भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त करने वाली है माँ धूमावती देवी (जयंती पर विशेष)

ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं। इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है। चौमासा देवी का प्रमुख समय होता है जब देवी का पूजा पाठ किया जाता है। माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं, इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। यह विधवा हैं, इनका वर्ण विवर्ण है, यह मलिन वस्त्र धारण करती हैं। केश उन्मुक्त और रुक्ष हैं। इनके रथ के ध्वज पर काक का चिन्ह है। इन्होंने हाथ में शूर्पधारण कर रखा है, यह भय-कारक एवं कलह-प्रिय हैं। माँ की जयंती पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है जो भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त कर देने वाली है।
मां धूमावती जयंती के विशेष अवसर पर दस महाविद्या का पूजन किया जाता है। धूमावती जयंती समारोह में धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है। काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। परंपरा है कि सुहागिनें मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं और केवल दूर से ही मां के दर्शन करती हैं। मां धूमावती के दर्शन से पुत्र और पति की रक्षा होती है।
पुराण के अनुसार एक बार मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर के पास जाती हैं, किंतु उस समय भगवान समाधि में लीन होते हैं। मां के बार-बार निवेदन के बाद भी भगवान शंकर का ध्यान से नहीं उठते। इस पर देवी श्वास खींचकर भगवान शिव को निगल जाती हैं। शिव के गले में विष होने के कारण मां के शरीर से धुंआ निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत और श्रृंगार विहीन हो जाता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी! धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई। अतः अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी। दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।इस कारण उनका नाम धूमावती पड़ता है।
एक अन्य कथा के अनुसार जब सती ने पिता के यज्ञ में अपनी स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं।
इस दिन विशेषकर काले तिल को काले वस्त्र में बांधकर मां धूमावती को चढ़ाने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां धूमावती के दर्शन से संतान और पति की रक्षा होती है। मां भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली देवी है। परंपरा है कि इस दिन सुहागिनें मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं, बल्कि केवल दूर से ही मां के दर्शन करती हैं।
मां धूमावती दस महाविद्याओं में अंतिम विद्या है, विशेषकर गुप्त नवरात्रि में इनकी पूजा होती है। धूमावती जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करके जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप तथा नैवैद्य आदि से मां का पूजन करना चाहिए।झ झ इस दिन मां धूमावती की कथा का श्रवण करना चाहिए। पूजा के पश्चात अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मां से प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि मां धूमावती की कृपा से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है तथा दुरूख, दारिद्रय आदि दूर होकर मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
धूं धूं धूमावत्यै फट्
धूं धूं धूमावती ठः ठः
ये धूमावती कवच मंत्र दिलाएगा शत्रु भय तथा कर्ज से मुक्तिकारक है।
धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे।
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयिर:।।
मां धूमावती का तांत्रोक्त मंत्र है। रुद्राक्ष माला से 108 बार, 21 या 51 माला का इन मंत्रों का जाप करें। मां की विशेष कृपा पाने के लिए उपरोक्त मंत्रों का जाप करना चाहिए।
मां धूमावती देवी रहस्यमयी देवी हैं। 10 महाविद्याओं में सातवीं विद्या मानी गई हैं। अन्य विद्या जहां श्री यानी धन लक्ष्मी और समृद्धि का वरदान देती हैं वहीं मां धूमावती देवी गरीबी को अपने सूप में लेकर भक्तों के कष्टों का हर प्रकार से हरण करती हैं। जिन पर मां धूमावती देवी की कृपा होती है वह साधक ज्ञान, श्री और रहस्यों को जानने वाला हो जाता है। ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी का दिन मां धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है।
मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं। धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।