न्यायपालिका पर आस्था व सवाल

न्यायपालिका पर आस्था व सवाल

मशहूर वकील शांति भूषण के बेटे एडवोकेट प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के सामने असमंजस की स्थिति खडी कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने सुप्रीमकोर्ट को राहत देते हुए जुर्माना भरना कबूल कर लिया है। कोर्ट ने भी मात्र एक रुपया जुर्माना लगाया। उन्होंने अपने इस मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यादगार अवसर बताया है। सुप्रीमकोर्ट में वह अवमानना के एक मामले में दोषी पाये गये थे। न्यायाधीशों को भी अपनी सम्पत्ति की घोषणा करने पर मजबूर करने वाले वकील प्रशांत भूषण का विवादों से भी घनिष्ठ रिश्ता रहा है। कानून के अच्छे जानकार होते हुए भी प्रशांत भूषण ने दो महीने पहले देश की न्यायपालिका, मौजूदा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और 4 पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर कुछ आपत्तिजनक ट्विट किए थे। सुप्रीमकोर्ट ने खुद संग्यान लिया। उन्हें दोषी करार दिया गया। ये बातें सिर्फ सजा की नहीं है। ये बात उस कड़े संदेश की है, जो संदेश सुप्रीम कोर्ट से आया है। प्रशांत भूषण जैसे वकील, जो एक तरफ कानून के हिमायती बनते हैं, दूसरी तरफअदालत की अवमानना भी कर रहे हैं। प्रशांत भूषण यह भी कहते हैं कि वह इसी संस्था का सबसे ज्यादा सम्मान करते हैं और संस्था के हित में ही ट्विट किंये थे जिनको न्यायपालिका कीअवमानना बताया जा रहा है। बहरहाल मामला पेंचदार तो है ही, वरना अबतक प्रशांत भूषण जेल जा चुके होते। उन्हें पहले माफी मांगने के लिए दो दिन का समय दिया गया। प्रशांत भूषण ने उसी समय मना कर दिया और कहा माफी नहीं मांगेंगे। उसी समय कहा जा रहा था कि अगर प्रशांत भूषण को गिरफ्तार किया गया तो वे हीरो बन जाएंगे । शायद यही कारण है कि एक बार फिर उन्हें अवसर दिया गया कि सिर्फ एक रुपया जुर्माना अदाकर मामले को रफा दफा करें। इसके लिए भी उनको 15 सितम्बर तक का समय दिया गया ।

सुप्रीम कोर्ट और जजों की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया है। सोमवार 31अगस्त को सजा का ऐलान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूषण ने 15 सितंबर तक फाइन नहीं भरा, तो उन्हें 3 महीने की जेल होगी और 3 साल के लिए प्रैक्टिस पर भी रोक लगा दी जाएगी। अदालत की अवमानना का ये मामला वर्तमान और पूर्व चीफ जस्टिस के बारे में भूषण के विवादित ट्वीट का है। प्रशांत भूषण ने अपमानजनक ट्विट इसी वर्ष लाकडाउन के दौरान किए थे। वकील प्रशांत भूषण ने देश के सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े के खिलाफ ट्वीट किया था, जिस पर स्वतरू संज्ञान लेकर कोर्ट ने ये कार्यवाही की है। इस मामले पर तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। भूषण के खिलाफ यह मामला उनके 2 विवादित ट्वीट से जुड़ा है। एक ट्वीट में उन्होंने पिछले 4 चीफ जस्टिस पर लोकतंत्र को तबाह करने में भूमिका निभाने का आरोप लगाया था और दूसरे ट्वीट में उन्होंने बाइक पर बैठे मौजूदा चीफ जस्टिस की तस्वीर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। गत 28 जून को चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की एक तस्वीर सामने आई थी। इसमें वो महंगी बाइक पर बैठे नजर आ रहे थे। इस तस्वीर पर प्रशांत भूषण ने टिप्पणी की थी कि सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ आम लोगों के लिए बंद कर दिया है और खुद बीजेपी नेता की 50 लाख रुपए की बाइक चला रहे हैं। मध्य प्रदेश के गुना के रहने वाले एक वकील माहेक माहेश्वरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस ट्वीट की जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के बंद होने का दावा झूठा है। चीफ जस्टिस पर किसी पार्टी के नेता से बाइक लेने का आरोप भी गलत है। प्रशांत भूषण ने जानबूझकर तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया और लोगों की नजर में न्यायपालिका की छवि खराब करने की कोशिश की। इसके लिए उन्हें कोर्ट की अवमानना का दंड मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मुकदमा शुरू करने से पहले याचिकाकर्ता को एटॉर्नी जनरल से सहमति लेनी होती है। माहेक माहेश्वरी ने ऐसा नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस पर कहा था, हमने याचिका में बताए गए तथ्यों को देखने के बाद खुद ही इस मसले पर संज्ञान लेने का फैसला लिया है। ऐसे में अब एटॉर्नी जनरल की मंजूरी नहीं है तो भी हम अवमानना की कार्रवाई शुरू कर रहे हैं।

