मेरे शब्द मेरी कविता- इश्क़ में वो हुआ बेपरवाह

प्यार आज कल एक मर्ज का नाम बन गया है जो अब हर तरफ एक वायरस की तरह से फैला हुआ है इस मर्ज में आयेदिन बदलाव होते रहते है इसी बदलाव से बानी है ये छोटी सी कविता...
इश्क़ में हम खफा कुछ इस तरह हुए हम एक शायर और वो किसी के सनम बन गए!
संग जीने मरने की कसम खाने वाले चाकू ऐसा खोप गए!!
हम उसकी दी हुई चोटों से एक गहरा जख्म और वो नमक बन गए!!
इश्क में लापरवाह वह या हम थे लेकिन हम तो उनके धोखे से भी सवर गए!
इश्क में वह किसी के सनम और हम मौसम की तरह बदल गए!!
सुना था लोग पुराने होने पर कपड़े बदलते हैं आज पता चला पुरानी होने पर वफा भी बदली जाती है!
यह वफा भी एक मौसम में निकाले गए कपड़ों जैसी है जो आज यदि सूती तो कल गर्म पहनी जाती है!!
वह खुद बेवफा होकर भी हमसे वफा की उम्मीद रखते रहे, बेवफा वह थे और दगाबाज हम बनते रहे!
आंसू मेरे बारिश बनकर बादलों से बारिश की तरह बरसे और वह अपने सनम के साथ उस बारिश में भीगते रहे!!
उनको और उनके सनम को साथ देखकर चिंगारियो की तरह सुलगते हम रहे!
फर्क बस इतना रहा हमने सुलगते सुलगते जनाजे उठाए और वह अपने सनम को डोली में ले गए!!
इश्क में वह बेवफा और हम एक शायर निकले!!
कवयित्री/ रिपोर्टर= मेघा गुप्ता ✍️✍️