जन्मदिन विशेष - दादा के सियासी अंदाज़ में राजनीति कर रहे है जयंत चौधरी

जन्मदिन विशेष - दादा के सियासी अंदाज़ में राजनीति कर रहे है जयंत चौधरी

मुजफ्फरनगर। एक बड़ी राजनीतिक विरासत के बीच आंख खोलने वाले जयंत चौधरी आज 42 साल के हो गये हैं। उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) कार्यकर्ता उत्साह और उल्लास के बीच मनाना चाहते थे मगर इस बार जयंत चौधरी ने किसान आंदोलन के चलते अपना जन्मदिन नहीं मनाकर किसानों के बीच दिल्ली बॉर्डर पर पहुँच किसानो की आवाज बन रहे है। देश में किसान और खेतिहर मजदूरों के हितों को साधने के लिए खांटी किसान नेता के रूप में राजनीतिक सोपान तक पहुंचने के कारण देश में किसान मसीहा का रुतबा हासिल कर चुके # की तीसरी पीढ़ी से आने वाले जयंत चौधरी आज रालोद को उसकी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस दिलाने की बड़ी जिम्मेदार अपने कंधों पर उठाये हुए हैं। सत्ता के खिलाफ उनका विरोध हमने हाथरस प्रकरण के बाद 'लोकतंत्र बचाओ रैली' के सहारे देखा है तो किसानों के प्रति उनकी श्रद्धा और सम्मान का भाव भीषण सर्दी में सिन्धु बार्डर पर एक आम आदमी की भांति समर्पित रहते हुए सेवा कर जयंत चौधरी साबित कर चुके हैं। आज रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में राजनीतिक संघर्ष कर रहे जयंत चौधरी के बर्थ-डे पर पेश है 'खोजी न्यूज' की एक विशेष रपट....


देश में केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आज सत्ता से टकराने के लिए खुले आसमान के नीचे अडिग खड़ा नजर आता है। दिल्ली बाॅर्डर पर देश के एक बड़े हिस्से का किसान 'भर दे झोली' की उम्मीद लेकर सत्ता से आरपार के लिए तैयार है। ऐसे में एक बार फिर से हिन्दुस्तान की किसान राजनीति को लेकर दुनिया भर में बात हो रही है। हाल ही में पूर्व पीएम और किसान मसीहा स्व. चौधरी चरण सिंह 118वीं जयंती पर सत्ता से लेकर विपक्ष तक, सभी नेताओं ने किसानों के प्रति उनके योगदान को लेकर अनेक बातों को जनता के सामने रखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही देश में अलग अलग नेताओं ने उनको याद किया, लेकिन यह विडम्बना रही कि इस किसान मसीहा के परिवार को ही 'राजघाट' पर जाकर दो पुष्प अर्पित करने से रोकने का प्रयास दिल्ली पुलिस की ओर से किया गया। पाबंदी लगाई गई तो जयंत चौधरी के भीतर छिपा संघर्षशील व्यक्तित्व सामने आया और उन्होंने एक चुनौती के साथ परिवार को लेकर 'राजघाट' पर अपने दादा की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। संघर्ष का यह आक्रोश जयंत चौधरी की रगों में बहता है। उनको राजनीति विरासत में मिली है। उनके दादा पीएम के पद तक पहुंचे तो पिता चौधरी अजित सिंह यूपी से दिल्ली तक सरकारों को बनाने में बड़ी भूमिका निभाने में शामिल रहे। केन्द्र में मंत्री रहे तो यूपी में कई सरकारों में हिस्सेदारी करते हुए उन्होंने नैतिक मूल्यों पर राजनीति करते हुए सामाजिक कल्याण की नीति पर काम किया। आज चौधरी अजित सिंह को राजनीतिक बिसात पर रिटायर्ड माना जाने लगा है, ऐसे में रालोद को नई राजनीतिक पहचान दिलाने और हार से हताश संगठन को एकजुट करने के लिए जयंत चौधरी ने संघर्ष की लाठी को पकड़कर बुजुर्ग का होश और युवाओं का जोश नीति को अपनाकर काम किया है। हम कई मौकों पर उनके कुशल प्रबंधन को देख भी चुके हैं। अपने पिता चौधरी अजित सिंह के विपक्ष को एकजुट करने के राजनीतिक गुणों को आत्मसात करने वाले जयंत चौधरी को उनके समर्थक चरण सिंह का अक्स बताते हैं।


चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी ने विदेश से आने के बाद रालोद का युवा चेहरा बनकर काम किया। इसका फायदा भी पार्टी को बड़े पैमाने पर मिला। उन्होंने हमेशा ही युवाओं को प्रभावित किया और युवाओं को पार्टी से जोड़ने में सफल रहे। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव हुए तो इसमें एनएसयूआई व रालोद के संयुक्त उम्मीदवार की अध्यक्ष पर जीत ने युवाओं में जयंत चौधरी की स्वीकार्यता को साबित भी किया था।


जयंत चौधरी आज 42 साल के हो गये हैं। उनका जन्म 27 दिसम्बर 1978 को यूएसए के टेक्सास जिले के शहर डेलियस में हुआ। उनका बचपन यूएसए में ही गुजरा, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड पाॅलिटिकल्स साइंस से वर्ष 2002 में स्नातक की। इसके बाद जयंत स्वदेश लौटे और इसके एक साल बाद उनकी शादी वर्ष 2003 में चारू सिंह से हो गई। उनकी दो बेटियां साहिरा और छोटी बेटी इलेशा है। जयंत चौधरी को राजनीति विरासत में मिली। उनके बाबा स्व. चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री रह चुके हैं, जबकि पिता अजित सिंह केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाल चुके हैं। जयंत की दादी का नाम गायत्री देवी और मां का नाम राधिका सिंह है। जयंत चौधरी ने हर मौकों पर खुद को साबित करने का काम किया है। आज किसान आंदोलन में रालोद की भूमिका लगातार बनी हुई है। 8 दिसम्बर 2020 के भारत बंद का समर्थन जयंत चौधरी ने किया और इसमें शामिल रहे। इससे पहले वह 2 दिसम्बर को सिन्धु बाॅर्डर पर पहुंचे और आंदोलनकारी किसानों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव प्रदर्शित करते हुए उनकी सेवा की। वह यहां किसानों को भोजन कराने में एक आम सेवादार की भांति नजर आये। वह अपनी टीम के साथ खाने के पैकेट लेकर पहुंचे थे और किसानों के बीच जा-जाकर उनको भोजन बांटते रहे।


हाथरस कांड में सत्ता के खिलाफ एकजुट किया विपक्ष

जयंत चौधरी को हाल ही में हाथरस कांड के दौरान पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए सत्ता से टकराते हुए हम सभी ने देखा है। उन्होंने अकेले ही चार दिनों के भीतर यूपी, हरियाणा और दिल्ली के विपक्षी नेताओं को रालोद के मंच पर लाने का काम कर अपने राजनीतिक कौशल को साबित किया। 4 अक्टूबर 2020 को रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी जब सत्ता की घेराबंदी को तोड़ते हुए हाथरस में पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे तो पुलिस ने उनके साथ ही रालोद कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज कर दिया। हाथरस में पड़ी इस लाठी को जयंत ने एक बेहतर राजनीतिक कौशल के साथ किसानों के स्वाभिमान के साथ ही अपने बाबा चौधरी चरण सिंह के मान-सम्मान से जोड़ा तो यूपी में 8 अक्टूबर से शुरू हुई लोकतंत्र बचाओ रैलियों में मुजफ्फरनगर से बुलन्दशहर तक पूरा विपक्ष तो जयंत के हाथेां में हाथ डाले खड़ा ही था, लेकिन इसमें जुड़ी भीड़ ने सत्ता को सोचने पर विवश कर दिया।


