फ्रांस के कदम का विरोध क्यों

नई दिल्ली। दुनिया भर में आज इस्लामिक कट्टरता को सबसे बडे खतरे के रूप में देखा जा रहा है। इसी के खिलाफ उदारवादी देश फ्रांस ने यदि रमजान के पवित्र महीने की शुरुआत में प्रतिबंध लगाये तो इसका विरोध करने का औचित्य समझ में नहीं आता है। पाकिस्तान में साद रिजवी की कट्टर इस्लामी पार्टी के खिलाफ इमरान सरकार ने प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसका मतलब पाकिस्तान स्वयं ही इस्लाम की कट्टरता से परेशान है। हालांकि फ्रांस को लेकर कट्टरवादी मुस्लिम राष्ट्रों का साथ निभाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पाक के फ्रांसीसी राजदूत को देश छोड़कर जाने का निर्देश दे सकते हैं। रमजान मुकद्दस का महीना होता है। इस महीने सिर्फ भलाई के काम किये जाते हैं। मानवता की इबादत करनी है तो कट्टरता से पीछा छुड़ाना ही होगा। इस्लामी कट्टरता ही नहीं, हर प्रकार की कट्टरता का विरोध होना चाहिए। म्यांमार में सैनिक तानाशाही का जो शांतिपूर्वक विरोध कर रहे हैं, उन पर अत्याचार करने वाले भी इस्लामी कट्टरवादियों की ही तरह हैं। इनका भी समस्त विश्व को विरोध करना चाहिए। मेरी समझ से इस्लामवाद का अर्थ अनेकों प्रकार की सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यों से है। इसका कुछ लोग गलत अर्थ लगा लेते हैं। ऐसे लोगों की जिद होती है कि सार्वजनिक जीवन और राजनैतिक जीवन इस्लामी सिद्धान्तों के अनुसार ही चलना चाहिए और सार्वजनिक जीवन और राजनैतिक जीवन में शत-प्रतिशत इस्लामी कानून (शरिया) लागू किया जाना चाहिए। पश्चिमी जनसंचार माध्यमों में इस्लामवाद से आशय उन समूहों से है जो शरिया पर आधारित इस्लामी-राज्य स्थापित करना चाहते हैं। आमतौर पर इस्लामवाद को राजनैतिक इस्लाम या इस्लामी कट्टरवाद का पर्यायवाची माना जाता है।
इस्लामवादी शरिया लागू करने पर जोर दे सकते हैं। वैश्विक स्तर पर इस्लामी एकता पर जोर दे सकते है। किसी देश को इस्लामी राज्य घोषित करने पर जोर दे सकते हैं या किसी देश पर गैर-मुस्लिम देश के प्रभाव को कम करने या हटाने पर जोर दे सकते हैं।
मुसलमानी देशों में इस्लामवाद के समर्थक इसको सकारात्मक अर्थ में लेते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रमुख कट्टर इस्लामवादी चेहरे ये हैं- हसन अल-बन्ना, सैय्यद कुत्ब, अबुल अल मौदूदी और रुहेल्ला खोमैनी आदि। बाद में ओसामा बिन लादेन, हाफिज सईद जैसे नाम भी जुड़ गये। इनका कट्टरवाद विश्व के लिए अभिशाप ही माना जाएगा।
इस्लाम के सबसे पाक माह रमजान की शुरुआत में ही फ्रांस के एक कदम ने दुनियाभर के मुसलमानों के बीच गुस्घ्सा बढ़ा दिया है। दरअसल फ्रांस की सीनेट ने कट्टरपंथ इस्लाम पर लगाम कसने के लिए एक बिल को पास किया है। इस बिल को लेकर अब मुसलमानों के बीच नाराजगी बढ़ गई है। उनका कहना है कि ये बिल मुसलमानों को अलग-थलग करने का जरिया बनेगा। इस बिल को कई तरह के संशोधन के साथ पास किया गया है। इस बिल में कई सख्त नियम बनाए गए हैं और इसे नेशनल असेंबली से मंजूरी भी मिल चुकी है। सीनेट में इस बिल के पक्ष में 208 वोट डाले गए, जबकि खिलाफ में 109 वोट पड़े। इस बिल को पास करने से पहले सीनेट में इसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ। काफी लंबे दौर की बातचीत के बाद इस बिल को पास कर दिया गया। बिल में शामिल किए गए नए संशोधनों का मकसद अतिवाद से मुकाबला करना है। इस बिल में वो सभी प्रावधान किए गए हैं, जिसमें स्कूल ट्रिप के दौरान बच्चों के माता-पिता के धार्मिक पोशाक पहनने पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही नाबालिग बच्चियों के चेहरे छिपाने या सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक प्रतीकों को धारण करने पर रोक लगाने की बात कही गई है। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी परिसर में प्रार्थना करने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। इसके साथ ही शादी समारोह में विदेशी झंडे लहराने पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। ब्रिटेन के अखबार इ इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक पब्लिक स्विमिंग पूल में बुर्का पहनने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है, जो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। यही नहीं बिल को पास करने के आखिरी समय में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के अनुरोध पर प्राइवेट स्कूलों में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ लड़ने के लिए एक संशोधन भी जोड़ा गया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की ओर से किए गए इस नए संशोधन के बाद फ्रेंच अफसरों को विदेशी संगठनों को फ्रांस में प्राइवेट स्कूलों की स्थापना से रोकने की अनुमति देगा।
ध्यान देने की बात है कि तुर्की के इस्लामिक संगठन मिल्ली गोरस द्वारा दक्षिणी फ्रांस के अल्बर्टविले में एक स्कूल स्थापित किया गया था। इस बिल के कानून बनने के बाद अब फ्रांस में इस तरह विदेशी प्राइवेट स्कूलों को स्थापित नहीं किया जा सकेगा। ऐसी नौबत क्यों आयी?
