हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया

लखनऊ। इस कोरोना महामारी ने कैसे कैसे दिन दिखाये हैं। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को देशवासियों से स्वयं पर जनता कर्फ्यू लगाने का आह्वान किया। सभी लोगों ने उत्साह के साथ उसका पालन किया। इसके बाद 24 मार्च से लाकडाउन प्रारंभ हुआ था जो पांचवें चरण के बाद अनलाॅक पीरियड में आ गया है। सभी को अलग अलग तरीके से अनुभव हुए हैं। कोई पर्यावरण के शुद्ध होने से खुश है तो जिनके रोजी रोजगार प्रभावित हुए, उनको यही चिंता सता रही थी कि जल्दी उनको अपना धंधा करने का मौका मिले। अब छोटे बडे काम शुरू हो चुके हैं। इसी तरह दूसरे राज्यों में जो लोग काम कर रहे थे, वे ज्यादातर तो कटु अनुभव लेकर ही लौटे हैं। कुछ भाग्यशाली श्रमिक थे जिनके मालिक ने उनको परिजनों की तरह रखा और मजदूरों ने अपने घर जाने की इच्छा जतायी तो उन्हें ट्रेन से और किसी समर्थ व दयालु मालिक ने तो हवाई जहाज से भी श्रमिकों को उनके घर भेजा है। यह सही है कि ऐसे लोग उंगली पर गिने जाने भर को रहे बाकी लोगों को तो अकल्पनीय कष्ट झेलने पडे़ हैं। गांवों से जब गये थे तो सपने ही सपने थे। उनको अपने साथ जो ले गये थे, वे भी अपने थे। इन सपनों और अपनों के बीच भी कुछ अपने थे जो गांव में ही छूट गये थे। ये अपने सिर्फ इंसान ही नहीं पशु पक्षी, गली चैबारे, नदी नाले और बाग बगीचे भी थे। लाकडाउन के चलते गांवों में वापस आए ऐसे कुछ लोगों से बात की तोउनका पश्चाताप तो साफ-साफ दिखा ही, साथ ही वे गांव और गांव के समर्थ लोगों से कुछ शिकायतें भी छिपा नहीं पाए। उनकी बातों से लगा कि जैसे वे अपने गांव से कह रहे हों प्यार का दोनों से दस्तूर निभाया न गया, हम से आया न गया, तुमसे बुलाया न गया। हरदोई के जूनियर हाई स्कूल समरेहटा में 14 दिन का एकांतवास (क्वारंटीन) कर रहे जयचंद, रामखेलावन, पतराखन समेत लगभग एक दर्जन युवक किशोरावस्था में ही मुम्बई चले गये थे। राम खेलावन बताते है कि मुम्बई चले तो गये लेकिन गांव की बहुत याद आती थी। गांव ही क्या प्रदेश की भी याद आती थी जहाँ आज रोजगार के भरपूर अवसर सृजित किये जा रहे है लेकिन तब कोई सरकार हमारे कदम रोककर यह नहीं कह सकी थी कि परदेस क्यों जा रहे हो, यही पर रोजगार मिलेगा। आम के पेड़ पर चढकर पके आम खाना, जामुन तोड़ना, आलू भूनकर खाना, गन्ना चूसना, खेत में भुट्टे भूनकर खाना और गांव के समीप से निकली शारदा नहर में सभी लोगों का साथ साथ नहाना कितने ही दिनों तक याद रहा। गांव में चुराकर गन्ना तोड़ते थे तो डांट पडती थी लेकिन उसमें भी अपनत्व होता था, वहां तो हम सभी उत्तर भारतीयों को गैर समझकर खदेड़ा गया था। हम तब भी वहां से भागकर आये थे लेकिन यहां गांव में प्रधान जी बीपीएल कार्ड तक नहीं बना रहे थे। मजदूरी कम थी लेकिन गांव की राजनीति ने मनसे कार्यकर्ताओं की ज्यादतियों को भी पीछे कर दिया था। मंत्री जी (हरदोई के एक बड़े नेता) का खासमखास रोज कहता था दारू पिलाओ वरना किसी उल्टे सीधे मुकदमे में फंसा दूंगा। पुलिस थाना उसके इशारे पर काम करता था। इसलिए किसी तरह ट्रेन से फिर मुंबई पहुंच गये। अपने प्रदेश में भी तो कामधंधा नहीं मिल रहा था। पड़ोस के कानपुर में ही मिलों की चिमनियां ठण्डी पड़ी थीं। अब कहा जा रहा है कि ओडीओपी के तहत प्रदेश के हर जिले उद्योगों का जाल बिछाया जाएगा। राम खेलावन की बातों से लगता था कि अब वह यहीं रहकर काम करना चाहता है। यूपी की योगी सरकार ने अन्य राज्यों से यूपी लौटने वाले कामगारों और श्रमिकों के लिए 20 लाख रोजगार उपलब्ध कराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि जिन क्षेत्रों में श्रमिकों को