सुप्रीमकोर्ट के जजों ने प्रशांत भूषण के एक और ट्वीट पर भी संज्ञान लिया था। गत 27 जून के इस ट्वीट में भूषण ने लिखा था कि पिछले कुछ सालों में देश में लोकतंत्र को तबाह कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पिछले 4 चीफ जस्टिस की भी इसमें भूमिका रही है। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि पहली नजर में भूषण के दोनों ट्वीट अवमाननापूर्ण लगते हैं। यह ट्वीट लोगों की निगाह में न्यायपालिका खासतौर पर चीफ जस्टिस के पद की गरिमा को गिराने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर कुछ भी कहने से एक आम आदमी सौ बार सोचता है लेकिन प्रशांत भूषण जैसे लोग, किसी के भी खिलाफ, कुछ भी बोलकर, बच जाते हैं । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस देश में इनकी मजबूत लॉबी है और इनकी पहुंच दूर-दूर तक है। इसलिए किसी को कुछ भी कहने, किसी पर भी आरोप लगाने और किसी की भी निष्ठा पर सवाल उठाने में इन्हें किसी प्रकार का डर नहीं हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत ने ये बता दिया कि कानून अंधा हो सकता है, असहाय नहीं है। अगर कोई न्यायपालिका की निष्ठा पर सवाल उठाएगा और न्यायिक व्यवस्था पर जनता के विश्वास पर आघात करेगा तो ऐसा करके वो बच नहीं सकता। अदालत की अवमानना के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने प्रशांत भूषण के पक्ष की दलीलें नहीं मानीं।आम लोगों को भी लगने लगा था कि ऐसे लोगों का कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता और अदालतें भी इनके सामने बेबस हो जाती हैं. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रम को तोड़ दिया है और इस देश की जनता के विश्वास की फिर जीत हुई कि यहां कानून से कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता। अगर ऐसे लोगों में से किसी एक को भी सजा मिलेगी, तो फिर यही लोग भविष्य में अदालतों और संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करना शुरू कर देंगे और अगर सम्मान नहीं करेंगे तो कम से कम इन संस्थाओं का अपमान करने की हिम्मत भी नहीं करेंगे।

वकील प्रशांत भूषण एक गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सी पी आई एल) से जुड़े हैं। उनकी सक्रियता पर सुप्रीम कोर्ट तक ने साल 2016 में सवाल उठाते हुए एनजीओ की ओर से जनहित याचिका दायर करने के तरीके पर आपत्ति जताई थी। जस्टिस लोया मामले में भी प्रशांत भूषण की भूमिका पर जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जतायी थी। साल 2009 में उन्होंने कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की उस याचिका की पैरवी की जिसमें मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को आरटीआई के दायरे में लाया जाए। इसके बाद न्यायाधीशों ने अपने संपत्ति का ब्यौरा इंटरनेट पर दिया था। उनके जनहित याचिकों में, पेप्सी और कोकाकोला जैसी कंपनियों के अपने पेय पदार्थों को लेकर दी जानी वाली चेतावनी न देने और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के खिलाफ याचिका, साल 2011 में सीवीसी में पीजे थॉमस की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका, जैसे कई मामले शामिल हैं। खुद प्रशांत का कहना है कि उन्होंने 500 से ज्यादा जनहित याचिका दायर की हैं। न्यायपालिका संबंधी जनहित मामलों में उनकी सफलता उल्लेखनीय है, जिसमें 2जी स्कैम और राडिया टेप मामले शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि निष्पक्ष और निर्भीक होकर न्याय देने की क्षमता और लोगों का भरोसा ही न्यायपालिका की बुनियाद है। ये बुनियाद तब हिल जाती है, जब कोर्ट का अनादर किया जाता है और अदालत के प्रति अविश्वास पैदा किया जाता है। इससे पूरे न्याय तंत्र पर सवाल उठने लगते हैं। जानबूझकर और दुर्भावना से कोर्ट पर किए गए हमलों से अदालत की गरिमा कम होती है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। (अषोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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