नायडू की सामयिक अपील

नायडू की सामयिक अपील

नई दिल्ली। सबेरे-सबेरे मोबाइल पर कई शुभचिंतकों के वाट्सएप मिलते हैं। हमारे मित्र मधुसूदन त्रिपाठी इसमें सबसे आगे रहते हैं। मैं रोज सोचता हूं कि शुभ प्रभात पहले मैं ही बोलूं लेकिन वे बाजी मार ले जाते हैं। आज उनका एक वीडियो मिला जिसमें महाकाल की आरती हो रही थी। सावन का चौथा सोमवार और शिवजी की आरती देखकर जवाब दिया। महाकाल भोलेनाथ हम सभी की इस कोरोना महामारी से रक्षा करें। यह बात सहज ही मन में आ गयी। कोरोना की महामारी ने बहुत गहरे से सोचने पर मजबूर भी कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपदा को अवसर में बदलने की सलाह दी है लेकिन उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू की अपील हमें कर्तव्यों की याद दिलाती है। कोरोना वायरस ने हमे किस प्रकार के झंझावत में फंसा दिया है यह बात सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी कही है। वे और उनका परिवार कोरोना पाॅजिटिव से पीड़ित है और अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। कोरोना के संक्रमित और मौत के नतीजे इतने भयावह हो गये हैं कि उनका उल्लेख करना भी अच्छा नहीं लगता।

इस बीमारी को लेकर अब भयभीत होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे आसानी से पीछा छूटने वाला नहीं है। इसकी वैक्सीन बनने में समय लगेगा और कोई कारगर दवा भी तय नहीं हो पायी है। इसलिए बीमारी का मुकाबला करना है। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बड़ी ही मार्मिक और व्यावहारिक अपील की है। कोरोना वायरस से संक्रमित के प्रति निश्चित रूप से हमारे भाव बदल गये हैं। ऐसा बीमारी के चलते ही हुआ है लेकिन इससे संक्रमितों के अंदर हीन भावना आ रही है। यह भावना उनकी बीमारी से लड़ने की शक्ति को भी कमजोर कर देगी। उपराष्ट्रपति ने गत 26 जुलाई को इसी संदर्भ में अपील की है। उनके संज्ञान में भी आया कि कोविड-19 मरीजों का अपमान किया जाता है। इसलिए उप राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस बीमारी के बारे में पूर्वाग्रहों को समाप्त करना होगा। उन्होंने अपनी बात को थोड़ा स्पष्ट भी कर दिया कि इस वायरस के कारण जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार से भी लोग हिचक रहे हैं। संक्रमण से बचने का प्रयास तो करना ही होगा लेकिन संक्रमितों के प्रति उपेक्षा का भाव भी उचित नहीं है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इस प्रकार के पूर्वाग्रह समाप्त करने की अपील की है। इस वायरस के कारण जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार से इंकार करने की घटनाओं पर उन्होंने नाराजगी जतायी। उप राष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह की घटनाएं पूरी तरह से अवांछित हैं। उन्होंने समाज के लोगों से आग्रह किया कि ऐसी घटनाएं अब नहीं दोहराई जाएं। उपराष्ट्रपति ने किसी घटना का जिक्र नहीं किया लेकिन जिस तरह कोलकाता मंे एक कोरोना मरीज को लोगों ने एम्बुलेंस में बैठाने से कना किया और उस व्यक्ति की वहीं पर मृत्यु हो गयी तथा कर्नाटक में कोरोना से मृत लोगों के शव गड्ढों में फेंके गये थे और अन्य लोगों के शव लेने से परिजनों ने ही इनकार किया इस प्रकार की घटनाएं निश्चित रूप से व्यथित करने वाली हैं।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि समय की मांग है कि हम इस प्रकार के पूर्वाग्रह से लड़ें और इसे जड़ से समाप्त करें अन्यथा यह फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं से भी अधिक विषैला हो सकता है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायूड ने कोविड-19 मरीजों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने का आग्रह करते हुए कहा है कि यह याद रखना चाहिए कि कोई भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। यह अदृश्य वायरस किसी को भी संक्रमित कर सकता है। इस सच्चाई को हमें समझना होगा और इसे ध्यान में रखकर ही कोरोना संक्रमितों के साथ व्यवहार करना चाहिए। हमने शुरूआत में पूरी तरह लाकडाउन करके भी देख लिया। यह सही है कि उस दौरान कोरोना के संक्रमण से हम काफी बचे थे। अमेरिका ब्रिटेन जैसे देश उस समय बहुत तेजी से कोरोना से संक्रमित हो रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी इस तथ्य को स्वीकार करना पड़ा कि जान है तो जहान है के सिद्धांत पर काम नहीं हो सकता। उन्होंने लाकडाउन में यही कह कर ढिलाई दी थी कि जान और जहान दोनों की चिंता करनी पड़ेगी। इससे कोरोना संक्रमण बढ़ा लेकिन लोगों को काम-धंधे का अवसर भी मिला। हम इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं कि काम धंधा भी चलना चाहिए तो लोगों से पूरी तरह दूरी बनाकर कैसे रह सकते हैं? हमारे साथ जो काम कर रहा है उसे संक्रमण नहीं है इसका कोई प्रमाण पत्र हमारे पास नहीं होता हम सोशल डिस्टेंस को व्यावहारिक रूप से कितना अपना रहे हैं। इन बातों पर गौर करें तो हम वेंकैया नायडू के नतीजे पर ही पहुंचेेगे कि कोई भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। यह अदृश्य वायरस किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। इसलिए कोरोना से जिन लोगों की मौत हुई है उनसे हम संक्रमित होंगे, यह उतना ही जरूरी नहीं जितना हम आज कल कार्य के दौरान वहां मौजूद लोगों, सब्जी खरीदते समय सब्जी वाले से अथवा दूध लेकर आते समय दूध वाले से संक्रमित होने से बचे रहते हैं। यही बात समझाने का प्रयास उपराष्ट्रपति ने किया है।

