अहिंसा व सत्य के पथिक बापू

अहिंसा व सत्य के पथिक बापू

नई दिल्ली। हमारे देश में कहा जता है- शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यहीं बाकी निशां होगा। इसीलिए कई तिथियां हम शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख है 30 जनवरी, जब अहिंसा व सत्य के पथिक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को एक सिरफिरे ने गोली मार दी थी। इसके अलावा 21 अक्टूबर को पुलिस शहीद दिवस मनाते हैं। इसी दिन 1959 में केन्द्रीय पुलिस बल के जवान लद्दाख में चीनी सेना के हाथों शहीद हुए थे। इसी क्रम में ओडिशा में 17 नवम्बर को शहीद दिवस मनाया जाता है। इसी तिथि को लाला लाजपत राय शहीद हुए थे। शहीद दिवस 30 जनवरी पर बापू की ज्यादा आ रही है। अभी हाल में गणतंत्र दिवस के दिन लालकिले पर जिस तरह उपद्रव व हिंसा हुई, उससे लगता है कि महात्मा गांधी से हमने कुछ भी नहीं सीखा है।

महात्मा गांधी का जन्म भारत के गुजरात राज्य के पोरबंदर क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के 'दीवान' थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थीं। गांधीजी के जीवन में उनकी माता का बहुत अधिक प्रभाव रहा। उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही हो गया था और उस समय कस्तूरबा 14 वर्ष की थी। नवंबर, सन् 1887 में उन्होंने अपनी मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण, कर ली थी और जनवरी, सन् 1888 में उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया था और यहाँ से डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे लंदन गये और वहाँ से बेरिस्टर बनकर लौटे। सन् 1894 में किसी कानूनी विवाद के संबंध में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका गये थे और वहाँ होने वाले अन्याय के खिलाफ 'अवज्ञा आंदोलन चलाया और इसके पूर्ण होने के बाद भारत लौटे। सन् 1916 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे और फिर हमारे देश की आजादी के लिए अपने कदम उठाना शुरू किया। सन् 1920 में कांग्रेस लीडर बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी ही कांग्रेस के मार्गदर्शक थे।


सन् 1914-1919 के बीच जो प्रथम विश्व युद्ध हुआ था, उसमें गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार को इस शर्त पर पूर्ण सहयोग दिया, कि इसके बाद वे भारत को आजाद कर देंगे। परन्तु जब अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया, तो फिर गांधीजी ने देश को आजादी दिलाने के लिए बहुत से आंदोलन चलाये।

गांधीजी द्वारा सन् 1918 में चलाया गया 'चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह' भारत में उनके आंदोलनों की शुरुआत थी और इसमें वे सफल रहे। ये सत्याग्रह ब्रिटिश लैंडलॉर्ड के खिलाफ चलाया गया था। इन ब्रिटिश लैंडलॉर्ड द्वारा भारतीय किसानों को नील की पैदावार करने के लिए जोर डाला जा रहा था और इसी के साथ हद तो यह थी कि उन्हें यह नील एक निश्चित कीमत पर ही बेचने के लिए भी विवश किया जा रहा था और भारतीय किसान ऐसा नहीं चाहते थे। तब उन्होंने महात्मा गांधी की मदद ली। इस पर गांधीजी ने एक अहिंसात्मक आंदोलन चलाया और इसमें सफल रहे और अंग्रेजों को उनकी बात मानना पड़ी। इसी वर्ष खेड़ा नामक एक गाँव, जो गुजरात प्रान्त में स्थित हैं, वहाँ बाढ़ आ गयी और वहाँ के किसान ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये जाने वाले टैक्स भरने में असमर्थ हो गये। तब उन्होंने इसके लिए गांधीजी से सहायता ली और तब गांधीजी ने 'असहयोग नामक हथियार का प्रयोग किया और किसानों को टैक्स में छूट दिलाने के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में गांधीजी को जनता से बहुत समर्थन मिला और आखिरकार मई, 1918 में ब्रिटिश सरकार को अपने टैक्स संबंधी नियमों में किसानों को राहत देने की घोषणा करनी पड़ी।

सन् 1919 में गांधीजी को इस बात का एहसास होने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं कमजोर पड़ रही हैं तो उन्होंने कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने के लिए और साथ ही साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अपने प्रयास शुरू किये। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वे मुस्लिम समाज के पास गये। खिलाफत आंदोलन वैश्विक स्तर पर चलाया गया आंदोलन था, जो मुस्लिमों के खिलाफ चलाया गया था। महात्मा गांधी ने संपूर्ण राष्ट्र के मुस्लिमों की कांफ्रेंस रखी और वे स्वयं इस कांफ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी थे। इस आंदोलन ने मुस्लिमों को बहुत सपोर्ट किया और गांधीजी के इस प्रयास ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह भी बन गयी। परन्तु सन् 1922 में खिलाफत आंदोलन बुरी तरह से बंद हो गया और इसके बाद गांधीजी अपने संपूर्ण जीवन 'हिन्दू मुस्लिम एकता' के लिए लड़ते रहे। हिन्दू और मुस्लिमों के बीच दूरियां बढ़ती ही गयी। ये दूरियां ऐसी बढीं कि जब सन् 1947 में भारत आजाद हुआ तो मुसलमानों ने देश के टुकड़े करवा दिये।


गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर 'हरि जन' नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें। 30 जनवरी सन् 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे- 'हे राम'। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया हैं।

महात्मा गांधी को भारत के राष्ट्रपिता का खिताब भारत सरकार ने नहीं दिया, अपितु एक बार सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। गांधीजी की मृत्यु पर एक अंग्रेजी ऑफिसर ने कहा था कि "जिस गांधी को हमने इतने वर्षों तक कुछ नहीं होने दिया, ताकि भारत में हमारे खिलाफ जो माहौल हैं, वो और न बिगड़ जाये, उस गांधी को स्वतंत्र भारत एक वर्ष भी जीवित नहीं रख सका।" यह टिप्पणी बहुत कड़वी थी लेकिन क्या आज भी हम गांधी जी के सत्य अहिंसा के रास्ते पर चल रहे हैं? (हिफी)

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