Drugs का बढ़ता साम्राज्य

Drugs का बढ़ता साम्राज्य

नई दिल्ली। एक दावा यह भी है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पिछले दो-तीन वर्षो में 10 बड़े अभियान चलाकर लगभग 2,500 करोड़ रुपये की हेरोइन बरामद की है और इनमें कभी नाइजीरियाई तो कभी अफगानी नागरिकों तक को गिरफ्तार किया गया है। बीते चार-पांच वर्षो में यहां ड्रग्स तस्करों की आवक और गिरफ्तारियां भी बढ़ी हैं लेकिन देखने में आया है कि तमाम सख्तियों के बावजूद नशे का कारोबार और साम्राज्य पहले से कई गुना ज्यादा बड़ा हो गया है।

सुुशांत सिंह राजपूत केस से जुड़े ड्रग्स मामले में अब तक 16 गिरफ्तारी हो चुकी है जिनमें अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनका भाई शॉविक चक्रवर्ती सुशांत के लिए ड्रग्स खरीदने की बात कबूल कर चुके हैं। रिया चक्रवर्ती और उनके दूसरे सहयोगी ड्रग्स मामले में जेल में बंद हैं। सुशांत सिंह केस की जांच सीबीआई ने जब शुरू की तो जांच में दो और एजेंसी एनसीबी और ईडी शामिल हुए। अब तक की जांच से जो नतीजे सामने आए हैं उससे पता चलता है कि किस तरह बॉलीवुड और ड्रग्स रैकेट चलाने वालों में गहरा तालमेल है लेकिन यह विषय राजनीतिक भी हो चुका है।

नशा एक लत ही नहीं बल्कि बीमारी है और भारी मुनाफा का कारोबार भी। पहली बार कोई व्यक्ति नशा तफरीह के लिए करता है फिर उसे आदत होती जाती है और धीरे-धीरे ये आदत बीमारी में बदल जाती है। नशे की हालत में व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता, नशे की हालत में उसे कुछ होश नहीं रहता कि वो क्या कर रहा है और ये भी नहीं कहा जा सकता कि ऐसी हालात में वह क्या कर गुजरे। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद आत्महत्या को लगभग तीन महीने बीत चुके हैं और इन तीन महीनों में हुई जांच-पड़ताल भले ही कहीं न पहुंची हो, लेकिन एक निष्कर्ष की तरफ वह तेजी से झुकी है, वह बॉलीवुड में नशे के बढ़ते साम्राज्य का साफ संकेत देती है। फिल्मों के बारे में हमेशा से कहा जाता रहा है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं।

फिल्में असल में समाज से प्रेरित होती है और सामाजिक वास्तविकताओं को ही दर्शाती है। ऐसे में, जबकि आज पूरी फिल्म इंडस्ट्री को नशे में लिप्त बताया जा रहा है, तब यह सवाल उठता है कि कोई उस समाज के बारे में क्यों नहीं बात कर रहा है और उस समाज में क्यों नहीं झांक रहा, शायद जहां नशे की समस्या ज्यादा होने की संभावना हो। जहां तक आम समाज में युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने का सवाल है, तो आम तौर पर इसके लिए देश के एक समृद्ध राज्य पंजाब को कठघरे में खड़ा किया जाता है। संभव है कि इसके पीछे वहां पिछले दशकों में नशे के कारोबारियों को चोरी-छिपे मिले राजनीतिक संरक्षण और उड़ता पंजाब जैसे फिल्मी कनेक्शन की भी एक बड़ी भूमिका हो लेकिन पंजाब से बाहर निकलकर देखें तो पता चलता है कि देश के कुछ दूसरे राज्य भी नशे की भयानक चपेट में हैं।

शहरी-महानगरीय संस्कृति के विस्तार के साथ नशे के सेवन ने युवाओं में जो एक सामाजिक स्वीकृति हासिल की है, वह अमीरों से लेकर मध्यवर्गीय और गरीब तबकों में भी जोर पकड़ चुकी है। भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक बहुत बड़ी आबादी एक करोड़ सात लाख लोग नशीली दवाओं के आदी हैं। भांग खाने वालों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है। यह भारत के ग्रामीण इलाकों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। देश में लगभग 90-95 लाख लोग भांग खाते हैं, जबकि अफीम या अफीम मिश्रित नशीले पदार्थ का उपयोग करने वाले लोग भी 20-25 लाख होंगे। एक अनुमान के मुताबिक, मिजोरम में 45-50 हजार लोग नशे के आदी हैं, इनमें से आधे से अधिक लोग नशीले इंजेक्शन का उपयोग करते हैं। पंजाब में सबसे ज्यादा नशीली दवाओं की तस्करी होती है। भारत में सबसे ज्यादा नशीली दवाओं का उपयोग मिजोरम, पंजाब और मणिपुर में होता है। इन राज्यों की सीमाएं पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश आदि देशों से मिलती हैं और उन रास्तों से बहुतायत में नशीली दवाओं की तस्करी होती है।

