जब कोरोना दस्तक दे रहा था तब कहां थे ?

जब कोरोना दस्तक दे रहा था तब कहां थे ?

नई दिल्ली। यह सवाल सचमुच महत्वपूर्ण है कि जब कोरोना वायरस भारत में दस्तक दे रहा था तब हम कहां वयस्त थे। जवाब कोरोना वायरस से निपटने की रणनीति को लेकर कांग्रेस की आलोचना पर गृह मंत्री अमित शाह ने पलटवार किया है। दिल्ली से ओडिशा में एक वर्चुअल रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'कोरोना वायरस महामारी से निपटने और प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर हमसे गलती हुई होगी, कुछ कमी रह गई होगी, लेकिन हमारी निष्ठा साफ थी।' अमित शाह का आगे कहना था, 'हम कहीं कम पड़ गए होंगे। कुछ नहीं कर पाए होंगे। मगर आपने (विपक्ष ने) क्या किया?' गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सरकार ने देश के 60 करोड़ लोगों के लिए एक लाख 70 हजार करोड़ का पैकेज दिया. उनका कहना था, 'विपक्ष के कुछ वक्रष्टा आज हम पर सवाल उठाते हैं तो मैं उन्हें पूछता हूं कि उन्होंने क्या किया? कोई स्वीडन में, कोई अमेरिका में लोगों से बात करता है, इसके अलावा और क्या किया आपने?...आप हमें सवाल पूछते हैं। इंटरव्यू के अलावा कांग्रेस पार्टी ने कुछ नहीं दिया।' जवाब कुछ अधूरा लगता है। दो दिसंबर 2019, चीन के एक प्रमुख शहर दोंगुआन में एक बड़े अस्पताल के डॉक्टर उलझन और चिंता में थे। इसकी वजह एक डॉक्टर ही था जिसे कफ और तेज बुखार की शिकायत के चलते भर्ती कराया गया था। जांच में पता चला था कि फेफड़ों में संक्रमण है जिसके चलते उसे न्यूमोनिया हो गया है लेकिन चिंता की वजह यह नहीं बल्कि इस न्यूमोनिया की वजह थी। यह डॉक्टर इस वायरस के चलते अस्पताल पहुंचने वाला पहला मरीज था। 22 दिसंबर आते-आते कोरोना वायरस के चलते चीन में मौतों का आंकड़ा नौ तक पहुंच चुका था। दुनिया ने चैंकना शुरू ही किया था कि इसने खतरनाक रफ्तार पकड़ ली। 31 दिसंबर तक यह चीन में 213 लोगों की जान ले चुका था और 9,692 लोग इसकी चपेट में थे। इसके करीब एक महीने बाद भारत में इस वायरस का पहला मामला दर्ज किया गया। 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस के संक्रमण को स्वास्थ्य के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय आपात स्थिति घोषित कर चुका था। ठीक इसके एक दिन बाद यानी 31 जनवरी को इटली में भी कोरोना वायरस के चलते आपातकाल घोषित किया जा चुका था। अब तक भारत के पड़ोसी चीन में भी कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 350 से ऊपर जा चुका था। तो वहीं भारत में फरवरी के पहले हफ्ते तक कोरोना वायरस खबरों और प्राथमिकताओं की फेहरिस्त में बहुत पीछे दिख रहा था। उस समय दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाने थे। सबकी नजरें इसी पर थीं। मुकाबला केंद्र में सत्ताधारी भाजपा और दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी के बीच था। ये वही दिन थे जब शाहीन बाग और कई और जगहों पर एनआरसी और सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। चारों तरफ चुनाव व एनआरसी के विरोधी खबरों की चर्चा थी। आठ फरवरी को चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 722 हो चुका था। इसी दिन दिल्ली चुनाव के लिए वोट भी पड़े थे। 11 फरवरी को नतीजे आए और खबरों में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत छाई रही। यह वही दिन था जब चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 1000 पार हो चुका था। विश्व स्वास्थ्य संगठन चेतावनी दे रहा था कि कोरोना वायरस के चीन से बाहर जाने का मतलब दुनिया पर बड़ी आफत का आना है और मानवजाति भरसक कोशिश करे कि यह महामारी काबू के बाहर न निकल जाए। उधर, भारत सरकार का कहना था कि चिंता की कोई बात नहीं। 13 फरवरी को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का बयान आया कि कोरोना वायरस से घबराने की जरूरत नहीं है और मास्क-दस्तानों से लेकर दवाओं तक तमाम जरूरी चीजों का स्टॉक तैयार है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत खुद तो तैयार है ही, पड़ोसी चीन को भी वह मेडिकल सप्लाई, उपकरण और अन्य सामान भेज रहा है। फरवरी के तीसरे हफ्ते में चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 1800 के पार जा चुकी थी, लेकिन भारत में तब भी कोई खास हलचल नहीं थी। अब सभी का सारा ध्यान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे और इससे जुड़ी तैयारियों की तरफ लगा दिख रहा था। इसी दौरान झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय और इसके मुखिया बाबूलाल मरांडी की 'घर वापसी' भी चर्चा में रही। फरवरी का चैथा हफ्ता डोनाल्ड ट्रंप के दो दिवसीय भारत दौरे और इस दौरान राजधानी दिल्ली में सीएए समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के नाम रहा। उधर, दिल्ली में हुई हिंसा बढ़ती गई और जब तक यह रुकी तब तक इसमें 50 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी। इस हिंसा की सारी दुनिया में चर्चा हुई। इस समय तक चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा तीन हजार को छूने वाला था। जब हमारे पास कोरोना वायरस रूपी इस आपदा पर जड़ में ही प्रहार करने का मौका था तब पूरी फरवरी लगभग बेपरवाही में निकल गई।

