अनलाॅक में बढ़ा वायु प्रदूषण बारिश से मिली राहत

अनलाॅक में बढ़ा वायु प्रदूषण बारिश  से मिली राहत

लखनऊ। कोरोना की कमर तोड़ने के लिए शुरु किये गये लॉकडाउन में कई राज्यों की हवा साफ होने के कारण लोगों ने राहत की सांस ली थी लेकिन जब जून से देश अनलाॅक हुआ है तबसे हवा में जहरीले पदार्थ घुलने लगे हैं। जुलाई की शुरुआत से पंजाब में अच्छी बारिश से न सिर्फ लोगों को उमस और गर्मी से राहत मिली बल्कि हवा भी साफ हो गई है। बारिश होने के बाद एयर क्वालिटी इंडेक्स 5 जुलाई को गुड कैटेगरी में पहुंच गया। लॉकडाउन में जब गाड़ियां बहुत कम चल रही थीं उस दौरान शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स एवरेज 35 से 40 तक रहा था। मई के बाद से जैसे ही छूट मिली और गाड़ियां चलने लगी, कमर्शियल एक्टिविटीज भी शुरू हुई तो एयर क्वालिटी इंडेक्स भी बढ़ने लगा था।

चंडीगढ़ में एक्यूआई 70-80 के बीच पहुंच गया था। पिछले दो दिनों में हुई बारिश के बाद एयर क्वालिटी इंडेक्स 36 रिकॉर्ड हुआ। एयर क्वालिटी इंडेक्स अगर 50 से नीचे रहे तो इसे अच्छा माना जाता है। इसका मतलब है कि हवा साफ है जिससे किसी को दिक्कत नहीं होगी। चंडीगढ़ की तुलना दिल्ली से की जाती है। दिल्ली में 5 जुलाई को 77 एक्यूआई था जबकि लुधियाना में 134 था। इतना एयर क्वालिटी इंडेक्स का मतलब यह भी है कि जितनी साफ हवा खाने के लिए आप हिल स्टेशन में जाते हैं करीब उसी तरह इस वक्त चंडीगढ़ में एयर क्वालिटी है। अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान चंडीगढ़ में एयर क्वालिटी इंडेक्स 16 तक पहुंचा था।

एयर पॉल्यूशन के और अन्य सोर्स लेवल को जानने के लिए प्रशासन की तरफ से स्टडी किसी एक्सपर्ट एजेंसी से कराई जाएगी ताकि किस-किस चीज से यहां पर एयर पॉल्यूशन हो रहा है यह पता चल सके और उसे रोकने के लिए उसी तरह से इंतजाम किए जाएंगे। एक स्टडी ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट भी करवाएगा, इसमें व्हीकल्स की डेंसिटी यानी एरिया वाइज और टाइम वाइज कितनी गाड़ियां चलती हैं, उसको लेकर होगी।

शहर में एयर पॉल्यूशन के बढ़ने की बड़ी वजह गाड़ियां हैं। चंडीगढ़ में गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन पूरे देश में सबसे ज्यादा है और पर कैपिटा गाड़ियों की संख्या 4 की है। हर तीन महीनों में एवरेज 10000 नई गाड़ियां यहां रजिस्टर्ड होती हैं और 1 साल में करीब 40 से 45 हजार। इसके अलावा साथ लगते राज्यों से हर रोज गाड़ियों का आना जाना शहर में है। ऐसा माना जाता है कि यहां की हवा को खराब करने में करीब 40 फीसदी योगदान गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का है। इसके साथ ही साथ लगते राज्यों में जलाई जाने वाली पराली भी एक वजह है।

