VIP को अब भी गुरूर!

VIP को अब भी गुरूर!

नई दिल्ली। समय ने कितनी बार सिखाया कि खुद को लेकर किसी प्रकार का अहंकार न पालो लेकिन यह सीख स्थायी नहीं हो पाती। श्मशान घाट पर मन क्षण भर के लिए बैरागी हो जाता है। कितना कुछ था और क्या साथ आया? वही बांस की टिकटी और राम राम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है कहने वाले चन्द लोग। कोरोना ने यह गुमान भी दूर कर दिया। सरकार ने श्मशानघाट आने वालों की संख्या भी तय कर दी है। पहले भी जिनकी अंतिम यात्रा में लोगों की भारी भीड़ जुटती थी, दिन बीते धीरे धीरे कम होने लगती थी। उनके घरों पर भी बाद में सन्नाटा पसरा देखा गया।अब कोरोना वायरस ने तो ऐसी सीख दी है कि कोई गुरूर न कर सके। धन दौलत, अस्त्र शस्त्र, संगी साथी, फौज पाटा कोई भी बचा नहीं सकता। पहले कहते थे छूने से, छींक खांसी अथवा बाहर से लायी गयी चीजों के सेवन से कोरोना संक्रमण की संभावना रहती है लेकिन अब बताते हैं कि वायरस हवा में आ गया है। मास्क लगाने से भी बचना मुश्किल है। मास्क को लेकर पहले से ही कहा जा रहा कि पूरी तरह वायरस को नहीं रोक पाता है। लोगों ने कीमती से कीमती मास्क लगाना शुरू कर दिया। कई लोगों के मास्क की कीमत बताते हुए खबरें भी छपीं और बाद में यह भी पता चला कि वे कोरोना पॉजिटिव हैं। इसलिए वीआईपी होने का भ्रम कोरोना ने तोड़ दिया है लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था के चलते हमारे देश में वीआईपी भ्रम को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (पीजीआई) के रेजिडेंट डाक्टर एसोसिएशन ने ही यह आरोप लगाया कि संस्थान में सिर्फ वीआईपी मरीजों को उपचार में प्राथमिकता दी जाती है। यह अलग बात है कि कोरोना किसी को वीआईपी नहीं मानता है। इसने अमेरिका जैसे देश की भी हेकड़ी भुला दी है, फिर ये वीआईपी को प्राथमिकता देने वाले किस मुगालते में हैं।

लखनऊ में पीजीआई रेजिडेंट डाक्टर एसोसिएशन ने अपने खुद के इलाज के लिए संस्थान प्रशासन से मांग की है। बहुत ज्यादा दिन की बात नहीं है जब इसी पीजीआई में एक सेमिनार हुआ था। इस सेमिनार का विषय था पीजीआई में मरीजों की बढ़ती संख्या। इस मामले में वक्ताओं का कहना था कि देश में चिकित्सालयों की व्यवस्था बीमारी को देखते हुए की गयी है। अगर बुखार और सर्दी जुकाम होने पर लोग पीजीआई में भर्ती होने लगेंगे तो गंभीर रूप से बीमार लोगों को पीजीआई में बेड कैसे मिल पाएगा। उस सेमिनार के बाद काफी दिनों तक यह बहस चलती रही कि सामान्य बीमारियों का इलाज जिला स्तर के अस्पतालों में ही होना चाहिए। वहां चिकित्सा की सुविधाएं भी जुटायी गयीं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) स्तर पर सर्जन की तैनाती हुई ताकि आपात स्थिति में वहीं आपरेशन किये जा सकें। अस्पतालों में डाक्टर का रात में निवास करने का आदेश भी जारी हुआ लेकिन इन निर्देशों का पालन नाममात्र को ही हो पाया। डाक्टर्स के बीच भी एक वीआईपी कल्चर है। गांव और कस्बों में वे अपनी तैनाती नहीं होने देते। इसीलिए अपने आकाओं को चिकित्सा में भी वीआईपी सुविधा देनी पड़ती है। लखनऊ में पीजीआई के रेजिडेंट डाक्टर्स ने इसी समस्या को तब उठाया, जब उन पर स्वयं बीत रही है।

