स्वच्छ मानसिकता से दूर करें अकेलापन

21 शदी का विकसित और तेज रफ्तार जिन्दगी व्यस्तता से तो भरी हुई है ही अकेलापन भी धीरे-धीरे हावी है। जहाँ आवश्यकता अनंत और नैतिकता के रोज होते पतन से प्रायः सभी परेशान है। इसलिए सभी को अपनी इच्छाएँ ही सर्वोपरी लगती है।दूसरो पर इसका क्या असर होगा या उससे दूसरो को क्या नुकसान होगा यह उसके मन में आता ही नही वे तो सिर्फ अपनी अनंत जरूरतों और इच्छाओं की पूर्ति के पीछे भागता है जो नित नये पारिवारिक समाजिक कलह को जन्म देता है।वक्त से बंधा इंसान पर्याप्त समय समाज और परिवार को नही दे पाता यह बात पुरूष और स्त्री दोनो के साथ समान रूप से देखा जा रहा है।आवश्यकता की सीमा निर्धारित नही है न यह कभी मरती है इच्छाएं भी अनंत और विकराल हो चुकी है संतोष का नामोनिशान नही है यह प्रायः सभी के साथ है चाहे वो कोई भी हो सभी की अपनी मनमौजी चल रही है ऐसे में हर वह शख्स जो अनंत आवश्यकता की पूर्ति के लिए भागता है कही न कही अकेलेपन का शिकार है।संतुष्टि ही आपको इन समस्याओं से छुटकारा दिला सकती है पर संतुष्ट कोई होना नही चाहता चाहे वह अमीर हो या गरीब सभी अपनी इच्छा के पीछे ताउम्र भागते रहते हैं।
अकेलापन का एक कारण और है मोबाइल का बढता प्रयोग आज का दौर मोबाइल युग है
अकेलापन का एक कारण और है मोबाइल का बढता प्रयोग आज का दौर मोबाइल युग है सबसे पहली आवश्यक वस्तु और आपका दिल जिससे दिन की शुरूआत और अंत दोनो होते है।जरा सी प्राॅबलेम शरीर में आये तो झेल लेते पर मोबाइल में कोई प्राबलम नही होनी चाहिए जब भी वक्त मिले मोबाइल पर घंटो लगे रहना चलते फिरते, यहाँ तक कि चार लोगो के बीच बैठे लोग बातो की जगह सभी अपने-अपने मोबाइल मे लग जाते हैं ये सभी कारण अकेलेपन को जन ्म दे रहे है बात और वक्त हर उस इंसान के लिए जरूरी है जो आपसे जुडा हुआ है ।अगर नही मिले तो सम्बन्धो में कड़वाहट और स्वभाव मे चिडचिडापन तो आनी निश्चित है।यही कारण है आज कल सम्बन्धो में तेजी से बढती गिरावट और लोक अदालतो में बढती भीड जो सम्बन्धो और पारिवारिक कलह के प्रायः सबसे ज्यादा है यह विकृत हो रही प्रवृति के समान विकराल हो रहा।
आज स्तरहीन कलह का माहौल बनता जा रहा जो कहीं न कहीं अपनी -अपनी इच्छाओ के अनुरूप कार्य न होने से समय- समय पर प्रदर्शित होते रहते हैं
हालांकि कलान्तर में यह समस्या नही थी ऐसा भी नही था कि कलह नही होती थी लेकिन कलह का स्तर इतना गिरा हुआ नही था।आज स्तरहीन कलह का माहौल बनता जा रहा जो कहीं न कहीं अपनी -अपनी इच्छाओ के अनुरूप कार्य न होने से समय- समय पर प्रदर्शित होते रहते हैं।जो पारिवारिक हिंसा सामाजिक हिंसा घरेलू हिंसा की विकृत और भयावह मनःस्थिति का रूप ले लेता है।
इच्छाओ पर कंट्रोल करने के लिए हमें अपनी पुरानी पद्धति पर लौटना होगा संतोषी प्रवृत्ति अपनानी होगी योग साधना और घार्मिक ग्रंथो से अवगत होना होगा इसके लिए विस्तृत प्लेटफार्म की आवश्यकता है
इच्छाओ पर कंट्रोल करने के लिए हमें अपनी पुरानी पद्धति पर लौटना होगा संतोषी प्रवृत्ति अपनानी होगी योग साधना और घार्मिक ग्रंथो से अवगत होना होगा इसके लिए विस्तृत प्लेटफार्म की आवश्यकता है। युवाओ को इससे जोडे रखने के लिए अनेको माध्यमो के जरिये उनके महत्व को समझाना होगा जैसे कुछ दशक पूर्व रामायण और महाभारत का ज्ञान दूरदर्शन के जरिये पूरे हिन्दूस्तान के सभी लोगो तक पहुँचाया गया।
ऐसा भी नही है कि हम आवश्यकता को छोड़ दे मोबाइल को त्याग दे लेकिन कम तो कर ही सकते थोडे समय पत्र पत्रिकाओ या ज्ञानवर्द्धक ग्रंथो को दे सकते हैं सामाजिक सांस्कृतिक कार्यो में भाग ले सकते है तो सामाजिक ढाँचा में स्वच्छता के साथ हमारी संस्कृति का भी विकास होगा और विकृत हो चुकी मानसिकता भी बदलेगी।समाज में विकृति फैलाने की जो परम्परा बन रही है वह कम होगा और सभी लोग को नये नये लोग भी मिलेग जो उन्हे अकेला नही होने देगें।ऐसी पद्धति सरकार तो बनाएगी नही यह सामाजिक और पारिवारिक परिवेश के जरिये आपकी हमारी जागरूकता से बनेगी और लोग लाभान्वित होगे।
ऐसे कई छोटे छोटे कार्य है जिससे बदलाव लाया जा सकता है जिसे परिवार से ही शूरू कर समाज और राष्ट्र निर्माण के मानसिक स्वच्छता के लिए आपके योगदान से संभव है।
~आशुतोष