गोरैया के उजड़े आशियाने को बसाने में लगे हैं पूर्व DGP
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी शहरों में ऊंची-ऊंची इमारतों के रूप में विकसित हुए कंक्रीट के जंगल में गुम हो गए गोरैया के आशियाने को बसाने में लगे हुए हैं।
गोरैया का ब्रीडिंग सीजन शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल के घर में जगह-जगह घौंसले बनाकर लगाए गए हैं। जिनमें 25 लकड़ी के हैं और 10 मिट्टी के। शहरों में विकास के नाम पर बनी बहुमंजिला इमारतों के रूप में विकसित हुए कंक्रीट के जंगल में गुम हुए गोरैया के बसेरों को दोबारा से बसाने में लगे पूर्व डीजीपी बृजलाल के प्रयासों से गोरैया के जोड़ों ने उनके घर में बने घौंसलों के भीतर अपना आशियाना चुनना शुरू कर दिया है। पिछले वर्ष भी बनाए गए घौंसलों में गोरैया के बच्चे निकले थे। अब पूर्व डीजीपी का घर गोरैया का घर बन गया है। जिनकी संख्या एक सैंकड़ा पार करने वाली है। इनके लिए पूर्व डीजीपी काकून, बाजरा और टूटे चावल के दाने गौरैया को खाने के लिए देते हैं। रोजाना रोटी के महीन टुकड़े भी गोरैया के लिए खाने को रखे जाते हैं। गोरैया को आमतौर पर धान की बालियों से लटक कर चावल के दाने चुगना बहुत भाता है।
पूर्व डीजीपी बृजलाल ने अपने गांव सिद्धार्थनगर से धान की बालियां मंगाई है। उनके भाई प्रत्येक वर्ष गांव से धान की कटाई के समय इन बालियों को गूंथकर भेजते हैं। पूर्व डीजीपी के गांव में पुरानी परंपरा रही है। गोरैया के लिए धान की बालियों के गुच्छे जिसे आमतौर पर सिघारी कहा जाता हैं। वे घर के बरामदे में टांगे जाते हैं। हालांकि यह परंपरा अब विलुप्त हो गई है।

उन्होंने कहा कि कंक्रीट के जंगल ने आजकल गोरैया का बसेरा खत्म कर दिया है। इंसान के साथ रहने वाली प्यारी सी गोरैया का संरक्षण अति आवश्यक है। नहीं तो हमारी साथी गोरैया हमेशा के लिए हमसे बिछड़ जाएगी।