पंजाब सरकार को केंद्र की चिट्ठी

पंजाब सरकार को केंद्र की चिट्ठी

नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी की सरकार ने दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार के अधिकार संशोधित करने का जो कानून बनाया है, उसपर बहस चल ही रही थी कि पंजाब को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। केंद्र सरकार के गृहमंत्रालय ने पंजाब के मुख्य सचिव को एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में एक गंभीर समस्या की तरफ राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया है। यह समस्या इसलिए हल्की नहीं हो जाती कि पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में भी ऐसे ही हालात हैं। गृहमंत्रालय की चिट्ठी में कही गयी बात को इसलिए भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि पंजाब में गैरभाजपा सरकार है। किसानों के आंदोलन में भी पंजाब और हरियाणा के किसान ही बढचढकर हिस्सा ले रहे हैं लेकिन केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने यूपी और बिहार के मजदूरों को बंधुआ बनाकर श्रम कानूनों से कहीं ज्यादा काम लेने का खुलासा किया है, उसपर पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को ऐक्शन लेना ही चाहिए । इस मामले में जांच पडताल तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी होनी चाहिए जहां पूर्व में ईंट भट्ठों पर बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया जा चुका है। बंधुआ और बाल मजदूरी की समस्या देश भर में है और इसका समाधान भी निकलना चाहिए।

केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को सूचित किया है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मानसिक रूप से कमजोर 58 लोग राज्य के सीमावर्ती जिलों में बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करते पाये गये और इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए राज्य को उचित कार्रवाई करनी चाहिए। पंजाब के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल को पता चला है कि इन 58 लोगों को अच्छी पगार के वादे के साथ पंजाब लाया गया था लेकिन इनका शोषण किया गया और इन्हें नशीले पदार्थ देकर अमानवीय स्थितियों में काम करने को बाध्य किया गया। गृह मंत्रालय ने बताया कि बीएसएफ ने सूचित किया है कि इन श्रमिकों को 2019 और 2020 में पंजाब के सीमावर्ती इलाकों गुरदासपुर, अमृतसर, फिरोजपुर और अबोहर से बचाया गया। पत्र के अनुसार, पूछताछ के दौरान पता चला कि अधिकतर श्रमिक मानसिक रूप से कमजोर थे और पंजाब के सीमावर्ती गांवों में किसानों के साथ बंधुआ मजदूरों की तरह काम कर रहे थे। छुड़ाये गये लोग गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के थे और बिहार तथा उत्तर प्रदेश के सुदूर इलाकों के रहने वाले थे। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में सूचना मिली है कि मानव-तस्करी करने वाले गिरोह पंजाब में काम करने के लिए ऐसे मजदूरों को अच्छी पगार का वादा करके उनके पैतृक स्थानों से काम करने के लिए बुलाते हैं, लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनका शोषण किया जाता है, बहुत कम वेतन दिया जाता है और उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता है। पंजाब सरकार से इस मामले में की गयी कार्रवाई के बारे में भी प्राथमिकता से सूचित करने को कहा गया है।

इसमें चैंकाने वाली बात किसानों को लेकर है। माना जा रहा है कि कारखानों, ईंट भट्ठों, होटलों ढाबों आदि में बंधुआ मजदूरी करायी जाती है लेकिन केंद्र सरकार की चिट्ठी में किसानों व आढ़तियों का विशेष रूप से जिक्र किया गया है। किसान और आढ़तियों पर ही यह आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने अपने निजी स्वार्थ के चलते किसानों के लिए बनाए गये नये कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन खड़ा किया है। पंजाब सरकार इस आंदोलन का खुलकर समर्थन भी कर रही है।

इससे पूर्व फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सीधे किसानों के खातों में भेजने के केंद्र के दबाव के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने गत 1अप्रैल को 'आढ़तियों' को भरोसा दिया कि उनकी सरकार उनके (आढ़तियों के) माध्यम से किसानों को भुगतान करने की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने का समर्थन करेगी। सिंह ने 'आढ़तियों' को यह भरोसा ऐसे समय दिया है जब केंद्र सरकार ने खाते में सीधे पैसे भेजने की व्यवस्था को लागू करने के मामले में अब कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया है। नयी व्यवस्था के तहत सरकारी एजेंसियां किसानों को गेहूं का एमएसपी भुगतान आढ़तियों को दरकिनार कर सीधे उनके खाते में करेंगी। फेडरेशन ऑफ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ पंजाब के बैनर तले आढ़तियों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की। इस दौरान सिंह ने उनसे कहा कि राज्य में आढ़ती खरीद प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा बने रहेंगे। आढ़तियों के साथ हुई ऑनलाइन बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा, 'मेरे दरवाजे आपके लिए खुले हुए हैं। इस बैठक में आढ़तियों ने उनके द्वारा किसानों को भुगतान करने की पुरानी व्यवस्था कायम रखने का मुद्दा उठाया।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने 27 मार्च को पंजाब सरकार को पत्र लिखकर किसानों को एमएसपी का भुगतान सीधे उनके खातों में करने को कहा था। मुख्यमंत्री ने आढ़तियों से कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय चाहते हैं, जो विभिन्न राज्यों के चुनाव प्रचार में व्यस्त नजर आ रहे हैं। उन्होंने आढ़तियों से कहा कि उन्हें प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय मिलने की उम्मीद नहीं है, लेकिन वह और उनकी सरकार केंद्र सरकार को लिखना जारी रखेगी और इस मुद्दे पर उसका दरवाजा खटखटाती रहेगी। मुख्यमंत्री ने खुलासा किया कि पंजाब के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री भारत भूषण आशु ने इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर चर्चा की थी।

इसी बीच केंद्र सरकार की चिट्ठी का मामला सामने आ गया है। केंद्र सरकार ने पंजाब के किसान जमींदारों पर सीधे-सीधे आरोप लगाया है। किसानों के आंदोलन को तोड़ देने की साजिश के तौर पर इसे देखा जा रहा है। पहले भी कहा गया था कि इस आंदोलन को खालिस्तान समर्थक चला रहे हैं। इसके बाद विपक्षी राजनीतिक दलों विशेष रूप से कांग्रेस को आंदोलन के पीछे खड़ा बताया गया। अब पंजाब के किसानों पर यूपी और बिहार के मजदूरों को बरगलाकर लाने और फिर बंधुआ बनाकर काम लेने का आरोप लगाया जा रहा है। दिल्ली की सीमा पर 125 दिन से बैठे किसानों ने संसद कूच की घोषणा कर रखी है। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह जानकारी दी है। किसानों के नेता कह रहे हैं कि पांच अप्रैल को फूड कारपोरेशन आफ इंडिया बचाओ दिवस मनाया जाएगा। इसके बाद 10 अप्रैल को चैबीस घंटे के लिए कुंडली, मानेसर-पलवल को ब्लाक किया जाएगा। आंदोलनरत किसान 13 अप्रैल को बैशाखी त्योहार भी दिल्ली की सीमा पर मनाएंगे और 14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर किसानों ने संविधान बचाओ दिवस मनाने का कार्यक्रम भी तय कर रखा है। इतना ही नहीं, भाजपा के माडल राज्य गुजरात में किसान

नेता राकेश टिकैत की किसान महापंचायत भी होने वाली है। इस महापंचायत का आयोजन भाजपा के ही पूर्व नेता शंकर सिंह बाघेला करेंगे। केन्द्रीय गृहमंत्रालय के पंजाब सरकार को पत्र के पीछे इन सब बातों को भी देखा जा रहा है। (हिफी)

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