इसके पीछे इस्लामी कट्टरता है। पाकिस्तान में ही कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक ने फ्रांसीसी राजदूत को देश से बाहर निकाले जाने की मांग को लेकर इमरान खान सरकार के खिलाफ लाहौर में जमकर प्रदर्शन किया था। इन प्रदर्शन और उत्पात के बाद लाहौर पुलिस ने तहरीक-ए-लब्बैक के साद हुसैन रिजवी को गिरफ्तार कर लिया। अपने नेता की गिरफ्तारी के विरोध में हजारों कार्यकर्ता सड़कों पर आ गए और पुलिसकर्मियों पर हमला शुरू कर दिया। दोनों ही तरफ से लाठी डंडे चले और पत्थरबाजी हुई। बेकाबू भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। इसके साथ ही उत्पातियों पर पानी की बौछारें भी छोड़ी गईं।
पाकिस्तान में इस समय जो हो रहा है, उसकी शुरुआत नवंबर 2020 में हुई थी। उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अभिव्यक्ति की आजादी की एक कक्षा में इस्लाम धर्म की स्थापना करने वाले पैगंबर हजरत मोहम्मद का कार्टून दिखाया था। उनके इस कार्य से कट्टरपंथी भड़क गए थे। इसके बाद उन्होंने शिक्षक सैमुएल पैटी की हत्या कर दी थी। इस पर राष्ट्रपति मैक्रों ने पैटी का ही समर्थन किया था। इस कारण टीएलपी भड़क उठा और उसने फ्रांसीसी राजदूत को 20 अप्रैल से पहले पाकिस्तान से बाहर निकाल देने की मांग की। ऐसा नहीं होने पर साद रिजवी ने सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर फ्रांसीसी राजदूत को बाहर नहीं किया गया तो इसके विरोध में प्रदर्शन किए जाएंगे। कट्टरपंथियों की धमकी से पाकिस्तान की इमरान खान सरकार डरी नजर आ रही है। सरकार ने नेशनल असेंबली में इस संबंध में एक अहम प्रस्ताव पेश किया। इस अहम प्रस्ताव को लाने का निर्णय पाकिस्तान के कानून मंत्री फिरोज नसीम, धार्मिक मामलों के मंत्री नुरूल हक कादरी, आंतरिक मंत्री शेख रशीद और अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में लिया गया।
ऐसा नहीं कि इस्लामी कट्टरता से पाक को कोई परेशानी नहीं हो रही। पाकिस्तान ने एक कट्टर इस्लामी पार्टी के समर्थकों की लगातार तीसरे दिन कानून प्रवर्तन अधिकारियों के साथ झड़प के बाद 14 अप्रैल को आतंकवाद अधिनियम के तहत उस पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया। इन झड़पों के दौरान सात लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। गृहमंत्री शेख राशिद ने पत्रकारों से कहा कि तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) को 1997 के आतंकवाद रोधी अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया जा रहा है। इस प्रकार साद रिज्वी की कट्टर इस्लामी पार्टी के खिलाफ इमरान सरकार ऐक्शन में आयी। इस पार्टी ने 2018 के आम चुनाव में 25 लाख वोट हासिल किए थे। इस कट्टर इस्लामी पार्टी के समर्थकों की लगातार तीसरे दिन कानून प्रवर्तन अधिकारियों के साथ झड़प के बाद पाकिस्तान की सरकार ने आतंकवाद अधिनियम के तहत उस पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया। एक प्रजातांत्रिक देश को ही इस्लामी कट्टरता का कटु अनुभव हो चुका है, इसलिए समस्त विश्व को फ्रांस के समर्थन में खड़ा होना चाहिए। (हिफी)





