राजनीतिक मंच पर लालू प्रसाद यादव की वापसी - विपक्ष होगा मजबूत

राजनीतिक मंच पर लालू प्रसाद यादव की वापसी - विपक्ष होगा मजबूत

पटना। बिहार में करोड़ों के चारा घोटाले के मामलों में सजायाफ्ता पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को झारखंड हाईकोर्ट से दुमका कोषागार मामले में भी 17 अप्रैल को जमानत मिल गई। इसके साथ ही बिहार की सियासत का पारा चढ़ गया है और इसे राजनीति में लालू यादव की वापसी माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे विपक्ष के हौसले को उड़ान मिल गई, वहीं सरकार को लालू के झटके का भय सताने लगा है।

जेल में रहते लालू प्रसाद ने जिस प्रकार विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सरकार को हिलाने का प्रयास किया था एनडीए उसे भूला नहीं है। इस कारण वो लालू के जमानत पर बाहर आने पर चौकस है। यहां पर ध्यान देने की बात है कि बिहार में सत्ता की कुर्सी के जरूरी अंकों में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं है। सियासी तोड़-फोड़ में मास्टर लालू प्रसाद जेल में रहते जब सरकार को अस्थिर कर सकते हैं, तो बाहर आने के बाद तो वे समय पर सरकार को हिलाने-डुलाने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे। अपनी इसी राजनीति के कारण लालू आज भी सत्ता पक्ष के निशाने पर होते हैं। साथ ही विपक्ष की राजनीति के केंद्र में भी होते हैं। कांग्रेस और वाम दलों समेत विपक्षी दलों की राजनीति लालू की कृपा पर ही टिकी रहती है। मुलायम सिंह यादव को आज भी शिकायत है कि लालू यादव ने ही उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोका और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी लालू यादव की कृपा से मिला था।

इसलिए माना जा रहा है कि लालू के आने से न सिर्फ बिहार में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष एकजुट होगा । बिहार में तो निश्चित तौर पर लालू प्रसाद के जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद बिखरे विपक्ष को एक नई ऊर्जा मिलेगी। तेजस्वी यादव के नेतृत्व को नहीं स्वीकार कर रहे नेता अब लालू के नेतृत्व में बड़े फैसले लेंगे। इसके साथ ही सत्ता पक्ष के खिलाफ लगातार आक्रामक तेजस्वी और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के हमलों को एक नई धार मिलेगी और राजद परिवार को नैतिक बल हासिल होगा। इसका सीधा लाभ बिहार में महागठबंधन को मिलेगा। राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि पार्टी अपने कार्यक्रमों को तेज करेगी और अधूरे काम को हम पूरा कर लेंगे। यह पूछने पर कि कौन सा अधूरा काम, इस पर वे कहते हैं समय का इंतजार करें, आपके इस प्रश्न का भी जवाब मिल जायेगा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा कि कोर्ट के फैसले का हम सम्मान करते हैं। लालू प्रसाद चुपचाप भी अगर हमारे पास बैठेंगे तो विपक्ष को ताकत मिलेगी। कुछ दिनों में आपको इसका असर दिखने लगेगा। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के इकलौते विधायक को नीतीश कुमार ने तोड़ने में सफलता हासिल कर ली है। केन्द्र की राजनीति के समीकरण अभी इस तरह के हैं कि चिराग पासवान तेजस्वी यादव के महागठबंधन में शामिल नहीं हो सकते लेकिन नीतीश कुमार की सरकार को झटके देते रहेंगे। इसलिए लालू यादव उनका सदुपयोग कर सकते हैं।

लालू राजनीति के मास्टर खिलाड़ी माने जाते हैं। लालू प्रसाद पहली बार साल 1990 में मुख्यमंत्री बने, तब किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वे तत्कालीन बड़े नेताओं जगन्नाथ मिश्रा, सत्येंद्र नारायण सिंह, भागवत झा आजाद और रामाश्रय प्रसाद सिंह के रहते अपनी मजबूत जगह बना पाएंगे लेकिन, लालू अपनी राजनीतिक सूझबूझ के कारण शिखर पर पहुंचे। चारा घोटाले में नाम आने पर लालू प्रसाद ने कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी की बात मानते हुए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर सभी को चैंका दिया था। इसके बाद वे पर्दे के पीछे से अपनी राजनीति करते रहे। इस दौरान वे केंद्र में भी सक्रिय रहे। लालू की राजनीति पर साल 2005 में तब ग्रहण लगा था, जब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्घ्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई सरकार का गठन हुआ लेकिन लालू ने संकट को अवसर में तब्दील किया और बिहार के बदले दिल्ली को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। राजनीति में लालू का दबदबा बाव पर ही लालू प्रसाद यादव ने जद यू की सरकार बचायी थी। बिहार में इसी के बाद महागठबंधन बना और। लालू यादव कांग्रेस से बराबर जुडे हुए हैं।

इस प्रकार नीतीश से लालू ने दोस्ती कर बिहार में भाजपा के विजय रथ पर ब्रेक लगा दिया। एक नया समीकरण बनाया और बिहार में नीतीश के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार का गठन हुआ। नीतीश सरकार के साथ बिहार की सत्ता में आना, फिर नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड का महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल होना और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाना लालू प्रसाद के लिए एक बड़ा झटका था। लालू प्रसाद इस राजनीतिक आघात से अभी उबरे भी नहीं थे कि झारखंड में चल रहे चारा घोटाला के तीन मामलों में एक-एक कर लालू को सजा हो गई। इसके साथ लालू रांची की होटवार जेल भेज दिए गए। इसके बाद वे अब करीब साढ़े तीन साल बाद जमानत मिलने पर रिहा हो रहे हैं। कोर्ट के फैसले के पहले लालू का परिवार चिंतित था। लालू यादव को जेल से बाहर लाने के लिए काफी प्रयास किये गये। कहते हैं जब व्यक्ति हर तरफ से निराश हो जाता है, तब भगवान का सहारा लेता है।

चारा घोटाला के दुमका कोषागार मामले में रांची हाईकोर्ट में जमानत पर फैसले के पहले लालू प्रसाद का पूरा परिवार भगवान की शरण में पहुंच गया था। लालू की बेटी रोहिणी आचार्य रमजान के महीने में रोजा रखने के साथ चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा भी कर रही हैं। वहीं लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव भी मां दुर्गा की पूजा कर रहे हैं। इस बीच छोटे बेटे व बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्घ्वी यादव ने झारखंड के देवघर में भगवान भोलेनाथ की पूजा की। संभवतः भगवान ने भी एक साथ इतने लोगों की प्रार्थना को सुना और लालू प्रसाद को झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी। इसके साथ ही इतिहास का सिद्धान्त भी अपनी जगह कायम है। कहते हैं कि नेपोलियन और हिटलर को भी इतिहास ने अपने लिए पैदा किया था। इतिहास एक निश्चित समय पर बदलता है। इसी के लिए इतिहास पुरुष आते हैं। भारत के राजनीतिक इतिहास में एक बड़ाbबदलाव लाना था, इसलिए नरेंद्र दामोदर मोदी ने भाजपा का नेतृत्व संभाला। अब विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ है तो किसी न किसी इतिहास पुरुष को आना ही है।

(हिफी) (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)


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