जेईई व नीट परीक्षा का मुद्दा गर्माया

जेईई व नीट परीक्षा का मुद्दा गर्माया

लखनऊ। नीट और जेईई की परीक्षाएं स्थगित करने की मांग का समर्थन करते हुए गैर भाजपा शासित प्रदेशों के सात मुख्यमंत्रियों ने 26 अगस्त को फैसला किया कि वे इस मुद्दे पर संयुक्त रूप से उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे। द्रमुक और आम आदमी पार्टी ने भी कोरोना संकट के समय इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग का समर्थन किया है।

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने जेईई और नीट एग्जाम कराने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन दोनों एग्जाम को हरी झंडी दे दी है, जबकि कांग्रेस समेत शिवसेना और टीएमसी छात्रों की सुरक्षा का हवाला देते हुए एग्जाम स्थगित करने की मांग कर रहे हैं। एनटीए के इसी फैसले के खिलाफ 27 अगस्त को यूथ कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की। पुलिस लगातार प्रदर्शनकारियों को रोकने का प्रयास कर रही थी। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। इस बैठक में कोरोना काल में नीट, जेईई परीक्षाओं के आयोजन पर चर्चा हुई। बैठक में एग्जाम कराने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने पर आम सहमति बनी। नीट, जेईई एग्जाम कराने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

कोरोना वायरस के हवाले से संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और राष्ट्रीय योग्यता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) को स्थगित करने की याचिका 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने के बाद भी इनके आयोजन पर सवालिया निशान लगा हुआ है। इसका कारण कोविड-19 महामारी के मद्देनजर विभिन्न वर्गों का अलग-अलग नजरिया है। एक तरफ इसे छात्रों के भविष्य के लिए जरूरी बताया जा रहा है तो दूसरी तरफ इसके विरोधी आपदा में छात्रों की मुश्किलों की हवाला देकर इसे रुकवाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। इस मामले में राजनीति भी जोर पकड़ रही है। जेईई (मेन) की परीक्षा 1 से 6 सितंबर के बीच जबकि नीट की परीक्षा 13 सितंबर को होगी। वहीं जेईई अडवांस की परीक्षा 27 सितंबर को होगी।

पहले जेईई की परीक्षा 18 जुलाई से 23 जुलाई के बीच और नीट की परीक्षा 26 जुलाई को होनी थी। हालांकि, स्टूडेंट का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार चाहे तो डेट को बढ़ा सकती है। इन स्टूडेंट का तर्क है कि 2 महीने डेट बढ़ने से बहुत राहत मिल सकती है और ऐसी परिस्थिति में परीक्षा देना खतरे से खाली नहीं है। सोशल मीडिया पर इनके आंदोलन को कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने भी सपोर्ट किया लेकिन इनके काउंटर में कई ऐसे स्टूडेंट भी सामने आए हैं जो समय पर परीक्षा चाह रहे हैं। इनका तर्क है कि पहले से ही यह लेट हो चुका है और इसकी गारंटी नहीं है कि दो महीने बाद हालात पूरी तरह सामान्य हो जाए। हालांकि इनकी भी मांग थी कि परीक्षा के दौरान कोविड से बचने के लिए जरूरी इंतजाम हो। इसके बाद सरकार ने कहा कि उसने सभी पक्षों की बात सुनी है और ऐसा लगता है कि एहतियात के उपायों के साथ परीक्षा करवाना ही सही होगा।

नीट और जेईई परीक्षा में अब एक महीने से भी कम समय बचा है और सुप्रीम कोर्ट ने भी जेईई मेन और नीट परीक्षा आयोजित कराने के लिए अनुमति दे दी है। जबकि छात्र कोरोना संकट के कारण परीक्षा को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी जेईई और नीट परीक्षाओं का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोनों परीक्षाओं को दिवाली तक स्थगित करने के लिए शिक्षा मंत्रालय को निर्देश देने की मांग की है। उन्होंने चेताया है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो विद्यार्थी आत्महत्या का रास्ता अपनाएंगे। मोदी को लिखे अपने महत्वपूर्ण पत्र में स्वामी ने कहा, ''मेरी राय में परीक्षा आयोजित करने से देश भर के युवाओं द्वारा बड़ी संख्या में आत्महत्याएं की जा सकती हैं।'' इससे पहले राज्यसभा सांसद स्वामी ने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल से भी परीक्षाएं स्थगित करने का आग्रह किया था। उन्होंने इसका जिक्र करते हुए पत्र में कहा कि दिवाली तक परीक्षाएं स्थगित करने के सुझाव के प्रति पोखरियाल को भी सहानुभूति है। उन्होंने कहा कि हालांकि इसे प्रधानमंत्री की सहमति की जरूरत है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली सरकार ने भी परीक्षाएं रद्द करने की मांग उठाई है।

