नेपाल को साधने का वक़्त

नेपाल को साधने का वक़्त

नई दिल्ली हम जिस वक़्त चीन से सीमा पर हिंसक विवाद में उलझे हैं, तभी भारत की आपत्ति दरकिनार कर नेपाली संसद ने विवादित नक्शे को मंजूरी दे दी है। नेपाल के निचले सदन में संविधान संशोधन विधेयक पहले ही पारित हो गया था। उच्च सदन में इसे 17 जून को पारित कराने को कहा गया था लेकिन बाद में एक दिन के लिए और बढा दिया गया था। इस बीच भारत की तरफ से कूटनीतिक प्रयास भी होते रहे लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने कदम पीछे नहीं हटाए। नतीजा यह हुआ कि भारत की आपत्ति को नजरंदाज कर नेपाल ने नये नक्शे से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में 18 जून को सर्वसम्मति से पारित कर लिया है।



इस विधेयक पर संविधान संशोधन के पक्ष में 57 लोगों ने मतदान किया। राज्यसभा में एक सीट रिक्त है। इसका मतलब यह कि नेपाल के ऊपरी सदन के सभी लोगों ने मतदान में सहभागी होकर विधेयक के पक्ष में मतदान किया है। मत परिणाम सुनाते हुए राज्यसभा अध्यक्ष गणेश प्रसाद तिमल्सिना ने संविधान संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित होने की बात बताई। वहीं सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता दीनानाथ शर्मा ने कहा कि भारत ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा पर अवैध रूप से कब्जा किया है और उसे नेपाली जमीन को लौटा देना चाहिए।इस समय हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण चीन से विवाद है। इसलिए नेपाल के साथ सांस्कृतिक सामाजिक रिश्तों का हवाला देते हुए अतिरिक्त नरम रवैया अपनाना होगा ।


भारत के साथ सीमा गतिरोध के बीच इस नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दिखाया है। नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के कुल 395 वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाके को अपना बताया है। नेपाल इस मसले को लेकर कोरोना को भी भूल गया है। कोरोना संक्रमण के बाद शुरू हुए लॉकडाउन में भारत को कम नेपाल को कई गुना अधिक नुकसान हो रहा है। नेपाल के शहर धनगढ़ी का बाजार हो या जुआ घर रोजाना सैकड़ों की संख्या में गौरीफंटा बॉर्डर क्रास कर भारतीय नेपाल में पहुंचते थे जिससे नेपाल में रोजाना 50 से 60 लाख रुपए की भारतीय मुद्रा का व्यापार होता था। धनगढ़ी में सिर्फ भारतीयों की एंट्री के लिए बना हुए जुआं घर (कैसीनो) में रोजाना भारतीय पूंजीपतियों से करीब 50 से 60 लाख के टर्नओवर का एकमात्र जरिया था जो इन दिनों लॉकडाउन के चलते भारतीयों के न पहुंचने के कारण बंद हो गया है। भारत व नेपाल मित्र राष्ट्र होने के चलते दोनों देशों के नागरिक बॉर्डर से सटे शहरों में पहुंचकर बिना किसी रोक-टोक के खरीदारी व व्यापार करते हैं। नेपाल से भारत में जहां लाखों रुपए का व्यापार होता है, वहीं भारत से नेपाल पहुंचने वाले भारतीयों से नेपाल रोजाना करोड़ों रुपए का टर्नओवर करता है। इस टर्न ओवर की सबसे बड़ी कड़ी नेपाल के धनगढ़ी शहर में स्थित अकेला जुआ घर (कैसीनो) था, जिसमें सिर्फ भारतीय नागरिकों को खेलने की एंट्री थी। नेपाली नागरिकों को कसीनो में प्रवेश नहीं दिया जाता था। इसके अलावा धनगढ़ी शहर का प्रमुख बाजार भारतीयों से पटा रहता था और इस बाजार में भी रोजाना 40 से 50 लाख भारतीय मुद्रा की खरीदारी भारतीय नागरिक किया करते थे। लॉकडाउन के बाद बंद हुए बॉर्डर से नेपाल का बाजार अर्श से फर्श पर आ पहुंचा है।

