कोविड संक्रमण के बीच नौकरी का खतरा

कोविड संक्रमण के बीच नौकरी का खतरा
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नई दिल्ली। वर्तमान में वैश्विक संकट के रूप में कोविड-19 भी आ गया है। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने बड़ी चुनौती तैयार कर दी है। विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थाएं भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान नकारात्मक लगा रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान जताया है।

कोविड-19 की वजह से जहां लगातार मरने वालों की संख्या में दिन-प्रति-दिन बढ़ोतरी देखने को मिल रही है वहीं इसकी वजह से लोगों को अपनी नौकरियां से भी हाथ धोना पड़ रहा है। कोरोना वायरस के चलते लागू देशव्यापी लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया। भारत की इकोनॉमी इस समय आजादी के बाद चैथी बार मंदी की स्थिति में जाती दिख रही है। यह अब तक की सबसे भयावह मंदी हो सकती है। ऐसे में एक संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी यानि सीएमआईई ने रोजगार या नौकरियों से जुड़े कुछ आंकड़े जुटाएं हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक जून में चालीस लाख लोगों को नौकरी वापस मिली थी, वहीं जुलाई में पचास लाख लोग नौकरी से हाथ धो बैठे। जिन लोगों ने अपना काम खो दिया उनका कुल आंकड़ा एक करोड़ 90 लाख है। लोगों की नौकरियां जाने के पीछे अर्थव्यवस्था है। अर्थव्यवस्था का धीमापन सिर्फ नौकरियां ही नहीं लेता बल्कि वो पूरे माहौल को डरावना बना देता है। जब देश में लॉकडाउन लगा था तो मार्च-अप्रैल में डिजिटल लेनदेन में गिरावट देखी गई थी। कुछ खरीदना बेचना हो ही नहीं रहा था मगर फिर अनलॉक हुआ। डिजिटली पेमेंट जो हो रहा था वो फिर से होने लगा लेकिन इस बीच एक बात और हुई, लोग घरों में कैश जमा करने लगे। आंकड़े बताते हैं कि लोग पेमेंट तो डिजिटल तरीके से करते रहे मगर असुरक्षा का वातावरण कुछ ऐसा बना कि कैश खर्च करने से अधिकतर लोग बचते रहे।

हालांकि, कोरोना वायरस ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया है, लेकिन भारतीय जनता रुपये के नोट से दूरी नहीं बना रही है। हैरानी की बात है कि महामारी के दौरान भी सिस्टम में नकदी का बहाव बना हुआ है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्रीय बैंक ने नोटबंदी के दौरान जारी किए गए नोटों की तुलना में लगभग दोगुना नोट जारी किए हैं। नोटबंदी के दौरान सिस्टम में नकदी की मात्रा सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी। चार साल पहले 2016 में काले धन की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 1,000 और 500 के नोटों को बंद कर दिया था। उसके बाद डिजिटल पेमेंट में उछाल आया और नकदी का सर्कुलेशन गिरकर जीडीपी के 5.9 फीसदी के बराबर आ गया। ये ऐतिहासिक रूप से नकदी के इस्तेमाल का सबसे निचला स्तर था। दिसंबर 2016 में आरबीआई ने जितने नोट जारी किए थे, वह जीडीपी के

