कौन दिशा में ले के चला रे बटुरियां- बैलगाड़ी में दुल्हन लेने निकला...

कौन दिशा में ले के चला रे बटुरियां- बैलगाड़ी में दुल्हन लेने निकला...

बांदा। बढ़ती महंगाई के दौर में पेट्रोल एवं डीजल तथा गाड़ियों की व्यवस्था की टेंशन खत्म करते हुए आधुनिक दूल्हा पारंपरिक सवारी बैलगाड़ी में बारातियों के साथ दुल्हनिया लाने को निकला। सजी-धजी बैलगाड़ियों में लड़की पक्ष के दरवाजे पर जा रही बारात को देखकर हर कोई अचंभित रह गया और परंपरागत सवारी की प्रशंसा किए बगैर नहीं रह सका। बांदा जनपद के बबेरू कस्बे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

पर्यावरण संरक्षण और सनातन संस्कृति को पुर्नजीवित करने का संदेश देते इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि सजी-धजी बैलगाड़ियों में सवार होकर नए कपड़ों से सुसज्जित लोग बारात लेकर जा रहे हैं। तकरीबन 40 बैलगाड़ियों के काफिले में शामिल हर कोई व्यक्ति अपनी देशी वेशभूषा में सजा धजा बैठा है। दूल्हा भी बढ़ती महंगाई में गाड़ियों की व्यवस्था एवं डीजल एवं पेट्रोल की कीमतों से चिंतित हुए बगैर बैलगाड़ी में सवार होकर अपनी दुल्हनिया को लेने के लिए उनके साथ जा रहा है। सनातन धर्म की परंपराओं को पूरी तरह से पूरा करते हुए दूल्हा जब बैलगाड़ियों में बारात को लेकर सड़क पर निकला तो रास्ते में जिसकी भी इस परंपरागत सवारी वाली बारात पर निगाह पड़ी तो वह अचंभित रह गया।

गर्र से स्टार्ट होकर इधर से उधर पहुंच जाने वाली चमचमाती गाड़ियों के इस युग में 40 बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना भी किसी एवरेस्ट पर चढ़ाई करने से कम नहीं था। बताया जा रहा है कि किसान का बेटा दूल्हा पहली बार बैलगाड़ी पर बैठा था, उससे जब पूछा गया तो उसने तपाक से उत्तर दिया कि बहुत अच्छा लग रहा है। दूल्हे के साथ उसके परिवार के अन्य लोग सजधज कर बैलगाड़ी में नाचते गाते दुल्हन के घर पहुंचे। सभी ने कटी फटी जींस और टी-शर्ट तथा ट्राउजर आदि पाश्चात्य ड्रेस के बजाय देसी वेशभूषा पहनी हुई थी। दूल्हे ने बताया कि उनके परिवार का मन था कि हम पुरानी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों को पुनर्जीवित करते हुए उसी के मुताबिक शादी करें। बनाई गई योजना के मुताबिक परिवार के लोगों की इच्छा पूर्ति के लिए वैसे ही किया जा रहा है। मुझे खुशी इस बात की है कि हम आज भी अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई व्यवस्था एवं रीति-रिवाजों को भूले नहीं है। उधर बारातियों ने भी कहा है कि वह भी पहली बार ही बैलगाड़ी पर सवार हुए हैं लेकिन आज बैलगाड़ी पर सवार होकर मन के भीतर तरह-तरह के लड्डू फूट रहे हैं।

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