भारत-नेपाल के गौरीफंटा बॉर्डर से महज 500 मीटर दूरी पर नेपाल में बना वाटर पार्क भी भारतीय नागरिकों की भीड़ से आबाद रहता था। वाटर पार्क में 80 प्रतिशत भारतीय व 20 प्रतिशत नेपाली नागरिक आनंद लेने पहुंचते थे। भारतीय नागरिकों के लिए नेपाल के वाटर पार्क प्रबंधन ने विशेष ऑफर कर रखे थे लेकिन लॉकडाउन के बाद बंद चल रहे बॉर्डर के चलते रोजाना लाखों रुपए का नुकसान वाटर पार्क प्रबंधन को हो रहा है। वाटर पार्क के संचालक धर्म पाल रावत ने बताया कि लॉकडाउन के चलते वाटर पार्क बंद है। उन्होंने बताया कि उनके वाटर पार्क में भारतीय नागरिकों का अच्छा आवागमन था लेकिन इन दिनों तो सब ठप पड़ा हुआ है।नेपाल इन आर्थिक मुद्दों पर भी गौर करे तो बेहतर होगा।

यही कारण है कि चीन के ग्लोबल टाइम्स ने भारत को गीदड धमकी दी है। चीन कहता है कि भारत को एक साथ तीन मोर्चे पर लड़ना होगा। ऐसा कहते समय उसका आशय चीन, पाकिस्तान और नेपाल से है। भारत ने भी इसका माकूल जवाब दिया है।श्री मोदी ने कहा है कि लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत का बदला तीन मोर्चों पर लेने की तैयारी है। सैन्य मोर्चा, कूटनीतिक मोर्चा और आर्थिक मोर्चा।जहां तक सैन्य मोर्चे का सवाल है तो चीन से लगी सीमा पर भारतीय सैनिक दुश्मनों को जवाब देने के लिए तैयार हैं। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को हर उस देश का समर्थन मिल रहा है जो चीन के अतिक्रमणकारी नीति से परेशान है और आर्थिक मोर्चे पर देश के 135 करोड़ लोग अब भारतीय बाजार से चीन को भगाने के लिए मुहिम छेड़ चुके हैं। अगर इन तीनों मोर्चों पर भारत ने बढ़त बना ली तो चीन का पतन सुनिश्चित है. ऐसे में सबसे खास बात चीन के लिए यही होगी कि वो अपनी हद को समझ ले, यह सीख नेपाल के लिए भी है। भारत किसी को भी गलती की सजा देने और सबक सिखाने की ताकत रखता है।

नेपाल के लोगों का भारत प्रेम भी चीन को देखना चाहिए। नेपाल के लोगों ने भारत के प्रति अपना प्रेम दिखाया है और भारत को हल्के में लेने की चीन की दूसरी गलतफहमी भारतीय सेना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूर कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने 17 जून को ही कहा था कि कोई देश भ्रम में न रहे। गत आठ मई को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने धारचुला से चीन की सीमा लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल का दावा है कि सड़क उसके क्षेत्र से होकर गई है। नेपाल इस बात से इतना खफा है कि उसने कालापानी के करीब छारुंग में सशस्त्र बलों की तैनाती कर दी। नेपाल ने जिस वक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की, वो भारत के लिए असहज करने वाला रहा। नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने यहाँ तक कह दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो नेपाल की सेना लड़ने के लिए तैयार है। कालापानी में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस की भी तैनाती है। जाहिर है कि आईटीबीपी की तैनाती नेपाल को लेकर नहीं है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने भी कहा कि भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद पर तनातनी दुर्भाग्यपूर्ण है।

नेपाल में कोरोना का प्रकोप बरकरार है, लेकिन सरकार उससे निपटने के बजाए भारत के साथ सीमा विवाद को बेवजह तूल देने में लगी है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को लगता है कि विवादित नक्शे को संसद में पास करवाकर उन्होंने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर ली है, मगर जनता ऐसा नहीं मानती। लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। वह कोरोना से निपटने में सरकार की लचर रणनीति और भारत से बिगड़ते संबंधों को लेकर सरकार से खफा हैं। पिछले कुछ दिनों में नेपाल के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इन प्रदर्शनों में युवाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और 'बस बहुत हुआ' नारे के साथ कोरोना से निपटने को लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। नेपाल के लोगों का मानना है कि ऐसे वक्त में जब ओली सरकार को कोरोना से निपटने के इंतजामों पर ध्यान देना चाहिए, वह भारत के साथ बेवजह के विवाद को तूल देने में लगी है।

लद्दाख की घटना के विरोध में भी नेपाल में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। राजधानी काठमांडू स्थित चीनी दूतावास के बाहर 18 जून को लोगों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने कहा कि युद्ध अपराध की तरह है लिहाजा चीन को युद्ध छोड़कर शांति को बढ़ावा देना चाहिए। इस प्रदर्शन से कहीं न कहीं यह साफ होता है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह नेपाली भी यह स्वीकारते हैं कि लद्दाख में जो कुछ हुआ उसके लिए चीन पूरी तरह से दोषी है। यह बात नेपाल की सरकार के लिए भी नसीहत का काम करेगी।

~ अशोक त्रिपाठी (हिफी)

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