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से बचाव के लिए सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की किल्लत की जानकारी होने के बावजूद भारत से इनका निर्यात जारी रहा। असल में 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह कर दिया था कि दुनिया भर में पीपीई का भंडारण पर्याप्त नहीं है और जल्द ही इनकी किल्लत होने लगेगी। इसके बावजूद भारत ने पीपीई के निर्यात पर रोक लगाने में 19 मार्च तक का वक्त लगा दिया। इसका नतीजा डॉक्टरों और नर्सों को चुकाना पड़ा जो बार-बार सरकार से इनकी पर्याप्त आपूर्ति की गुहार लगाते रहे। कई डॉक्टरों ने अपने वीडियो भी बनाए और कहा कि जंग के मैदान में उन्हें पर्याप्त संसाधनों के बिना ही उतार दिया गया है। बहरहाल, मार्च की शुरुआत हुई। अब तक फरवरी में केरल में दर्ज हुए तीन मामलों के अलावा भारत में कोरोना वायरस का कोई नया मामला सामने नहीं आया था। दो मार्च को इस वायरस ने देश में दूसरी बार दस्तक दी। इस बार यह पहले की तरह दरवाजे से वापस नहीं जाने वाला था। पांच मार्च को भारत में भी इसके मामलों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए 29 तक पहुंच गई। इसी दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार को एक बार फिर आगाह किया। एक ट्वीट में उनका कहना था, ''स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं कि कोरोना वायरस संकट को लेकर हालात भारत सरकार के नियंत्रण में हैं। यह ऐसा ही है कि टाइटेनिक का कप्तान यात्रियों को बता रहा हो कि वे घबराएं नहीं क्योंकि यह जहाज डूब ही नहीं सकता। सरकार को इस संकट से निपटने के लिए एक कार्ययोजना सार्वजनिक करनी चाहिए जो ठोस संसाधनों पर आधारित हो।' इससे पहले भी वे तीन मार्च को इशारों-इशारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना वायरस और इसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था पर आने वाले संकट को लेकर चेतावनी दे चुके थे। उनका कहना था कि ऐसे वक्त में एक सच्चे राजनेता का ध्यान पूरी तरह से उस संकट को टालने पर होगा जो कोरोना वायरस की वजह से भारत और उसकी अर्थव्यवस्था पर आने वाला है। इसी बीच छह मार्च को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी आगाह किया कि सामाजिक कड़वाहट, आर्थिक सुस्ती और कोरोना जैसी महामारी का मेल देश के लिए विकट हालात की आहट है। उनका यह भी कहना था कि ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश को आश्वस्त करना चाहिए। इसके एक दिन बाद अपने आलोचकों पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री का बयान आया कि अलग-अलग कारणों से वैश्विक अर्थव्यवस्था एक मुश्किल दौर से गुजर रही है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। वहीं मार्च का दूसरा हफ्ता भी मध्य प्रदेश में तत्कालीन कमलनाथ सरकार पर आए संकट के साथ शुरू हुआ। यानी जब आने वाली महामारी से निपटने के लिए राजनीतिक स्थिरता जरूरी थी उस वक्त मध्य प्रदेश में सियासी उथल-पुथल चल रही थी। करीब दो हफ्ते तक चले इस प्रकरण के बाद आखिरकार कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और 23 मार्च को शिवराज सिंह चैहान ने चैथी बार मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली। जिस समय मध्य प्रदेश में इतनी उठापटक चल रही थी उस समय कोरोना का संकट कितना बड़ा हो चुका था इसका अंदाजा इस बात से लगाएं कि इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया और दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में धारा 144 लगाई गई। 24 मार्च को मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने विश्वासमत साबित कर लिया और उसी दिन शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया था। देशभर में कोरोना वायरस का कहर लगातार जारी है। अब तक 2.66 लाख से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 3,08,993 है। वहीं इस वायरस की चपेट में आने के कारण 8894 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

(नाजनीन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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