स्वार्थ में अंधे इंसान ने जमीन हड़पने को भगवान को ही बना दिया मृतक

स्वार्थ में अंधे इंसान ने जमीन हड़पने को भगवान को ही बना दिया मृतक

मोहनलालगंज। छोटे से पेट को भरने के लिए इंसान क्या-क्या जतन नही करता। कोई मेहनत मजदूरी करके ही इस पेट का भरण पोषण कर लेता हैै तो कोई गलत रास्ता अख्तियार करके भी इस पापी पेट की भूख को जिंदगी भर शांत नही कर पाता है। इस पापी पेट के लिए स्वार्थ में अंधे हुए लोग भगवान को लपेटे में लेने से नही चूकते है। इंसानी फितरत का कमाल देखिये कि पहले तो दस्तावेजों में एक व्यक्ति को भगवान कृष्ण-राम का पिता बनाया। उसके बाद दर्शाया कि कृष्ण-राम की मृत्यु हो गई है। मामला यही पर नही थमा बल्कि बाद में जमीन का मालिकाना हक फर्जी पिता को दे दिया गया। इस फर्जीवाड़े के बारे में मंदिर के ट्रस्टी द्वारा की गई शिकायत नायब तहसीलदार से होते हुए डीएम तक जा पहुंची। प्रशासनिक स्तर पर जब न्याय नहीं मिला तो मामला डिप्टी सीएम तक जा पहुंचा। तब कही जाकर मामले की जांच शुरू हुई। जांच पडताल के बाद सामने आया कि पीड़ित मंदिर ट्रस्ट का दावा सही है। चकबंदी के दौरान मंदिर के विग्रह, जिनके नाम पर जमीन थी, उसी नाम से किसी शख्स को दस्तावेजों में जालसाजी करके दर्ज किया गया था।

दरअसल यह मामला मोहनलालगंज के कुशमौरा हलुवापुर का है। पीडित की शिकायत के बाद उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के निर्देश पर एसडीएम सदर प्रफुल्ल त्रिपाठी को इस मामले की जांच सौंपी गई। पीड़ित द्वारा दिये गये प्रार्थना पत्र में बताया गया कि वादी मंदिर यानि ट्रस्ट है। खसरा संख्या 138, 159 और 2161 कुल रकबा 0.730 हेक्टेयर 'कृष्णराम' भगवान के नाम पर खतौनी में दर्ज है। उक्त भूमि पर स्थित मंदिर लगभग 100 साल पुराना है। यह खसरी भगवान के नाम पर 1397 फसली की खतौनी तक तो लगातार दर्ज रहा। लेकिन वर्ष 1987 में हुई चकबंदी प्रक्रिया के दौरान कृष्णराम को मृतक दिखाकर उनके फर्जी पिता गया प्रसाद को वारिस बताते हुए दस्तावेजों में उसका नाम दर्ज कर दिया गया। मामला यही पर समाप्त नही हुआ बल्कि वर्ष 1991 में गया प्रसाद को भी मृत दर्शाकर, उसके भाई बने रामनाथ और हरिद्वार के नाम फर्जी तौर पर दर्ज कर दिये गये। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सुशील कुमार त्रिपाठी ने वर्ष 2016 में तहसील दिवस के दौरान भी इस मामले को लेकर अधिकारियों के सामने अपनी फरियाद की, लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं हुई।

धुन के पक्के फरियादी वर्ष 2018 में जब उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा से मिले तो उन्होंने इस मामले के प्रति गंभीरता दिखाते हुए इस समूचे घटनाक्रम की जांच के निर्देश डीएम लखनऊ को दिए। एसडीएम सदर प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी के अनुसार जांच में पाया गया कि पूर्व में मंदिर और जमीन कृष्ण-राम भगवान के नाम ही दर्ज थी। दरअसल दस्तावेजों में भगवान के विग्रह को व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जाती है। कुछ लोगों ने हेराफेरी करते हुए उसी नाम के किसी शख्स को दस्तावेजों में दर्ज कर दिया।

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