मिजोरम में साल 2018 तक करीब 48,209 टन नशीली दवाइयां जब्त की गई हैं। पंजाब में करीब 39,064 टन नशीली दवाइयां बरामद की गई हैं। 2014 से 2018 तक चार सालों में दवा तस्करों के खिलाफ पूरे देश में लगभग 64,737 मामले दर्ज हुए जिसमें से 21,549 मामले के साथ पंजाब सबसे आगे रहा है। 9 दिसंबर 2014 को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011 से 2014 के बीच नशीले पदार्थों की तस्करी के पूरे देश में दर्ज किए गए 16,274 मामलों में उत्तर प्रदेश में 5786 मामले दर्ज किए गए, वहीं पंजाब में 4,308, केरल में 697, पश्चिम बंगाल में 498 और मध्य प्रदेश में 336 मामले दर्ज किए गए। इस दौरान दवा तस्करी के मामले में 64,302 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

एक दावा यह भी है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पिछले दो-तीन वर्षो में 10 बड़े अभियान चलाकर लगभग 2,500 करोड़ रुपये की हेरोइन बरामद की है और इनमें कभी नाइजीरियाई तो कभी अफगानी नागरिकों तक को गिरफ्तार किया गया है। बीते चार-पांच वर्षो में यहां ड्रग्स तस्करों की आवक और गिरफ्तारियां भी बढ़ी हैं लेकिन देखने में आया है कि तमाम सख्तियों के बावजूद नशे का कारोबार और साम्राज्य पहले से कई गुना ज्यादा बड़ा हो गया है। यह खुद पुलिस और हमारी सुरक्षा एजेंसियों को देखना होगा कि आखिर क्यों बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार और नेपाल से होने वाली मादक द्रव्यों की सप्लाई रुक नहीं रही है और यहां नशे के कारोबारियों का नेटवर्क खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है। एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि हर साल भारत में लोग नशे पर करीब 20 खरब रुपए खर्च करते हैं। वहीं, इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च की ओर से पीजीआई साइकेट्री विभाग ने पंजाब के मुख्य जिले अमृतसर, पटियाला और फरीदकोट में नशे की स्थितियों पर शोध किया है। इस शोध में सामने आया है कि नशे के लिए हर रोज लोग 300 से 400 रुपए तक खर्चा कर रहे हैं।

ध्यान रहे कि नशा सिर्फ एक खास इलाके तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि नशे के कारोबारी धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में भी अपना जाल फैला लेते हैं। जैसे नशे की समस्या आज पंजाब तक सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्य हरियाणा भी इसकी चपेट में है। इतना ही नहीं, दिल्ली के स्कूल-कॉलेजों के सामने भी बच्चों को नशे से दूर रखना चुनौती बना हुआ है। नशे की समस्या से जुड़ी चुनौतियों का दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह समस्या केवल फिल्म इंडस्ट्री तक ही सीमित नहीं है। यह असल में एक सामाजिक समस्या भी है जो परंपरागत पारिवारिक ढांचों के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव आदि के हावी होने और नैतिक मूल्यों के पतन के साथ और बढ़ती जा रही है। सरकार और समाज, दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वैसे यह समझ अब तक पैदा हो ही जानी चाहिए थी। जैसे-जैसे कोई व्यक्ति नशे का आदी होने लगता है वैसे-वैसे वह अपने सोचने-समझने की अपनी सारी ताकत खोने लगता है वहां से उसे वापस लाना मुश्किल होता है। कभी-कभी तो ऐसे हालात बन जाते हैं कि व्यक्ति को मनोवांछित ड्रग्स नहीं मिलने पर भीषण बेचैनी होने लगती है, क्योंकि उनका शरीर और दिमाग, दोनों इसकी मांग कर रहे होते हैं। ऐसी ही बेचैनी और छटपटाहट अक्सर लोगों को आत्महत्या की ओर ले जाती है। ऐसा नहीं है कि नशे की लत को छुड़ाना नामुमकिन हो लेकिन इसके लिए जरूरी है खुद उस व्यक्ति की इच्छाशक्ति, साथ ही परिवार और समाज का सहयोग व निरंतर इलाज।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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