पीजीआई के कम्युनिटी मेडिसिन एंड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ व पंजाब यूनिवर्सिटी के एनवायरनमेंट स्टडीज ने संयुक्त रूप से प्रदूषण के 25 साल के आंकड़ों का आकलन किया है। उनके मुताबिक चंडीगढ़ में प्रदूषण के स्वरूप में बदलाव देखने को मिला है। चंडीगढ़ के औद्योगिक व व्यावसायिक क्षेत्र में प्रदूषण कम हो रहा है तो रिहायशी व इंस्टीट्यूशनल एरिया में प्रदूषण की मात्रा हर साल बढ़ रही है। शोधकर्ताओं के मुताबिक औद्योगिक व व्यावसायिक क्षेत्र में क्रमशः 1.3 फीसदी व 0.4 फीसदी की दर से हर साल पीएम-10 की मात्रा कम हो रही है, जबकि रिहायशी, इंस्टीट्यूशनल और ग्रामीण क्षेत्र में पीएम 10 की मात्रा 0.3 फीसदी, 1.3 फीसदी और 1.1 फीसदी की दर से हर साल बढ़ रही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक रिहायशी इलाकों में पीएम 10 बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें प्रमुख रूप से वाहनों की बढ़ती संख्या, एक मौसम में पराली का जलना और खुले में नगर निगम के कूड़े को जलाना है। वाहनों के टायरों के घिसने से निकलने वाले कण की भी पीएम 10 की बढ़ोतरी में अहम भूमिका है। वहीं, औद्योगिक व व्यावसायिक क्षेत्रों में कम होने की वजह प्रदूषण नियंत्रण की नीति को सख्ती से लागू करना है। शोधकर्ताओं ने रिहायशी इलाके के लिए सेक्टर-39, औद्योगिक क्षेत्र के लिए फेज वन, व्यावसायिक के लिए सेक्टर-17, इंस्टीट्यूशनल के लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज व ग्रामीण क्षेत्र के लिए कैंबवाला गांव को लिया है।

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि चंडीगढ़ में नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) तेजी से बढ़ा है। साल 2000 से देखें तो व्यवसायिक क्षेत्र में 1.1 फीसदी, इंस्टीट्यूशनल में 24.8 फीसदी, औद्योगिक में 27.4 फीसदी, रिहायशी इलाकों में 20.1 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 20.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। नाइट्रोजन ऑक्साइड का बढ़ना चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि पीएम 2.5 में इसका काफी हिस्सा होता है। शीतकाल में पराली जलाने से उत्पन्न धुआं नाइट्रोजन उत्सर्जन का महत्वपूर्ण सोर्स माना गया है। इससे बच्चों व बड़ों में सांस की बीमारी बढ़ने की संभावना ज्यादा रहती है। मानसून सीजन चंडीगढ़ के लिए न सिर्फ गर्मी बल्कि प्रदूषण के लिए भी राहत लेकर आता है। जून से लेकर सितंबर तक पीएम 10 के स्तर में 47-67 फीसदी व नाइट्रोजन आक्साइड में 38 से 57 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। बारिश से कण नीचे आते हैं और बह जाते हैं। सबसे अधिक प्रदूषण दिसंबर के महीने में दर्ज किया गया है, क्योंकि इस महीने में वायुमंडलीय सतह नीचे आती है और कण ऊपर जाने के बजाय नीचे रहते हैं।

लॉकडाउन की वजह से भारत की राजधानी दिल्ली समेत तमाम दूसरे शहरों में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में भारी कमी आई लेकिन भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल लाखों लोगों की मौत होती है और बच्चों को छोटी उम्र में ही कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पर्यावरण संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की नवंबर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण मिलकर, कुछ गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। वायु प्रदूषण के लिए बाहरी धूल के महीन कण यानी पार्टिकुलेट मैटर 2.5, ओजोन और घरेलू वायु प्रदूषण जैसे तत्व जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण से क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज जैसी सांस की गंभीर बीमारियों के 49 प्रतिशत मामले सामने आते हैं और ये इस बीमारी से होने वाली करीब आधी मौतों के लिए जिम्मेदार है। यही नहीं फेफड़े के कैंसर से करीब 33 फीसदी लोगों की मौत होती है। साल 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक, विश्व के 20 में से 14 सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं। लाॅकडाउन के दौरान भारत के सभी शहरों में पर्यावरण स्वच्छ हुआ था लेकिन अनलाॅक के बाद उन शहरों में भी प्रदूषण बढ़ गया।

(मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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