रही बात कोरोना संक्रमितों की तो रोजना मौत के आंकड़े ही उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देते हैं। उनके मन पर क्या गुजरती है इसका आभास सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के हाल में एक ट्वीट से पता चलता है। अमिताभ बच्चन ने लिखा है कि अंधेरी रात में गाना गाकर सोने की कोशिश करता हूूं। उपेक्षा के बारे में भी उन्होंने संकेत दिया कोराना से जूझ रहे महानायक अमिताभ बच्चन मुंबई के नानावती अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। गत 26 जुलाई को ब्लाग में अपने अनुभव साझा किये हैं। सदी के महानायक ने लिखा जानलेवा बीमारी के मुकाबले किसी से न मिलपाने की बेवसी मरीज की मानसिक सेहत पर भारी पड़ती है। यह शब्द उस महानायक के हैं जिसके चाहने वालों की संख्या लाखों में है और सोशल मीडिया पर कितने लोग जुड़े रहते हैं। उन लोगों की स्थिति की कल्पना करें जिनके सोशल मीडिया पर चंद वही लोग हैं जो बीमारी का नाम सुनकर उनसे मुंह फेर चुके हैं कि कहीं यह मिलने की ख्वाहिश न जता दे। ऐसे लोग अपनी पीड़ा को साथ लेकर दूसरे लोक चले जाते हैं। उनकी पीड़ा को हल्का करने के लिए ही वेंकैया नायडू ने हम लोगों से कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों के प्रति अपने पूर्वाग्रह बदलने का आग्रह किया है। उनको हम भले ही जीवन नहीं दे सकते लेकिन मौत से पहले कुछ राहत तो दे सकते हैं अपने पन का अहसास तो करा सकते हैं।

अमिताभ बच्चन की यह अनुभूति स्वास्थ्य विभाग से लेकर अन्य लोगों के लिए भी एक संदेश है। उन्होंने अपने ब्लाग में लिखा कोविड मरीज हफ्तों तक दूसरे को नहीं देख पाता। स्वास्थ्य कर्मी एहतियात बरतते हैं और इलाज कर चले जाते हैं। उन्होंने साफ-साफ लिखा कि जो डाक्टर इलाज कर रहा होता है वह आपके पास नहीं आता। सारा संवाद आनलाइन ही होता है। कल्पना कीजिए कि जिन महानायक अमिताभ बच्चन को एक झलक देखने उनसे बात करने और मिलने के लिए लोग तरसते थे, वही महानायक आज किसी से न मिल पाने की बेवसी झेल रहा है। अमिताभ बच्चन ने उन हजारों संक्रमितों के साथ हमदर्दी जतायी जिन्हें कोरोना संक्रमण के बाद बेरूखी झेलनी पड़ती है। उन्होंने लिखा कि मनो वैज्ञानिकों ने भी यह माना है कि इलाज के दौरान दूरी और फिर करीबियों की बेरूखी का मानसिक असर पड़ता है।

इसलिए भाइयों और बहनों, प्यारे देशवासियों कोरोना संक्रमितों के प्रति पूर्वाग्रह को त्याग दो। उनको मौत से पहले बेरूखी की मौत से मत मारो।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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