत हाथ हिला-हिलाकर बात करते हैं। अटल जी ने जवाब में कहा कि वो तो ठीक है, आपने किसी को पैर हिलाकर बात करते देखा है क्या? 1994 में यूएन के एक अधिवेशन में पाकिस्तान ने कश्मीर पर भारत को घेर लिया था. प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था भारत का पक्ष रखने के लिए. वहां पर पाक के नेता ने कहा कि कश्मीर के बगैर पाकिस्तान अधूरा है. तो जवाब में वाजपेयी ने कहा कि वो भी ठीक है, पर पाकिस्तान के बगैर हिंदुस्तान अधूरा है। पाकिस्तान के ही मुद्दे पर अटल बिहारी की बड़ी आलोचना होती कि ताली दोनों हाथ से बजती है। अटल जी अकेले ही उत्साहित हुए जा रहे हैं. तो वाजपेयी ने जवाब में कहा कि एक हाथ से चुटकी तो बज ही सकती हैपोकरण परमाणु परीक्षण पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था कि हम क्या आत्मरक्षा की तैयारी तभी करेंगे जब खतरा होगा। पहले तैयारी रहेगी तो ऐसे किसी भी खतरे को टाला जा सकता है। लखनऊ में 5 दिसंबर 1992 को अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बड़ी रैली को संबोधित किया था। अयोध्या में कारसेवा से ठीक एक दिन पहले उस रैली में उन्होंने कहा था, 'वहां (अयोध्या) नुकीले पत्थर निकले हैं। उन पर तो कोई बैठ नहीं सकता तो जमीन समतल करना पड़ेगा। बैठने लायक करना पड़ेगा।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी भारत के 3 बार प्रधानमंत्री रहे. उनकी पूरी राजनीति साफ-सुथरी रही और हर पार्टी के नेताओं से उनके गहरे संबंध रहे। उनकी बोलने की शैली ऐसी थी कि जब वे भाषण देते थे, पूरे सदन की नजरें उनकी ओर होती थीं। सभी लोग ध्यान से उनकी बातें सुनते थे. उनके भाषण का लोग इंतजार करते थे कि वे क्या कहने वाले हैं।

अटल जी का सबसे प्रमुख भाषण 31 मई 1996 को संसद में विश्वास मत पर दिए गए उनके व्याख्यान को माना जाता है। भाषण के दौरान अटल जी ने कहा था- देश आज संकटों से घिरा है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए हैं। जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है। उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने भारत का पक्ष रखने के लिए मुझे विरोधी दल के नेता के नाते जेनेवा भेजा था और पाकिस्तानी मुझे देखकर चमत्कृत रह गए. उन्होंने कहा कि ये कहां से आ गया, क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता ऐसे राष्ट्रीय कार्य में भी सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता। वो हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है। ये हमारी परंपरा नहीं प्रकृति रही है। हम चाहते हैं कि ये परंपरा बनी रहे, ये प्रकृति बनी रहे। सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए..इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। क्या ये आज के वातावरण में कठिन काम नहीं रह गया है. ये चर्चा तो आज समाप्त हो जाएगी..मगर कल से जो अध्याय शुरू होगा, उस अध्याय पर थोड़ा गौर करने की जरूरत है। ये कटुता बढ़नी नहीं चाहिए। मैं नहीं जानता कि यूनाइटेड फ्रंट ने श्री देवेगौड़ा को किस आधार पर अपना चौथे नंबर का नेता चुना। वो यूनाइटेड फ्रंट की फर्स्ट चॉइस नहीं थे। वो तो फोर्थ चॉइस थे। मगर जो इनकी फोर्थ चॉइस है अब वो देश की फर्स्ट चॉइस होने वाली है. मैं समझ सकता था अध्यक्ष महोदय, मेरे मित्रों को समझना चाहिए कि मंे भी निर्वाचित होकर आया हूं। उन्हें ये भी समझना चाहिए कि मैं सबसे बड़ी पार्टी के नेता के नाते राष्ट्रपति महोदय द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त हुआ हूं। 1996 में ही लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था, यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा।

इसी प्रकार 23 अप्रैल 2003 को जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में दिया गया उनका भाषण काफी मशहूर है जिसका चर्चा अभी भी होती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, 'बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।

बीजेपी की 1980 में हुई पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनका भाषण सबसे यादगार माना जाता है। अटल जी ने कहा था, भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। (हिफी)

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