कोरोना संक्रमण के पहले चरण में भी कई चिकित्साकर्मी इसकी चपेट में आये थे लेकिन संक्रमण का यह दूसरा चरण विकराल रूप धारण कर चुका है। एकदिन में संक्रमितों का रोज रिकार्ड टूट रहा है। उसी अनुपात में डाक्टर भी संक्रमित हो रहे हैं। लखनऊ के पीजीआई में 17 अप्रैल को कोरोना संक्रमितों से 250 बेड भर जाने के बाद 60 बेड मुख्य अस्पताल में शुरू किये गये थे। आम शिकायत है कि यहां सामान्य मरीजों के लिए हमेशा बेड भरे रहते हैं, जबकि वीआइपी मरीज रोज भर्ती होते हैं। सामान्य मरीजों को दवाएं न मिलने पर स्वास्थ्यकर्मियों ने 17 अप्रैल को निदेशक का घेराव किया था। कोविड मरीजों को लेकर भी उनके परिजन परेशान हैं कि हमारे पेशेंट को ठीक से दवाएं मिल रही हैं अथवा नहीं। इसकी पुष्टि पीजीआई के रेजिडेंट डाक्टर एसोसिएशन ने भी कर दी है। रेजिडेंट डाक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डाॅ आकाश माथुर और महामंत्री डॉ गंगवार ने कहा कि पीजीआई को हर व्यक्ति के उपचार के लिए बनाया गया लेकिन विगत कई सालों से वीआईपी मरीजों को ही प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने मांग की है कि पीजीआई के कोविड अस्पताल में सामान्य मरीजों को भी भर्ती कर इलाज किया जाए। रेजिडेंट डाक्टर्स का यह भी कहना है कि संस्थान के रेजिडेंट और स्वास्थ्यकर्मियों में भी कोवि का संक्रमण हो रहा है। उनको यहां भर्ती करने और उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। प्राइवेट वार्ड भी पीजीआई के स्वास्थ्य कर्मियों को मिलने चाहिए। बहरहाल, पीजीआई कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष जितेन्द्र यादव और महामंत्री धर्मेश कुमार के आग्रह पर पीजीआई प्रशासन ने आरसीएच दो में संक्रमित स्वास्थ्यकर्मियों के उपचार के लिये 18 बेड आरक्षित कर दिये हैं।

संस्थान के कर्मचारियों को संस्थान में सुविधा पाने का हक है, इस नाते पीजीआई के कर्मचारियों, चिकित्साकर्मियों व चिकित्सकों को भी वहां इलाज कराने का अधिकार है। समस्या दूसरी है। पीजीआई में क्या वीआईपी कल्चर के चलते सामान्य बुखार और सर्दी जुकाम होने पर भर्ती किया जाएगा? अभी पीजीआई में काम करने वालों के लिए जो 18 बेड आरक्षित किये गये हैं, उन पर भी वीआईपी देखकर भर्ती होगी अथवा बीमारी की गंभीरता देखी जाएगी। अस्पताल, मेडिकल कालेज और एम्स बीमारियों की गंभीरता के अनुसार इलाज करने के लिए बनाए गये हैं। इसी आधार पर यदि मरीजों को भर्ती किया जाए तो कोई समस्या ही पैदा नहीं होगी। इसमें मुख्य भूमिका चिकित्सकों को ही निभानी है। इसी पीजीआई की एक घटना याद आती है जो हमारे संवाददाता ने बतायी थी। एक बहुत बड़े कारोबारी घराने, जिसमें मीडिया भी जुडा था, वहां के एक बड़बोले अधिकारी गेस्ट्रोएन्टरोलाॅजी विभाग में इलाज कराने पहुंचे।

पीजीआई के गैस्ट्रो विभाग में उन दिनों डॉक्टर चौधरी काम करते थे। उनकी ख्याति लखनऊ ही नहीं देश भर में थी। दूर दराज के लोग उनके पास इलाज कराने के लिए आते थे। वे बड़बोले अधिकारी उसी संवाददाता के माध्यम से डॉक्टर चौधरी के पास तक पहुंच गये। हालांकि यहां भी वीआईपी कल्चर की झलक मिलती है लेकिन वे जिस मरीज को लेकर गये थे, उसकी बीमारी निश्चित रूप से गंभीर थी। डॉक्टर चौधरी उसे देख रहे थे, तभी उन अधिकारी महोदय ने अपनी आदत के अनुरूप कहा, डाक्टर साहब पैसा चाहे जितना खर्च हो जाए लेकिन इसको (मरीज को) ठीक कर दीजिए। यह सुनकर डॉक्टर चौधरी को उन अधिकारी महोदय पर बहुत क्रोध आया लेकिन अपने पर नियंत्रण करते हुए डॉक्टर चौधरी ने उस अधिकारी की कम्पनी के मालिक का नाम लेते हुए कहा कि हां, एक उन्होंने अपनी बहन को अथाह पैसा होते हुए बचा लिया था और एक तुम बचा लोगे? इस प्रकार डाक्टर चैधरी ने अहंकार को आईना दिखाया था। उसी तरह अब कोरोना भी अहंकार को आईना दिखा रहा है। (हिफी)





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