5.96 प्रतिशत के बराबर था लेकिन इसके बाद अर्थव्यवस्था में फिर से नकदी बढ़ती गई और महामारी के आने से पहले, फरवरी 2020 में ये जीडीपी के 11.11 फीसदी के स्तर पहुंच गई। लॉकडाउन हटने के बाद जून 2020 में अर्थव्यवस्था में नकदी का स्तर तेजी से बढ़ा और यह जीडीपी के 12.6 फीसदी के बराबर पहुंच गया। जब-जब समाज में अस्थिरता बनती है तब-तब नकदी का इस्तेमाल बढ़ जाता है। संकट के समय में लोग नकद पैसे की तलाश करते हैं. वे खर्च करने की बजाए नकदी बचाना चाहते हैं। अब इस महामारी ने आर्थिक संकट को और बढ़ा दिया है और लोग और ज्यादा रुपये हाथ में रखना चाहते हैं। महामारी के संकट के चलते संपर्क रहित लेन-देन यानी डिजिटल ट्रांजेक्शन में वृद्धि हुई है, लेकिन भारत के अधिकांश लोग अब भी हाथ में नकदी होने पर ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से संकट में थी। तमाम सेक्टर ग्रोथ की समस्या से जूझ रहे थे। बेरोजगारी की दर 45 साल के रिकॉर्ड स्तर पर थी। ग्रामीण मांग चार दशक के न्यूनतम स्तर पर थी। वास्तविक जीडीपी 11 साल के न्यूनतम स्तर तो नॉमिनल जीडीपी 45 साल के न्यूनतम स्तर पर थी। कृषि क्षेत्र 4 साल के न्यूनतम स्तर पर था। हाल में केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से जीडीपी के आंकड़े जारी किए गए थे। इन आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019-20 में जीडीपी विकास दर इसके पिछले साल के 6.1 फीसद से घटकर 4.2 फीसद रह गई। 2019-20 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च में जीडीपी की रफ्तार कम होकर सिर्फ 3.1 फीसद पर आ गई। यह तब हुआ जब पिछले वर्ष 2019 में वित्त मंत्रालय ने ढेरों सुधार के जरिये अर्थव्यवस्था में रिकवरी की बात कही थी।

वर्तमान में वैश्विक संकट के रूप में कोविड-19 भी आ गया है। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने बड़ी चुनौती तैयार कर दी है। विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थाएं भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान नकारात्मक लगा रही हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने वित्त वर्ष 2021 के लिए रियल जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान-6.8 फीसद लगाया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान जताया है। मौजूदा वित्तीय साल में आर्थिक गतिविधियों की वजह से जीडीपी की विकास दर कई गुना गिरने का अनुमान है। सबसे ज्यादा चिंता होटल और टूरिज्म इंडस्ट्री को लेकर है। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) को अंदेशा है कि ट्रेवल, टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में कोरोना संकट की वजह से 10 लाख करोड़ से ज्यादा का आर्थिक नुकसान होने और करोड़ों नौकरियां जाने का अंदेशा है। सीआईआई नेशनल समिति, टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी के सलाहकार दीपक हक्सर ने कहा कि ट्रेवल, टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में पिछले साल के मुकाबले इस साल 70 फीसद से 80 फीसद तक का नुकसान हुआ है। हम अनुमान लगा रहे हैं कि 10 से 15 लाख करोड़ का नुकसान होगा, अगर बिजनेस इसी तरह से आगे चलेगा तो जॉब लॉस तकरीबन तीन से चार करोड़ तक होने का अनुमान है।

यह वक्त मोदी सरकार के लिए चुनौतियों से भरा हुआ है। कोविड-19 के तेजी से बढ़ते संकट के बीच सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ चीन जैसे देशों के साथ सीमा विवाद को भी हल करना है। लॉकडाउन की सफलता और असफलता से जुड़े तमाम प्रश्नों का जवाब भी देना है। धराशायी होते राजस्व के आंकड़ों के बीच 130 करोड़ आबादी को सुव्यवस्थित चला कर भी दिखाना है। मूडीज के ही आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के ऊपर कर्ज का भार कुल जीडीपी के 72 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2020 में 84 फीसदी होने जा रहा है। यह स्थिति किसी अर्थव्यवस्था के लिए भयावह होती है और शायद डब्ल्यूएचओ ने ठीक ही कहा था कि भारत का अभी सबसे बुरा दौर आना बाकी है। उद्योग जगत का यह आकलन बताता है कि अर्थव्यवस्था का संकट काफी बड़ा है। जैसे-जैसे कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं, अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार पर उसका असर पड़ता दिख रहा है। आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था की सेहत कितनी सुधरेगी ये कोरोना संकट की दिशा और दशा पर काफी हद तक निर्भर करेगा।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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