20 दिसम्बर- जब पीड़ितों का दुख बांटने गुपचुप मुजफ्फरनगर पहुंचे जयंत

जयंत चौधरी ने भी अपने बाबा और पिता की भांति ही मुजफ्फरनगर जनपद को राजनीतिक कर्मभूमि के रूप में हमेशा ही प्राथमिकता में रखा। हाथरस कांड के बाद सत्ता के खिलाफ बिगुल बजाने की बारी आयी तो इसके लिए मुजफ्फरनगर से ही शुरूआत की गयी। ऐसे में वह यहां हर घर और हर दर से जुड़ाव करने के प्रयासों में जुटे रहे है। 20 दिसम्बर 2019 को जब सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के दौरान शहर में बवाल हुआ तो पीड़ितों का दर्द बांटने के लिए जयंत चौधरी पार्टी के बड़े नेताओं के साथ 25 दिसम्बर को मुजफ्फरनगर पहुंचे, उनको पुलिस ने खतौली से आगे नहीं आने दिया और वह वापस लौट गये, लेकिन पीड़ितों के दर्द का अहसास उनको सालता रहा और अगले ही दिन 26 दिसम्बर को वह दिल्ली से खुद गाड़ी चलाते हुए गुपचुप तरीके से मुजफ्फरनगर के खालापार पहुंचे। पीड़ितों के बीच रहकर उनका दर्द बांटा और उनके साथ खड़े होकर उनकी लड़ाई लड़ने का भरोसा दिया था।


जब यूपी सीएम की दौड़ में शामिल हुए जयंत चौधरी

रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी देश के दो सदनों का सदस्य होने का गौरव हासिल कर चुके हैं। 2009 में उन्होंने मथुरा लोकसभा सीट से विजयी हुए और संसद पहुंचे थे। इस चुनाव में उन्होंने श्याम सुंदर शर्मा को 1.5 लाख मतों के अंतर से हराया था। 2009 में उन्हें सदस्य, कृषि संबंधी समिति और सदस्य, नैतिकता संबंधी समिति नियुक्त किया गया था। यूपी में राज्य विधानसभा घोषित हुए तो जयंत चौधरी को मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल किया गया। जयंत ने इस चुनाव में मांट विधानसभा से सांसद रहते हुए ही चुनाव लड़ा और यहां सात बार से विधायक निर्वाचित होते आ रहे श्याम सुंदर शर्मा को पराजित किया। यूपी में सपा को बहुमत मिलने के बाद उन्होंने मांट सीट से इस्तीफा दे दिया था और सांसद रहकर मथुरा के विकास में अहम योगदान दिया। 2014 के चुनाव में वह मथुरा से ही लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा की हेमा मालिनी से पराजित हो गये। इसके बाद उन्होंने संगठन पर ध्यान दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बागपत से लड़े और यहां भाजपा के सत्यपाल सिंह से हारे।


कैराना उपचुनाव-जब जिन्ना के आगे जयंत का गन्ना जीता

जयंत चौधरी को शांत स्वभाव का नेता माना जाता है, लेकिन उनकी भाषणशैली उतनी ही आक्रामक रहती है। यूपी में जब लोकसभा के उप चुनाव आये तो विपक्ष हावी होने लगा। गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना सीट पर सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद मई 2018 में उप चुनाव हुए। इसमें जयंत चौधरी के राजनीतिक प्रबंधन को सभी ने देखा। उन्होंने सपा के साथ गठबंधन करते हुए कांग्रेस और बसपा का भी अघोषित समर्थन हासिल किया और सपा नेत्री व पूर्व सांसद तबस्सुम हसन को रालोद ज्वाइन कराने के बाद कैराना उपचुनाव लड़ाया। इस चुनाव की पूरी कमान जयंत ने संभाली और भाजपा के खिलाफ इस लड़ाई को वह 'जिन्ना बनाम गन्ना' बनाने में सफल रहे। परिणाम आया तो सभी हतप्रभ थे और यूपी से तबस्सुम हसन के रूप में संसद में रालोद सांसद की सीट पक्की हुई।


जयंत ने कोरोना वायरस को लड़कर दी मात

हाथरस कांड के दौरान यूपी सरकार के खिलाफ लोकतंत्र बचाओ रैलियों की व्यस्तता के बीच ही जयंत चौधरी 18 अक्टूबर को कोरोना संक्रमित हो गये। यह कार्यकर्ताओं के लिए झटका था, क्योंकि अगले दिन बुलन्दशहर में रैली होनी थी। ऐसे में जयंत चौधरी ने सहज स्वभाव से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया और खुद को होम क्वारंटाइन कर लिया। पूरे परिवार की जांच कराई। बुलन्दशहर रैली की जिम्मेदारी अपने पिता चौधरी अजित सिंह को सौंपी और घर से ही पूरा मैनेजमेंट संभाले रहे। रैली भीड़ के लिहाज से सफल रही और जयंत चौधरी भी कोरोना को मात देने में सफल रहे।




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