रोजगार दिया जाएगा, उसमें रेडीमेड गारमेंट, खाद्य प्रसंस्करण, गो आधारित उत्पाद, फूलों की खेती और फूलों से बनने वाले उत्पादों से जुड़े उद्योग शामिल हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं में भी रोजगार देने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। गत 6 जून को योगी की टीम-11 की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कैबिनेट ने श्रम कानून में संशोधन करने का फैसला किया। ज्यादा से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने के लिए योगी ने यूपी को रेडीमेड गारमेंट का हब बनाने को भी कहा है। यूपी में इन दिनों राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात से काफी प्रवासी श्रमिक वापस आ रहे हैं। लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से जो श्रमिक आ रहे हैं, उनका पूरा विवरण तैयार किया जा रहा है। वे किस क्षेत्र में काम करते हैं, आदि के आंकड़े बनाकर उसी के अनुसार श्रमिकों को रोजगार दिया जाएगा। सीएम योगी ने मीटिंग में मजदूरों की सुरक्षित वापसी के साथ ही लेबर रिफॉर्म कानून के जरिए गांवों और कस्बों में ही रोजगार देने की योजना बनाई है। श्रमिकों की कुशलता का बेहतर इस्तेमाल हो सके, इसके लिए रॉ मैटीरियल बैंक की स्थापना की जाएगी। उनके तुरंत भुगतान की व्यवस्था भी की जा रही है। प्रोडक्ट डेवलपमेंट और मार्केटिंग के लिए एक अलग संस्था बन रही है, जिससे श्रमिकों को उनके बनाए उत्पादों की अच्छी कीमत मिल सके।
सीएम योगी ने अधिकारियों से कहा कि बाहरी राज्यों से आने वाले कामगारों और श्रमिकों के लिए 20 लाख रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से एक रोडमैप तैयार किया जाए। प्रवासी मजदूरों का क्वारंटीन पीरियड पूरा होने के बाद सरकार उन्हें रोजगार मुहैया करवाएगी। शुरुआती दौर में श्रमिकों को मनरेगा, ईंट भट्टे, चीनी मिलें और जिलों में चल रहे एमएसएमई उद्योगों में समायोजित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यूपी देश का पहला राज्य है, जिसने दूसरे प्रदेशों में रह रहे अपने श्रमिकों एवं कामगारों की सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की शुरुआत की है। दिल्ली, गुजरात, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्य भले ही विकास के कई पैमानों पर अव्वल राज्यों में आते हों लेकिन अपने अपने घरों को बेतहाशा लौटते मजदूरों को रोके रखने के उपाय करने में वे भी पीछे ही रहे। हालांकि ये भी एक सच्चाई है कि भारत में प्रवासी मजदूरों की स्थिति विभिन्न राज्यों के असमान विकास के साथ जुड़ी हुई है। सच्चाई ये भी है कि सरकारें सहानुभूति दिखा सकती हैं लेकिन खर्च वही कर सकती हैं जो उनके पास है। आज मजदूरों के अनवरत पलायन के लिए जितनी दोषी राज्य व केंद्र सरकारें है उतना ही दोषी यह मानवता का स्वांग रचने वाला समाज भी है जिसे श्रमिकों के लिए घडियाली आंसू बहाना तो आता है पर भूख से बिलखते बच्चें या कामगार को पानी पिलाना तक नहीं आता। यदि वे ठेकेदार जो इन मजदूरों को गाँवों से तो बहला-फुसला कर, काम देने के बहाने ले जाते हैं पर जब मुसीबत में दो रोटी देने की बारी आई तब मुँह छिपाते हुए सरकारी तंत्र को भी दोषी ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ते । इस समय देखने से यह लगता है कि जो मजदूर आज पलायन कर रहे हैं वो उस शहर के प्रति मन में कटु अनुभव लेकर घर जा रहे हैं और आगे भी अपने अनुभवों के आधार पर गाँव से शहर की ओर जाने वाली पौध को रोकेंगे। इसके लिए उत्तर प्रदेश की तरह अन्य राज्य सरकारों को भी अपने यहाँ रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)