मैं पिता हूं, आकाश से ऊंचा ओहदा रखता हूं

नई दिल्ली। पालन-पोषण की जिम्मेदारी अक्सर मां पर होती है। मां करूणा की मूर्ति है। मां वात्सल्य का ही दूसरा नाम है। इसीलिए भगवान ने उसे बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा दिया है और वह इसका भलीभांति निर्वहन भी करती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पिता बच्चों का पालन-पोषण नहीं कर सकता। पिता का ओहदा आकाश से भी ऊंचा होता है। जब पिता यह जिम्मेदारी उठाता है, तो वह बहुत ही बेहतर तरीके से अपने जिगर के टुकड़े का पालन पोषण कर सकता है। एक पिता अपने बच्चे की जिम्मेदारी का निर्वहन किस प्रकार से कर सकता है, उसकी कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।
ना तपती धूप से डरता हूं,
न ओलों की मार से सहमता हूं,
मैं पिता हूं,
आकाश से ऊंचा ओहदा रखता हूं।
सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे ही फोटो वायरल हो रहे हैं, जिसमें एक पिता की जिम्मेदारी को दिखाया गया है। वह जिम्मेदारी, जिसकी शायद पिता से उम्मीद नहीं की जा सकती है। ऐसी ही जिम्मेदारी को निभा रहे हैं प्रोफेसर साहब। इन प्रोफेसर साहब का नाम है अविनाश शरण। अविनाश शरण इकनाॅमिक्स के प्रोफेसर हैं। जब उनके यहां नन्हे मेहमान का आगमन हुआ, तो नियति ने उनकी पत्नी का साथ उनसे हमेशा के लिए छीन लिया। इससे प्रोफेसर साहब पूरी तरह से टूट गये।
खास बात यह है कि प्रोफेसर साहब ने न तो अपने दुःख को अपने ऊपर हावी होने दिया और न ही अपने बच्चे के बारे में कुछ बुरा सोचा, जैसे कि आजकल के कुछ रूढ़िवादी लोग सोचते हैं। उन्होंने मां से बढ़कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। अपने छोटे से बच्चे का उन्होंने अच्छे से पालन-पोषण करना शुरू कर दिया। हालांकि पत्नी के जाने के दुःख ने उनके कदमों को हर पल डिगाना चाहा, लेकिन बच्चे के प्रेम के चलते उन्होंने हार नहीं मानी। पिता वह छत्रछाया है, जो अपने ऊपर सूरज की तपती धूप हो या ओलों सहित वर्षा का वार सब अपने ऊपर ले लेता है और अपने परिवार को हमेशा सुरक्षित रखता है। प्रोफेसर साहब ने भी ऐसा ही किया। छोटे से बच्चे के साथ नौकरी करना असंभव सा काम है। इसलिए उन्होंने इसका भी रास्ता निकाल लिया। नौकरी छोड़कर बच्चे का पालन-पोषण नहीं हो सकता और बच्चे को भी अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। इसका उन्होंने एक रास्ता निकाल लिया। उन्होंने अपने बच्चे को अपने साथ लेकर काॅलेज जाने का फैसला लिया। उन्होंने एक विशेष प्रकार की बेबी बेल्ट बनवाई और उसके सहारे बच्चे को अपने शरीर से बांध लिया। बच्चे को अपने सीने से लगाकर ही वे छात्रों को शिक्षा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं। धन्य हैं ऐसे पिता, जो अपनी जिम्मेदारियों को इस तरह से निभाते हैं कि वे दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
