महाआंदोलन की तैयारी में किसान संगठन

महाआंदोलन की तैयारी में किसान संगठन

नई दिल्ली। कृषि बिलों को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद से ही देश भर के किसानों का आंदोलन और आक्रमक हो गया है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी समेत कई राज्यों में किसान और कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं। कई जगहों पर पुलिस ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया है। वहीं यूपी में हजारों कार्यकर्ताओं को नजरबंद कर दिया है। रेल पटरी पर लेटे लोग दर्शा रहे है कि किसानों के आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली है।

हरियाणा सहित देश भर में किसान आंदोलन को तेज करने की अगली रणनीति कुरुक्षेत्र में बनाई जाएगी। देश के तमाम किसान संगठनों के प्रतिनिधि 8 अक्टूबर को कुरुक्षेत्र की कंबोज धर्मशाला में जुटेंगे। भारतीय किसान यूनियन बैठक की तैयारियों में जुट गई है। यूनियन की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि पूरा देश पूंजीपतियों का गुलाम होने जा रहा है। राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है। इसलिए इन्हें अब किसानों पर केंद्र सरकार किसी भी समय थोप सकती है, जिसका डटकर विरोध किया जाएगा।

देश के कई मुख्य किसान नेताओं ने अगले आंदोलन को लेकर चर्चा की और तय किया गया कि किसान आंदोलन को पूरे देश में तेज करने के लिए 8 अक्तूबर को सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक कुरुक्षेत्र में सुबह 11 बजे शुरू होगी। भाकियू के प्रवक्ता राकेश बैंस ने बताया कि यह बैठक ठोस निर्णय होने तक चलेगी। इसलिए मीटिंग में एक या 2 दिन लग सकते हैं। सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से अनुरोध है कि बैठक में उपस्थित होकर आंदोलन को लेकर अपने सुझाव दें। राकेश ने कहा कि नए कानूनों को लेकर किसानों में काफी गुस्सा है। धान सीजन खत्म होने के बाद पूरे दमखम से आंदोलन शुरू किया जाएगा।

भारतीय किसान यूनियन समेत विभिन्न किसान संगठनों के देशभर में प्रस्तावित चक्का जाम में 31 संगठन शामिल हुए। कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, अकाली दल, टीएमसी समेत कई पार्टियों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को समर्थन दिया। बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ट्रैक्टर रैली निकाली। वहीं, पंजाब में तीन दिवसीय रेल रोको अभियान किया गया, जिसे अन्य किसान संगठनों ने भी समर्थन दिया। विधेयकों पर किसानों की आशंकाओं के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, कृषि उपज को आवश्यक वस्तु अधिनियम से हटाने और बिल के प्रावधानों की पैरवी अतीत में कांग्रेस ने की थी। कांग्रेस की यह राजनीति देश को कमजोर करेगी।

कृषि से संबंधित विवादित विधेयक इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। कई राज्यों के किसान आंदोलन के मूड में हैं और पिछले कई दिनों से उनका विरोध प्रदर्शन जारी है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख सहयोगी अकाली दल की एकमात्र मंत्री हरसिमरत कौर ने तो इसके विरोध में मंत्रिपद भी छोड़ दिया लेकिन सरकार इससे टस से मस नहीं हुई और विधेयक दोनों सदनों में हंगामे के बीच पास हो गया। विपक्षी पार्टियों और कई किसान संगठनों का आरोप है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर असर पड़ेगा, वहीं सरकार इन आरोपों को खारिज करती है। सरकार का कहना है कि कृषि बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और अनाज मंडियों की व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा रहा है, बल्कि किसानों को सरकार विकल्प दे रही है। भारत में किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है। देश में सहजानंद सरस्वती जैसे किसान नेता हुए हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राज में यूनियन का गठन किया था लेकिन राजनीतिक दलों पर ये भी आरोप लगते हैं कि समय समय पर सरकार उन्हें लुभाने की कोशिश तो करती है, लेकिन कभी उन्हें वोट बैंक नहीं मानती।

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