नीट और जेईई की परीक्षाएं स्थगित करने की मांग का समर्थन करते हुए गैर भाजपा शासित प्रदेशों के सात मुख्यमंत्रियों ने 26 अगस्त को फैसला किया कि वे इस मुद्दे पर संयुक्त रूप से उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे। द्रमुक और आम आदमी पार्टी ने भी कोरोना संकट के समय इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग का समर्थन किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ डिजिटल बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि इन परीक्षाओं को रोकने के लिए राज्यों को उच्चतम न्यायालय का रुख करना चाहिए। हालांकि झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि न्यायालय जाने से पहले मुख्यमंत्रियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर परीक्षाओं को टालने की मांग करनी चाहिए।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सवाल किया कि आज कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है और संकट बढ़ गया है तो परीक्षाएं कैसे ली जा सकती हैं? राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुदुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने भी इन परीक्षाओं को स्थगित करने की पैरवी की और केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ न्यायालय का रुख करने के विचार से सहमति जताई। उधर, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नीट और जेईई की परीक्षाएं स्थगित करने की मांग करते हुए केन्द्र सरकार से छात्रों के चयन के लिये वैकल्पिक पद्धति पर काम करने का अनुरोध किया। सिसोदिया ने कहा, ''सेंटर बिल्कुल आंख बंद करके बैठा है कि इस देश की जमीनी स्थिति क्या है। वो कह रहे हैं कि हम बहुत अच्छे प्रोटोकॉल फॉलो करेंगे, व्यवस्था करेंगे। गृह मंत्री तो बहुत अच्छी व्यवस्था में रहते हैं, हम सब बहुत अच्छी व्यवस्था में रहते हैं। हमारे स्वास्थ्य मंत्री को कोरोना हुआ, गृह मंत्री जी को हुआ। तमाम राज्यों के राज्यपालों को, मुख्यमंत्रियों को कोविड हो रहा है। ये तो सब व्यवस्था में हो रहा है न। आज आप उसी व्यवस्था के भरोसे 28 लाख बच्चों को स्कूल में भेज दोगे और कहोगे कि हम सब ठीक कर देंगे, तो ये तो हो नहीं सकता।" इस मामले में बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव ने मोदी सरकार को घेरते हुए ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि "नरेंद्र मोदी जी, छात्र आपकी तरह 8000 करोड़ के चार्टर्ड प्लेन से आईआईटी, जेईई की परीक्षा देने नहीं जाते हैं। वह ट्रेन और बस में लदकर जाते हैं, जो अभी चल नहीं रहा। तो आपको इतनी-सी बात समझ नहीं आ रही है कि वह जाएंगे कैसे परीक्षा देने। माल लेकर उनकी जान के दुश्मन क्यों बने हैं?"

सोचने वाली बात है कि जहां कोरोना संकट की वजह से पहले ही लाखों लोगों की नौकरी जा चुकी है, राज्य और केंद्र के सभी विकास कार्यों पर रोक लगा दी गई है और राज्य-केंद्र सरकारों ने नई नियुक्तियों पर अघोषित रोक लगा रखी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि छात्रों के जीवन को संकट में क्यों डाला जा रहा है। कोरोना संकट से निपटने के लिए तार्किक व व्यापक रणनीति की जरूरत है। बच्चे हमारे देश का भविष्य है। उनके जीवन को खतरे में डालना देश के भविष्य को संकट में डालने जैसा है।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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