लंदन में भी धूमधाम से बनेगा भगवान जगन्नाथ-मंदिर

लंदन में भी धूमधाम से बनेगा भगवान जगन्नाथ-मंदिर

लन्दन। सनातन धर्म की काल गणना के अनुसार आश्विन अधिक मास चल रहा है जो पुरुषोत्तम मास के रूप में ख्यात है। कलियुग के देवता के रूप में प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए सात समन्दर से खुश खबरी आई है। ओडिया सोसाइटी ऑफ यूके लंदन में भगवान जगन्नाथ का एक मंदिर बनवा रही है। यह मन्दिर ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति होगा। जगन्नाथ पुरी सनातन धर्म के पवित्र चार धामों में से एक है। आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक गोवर्धन मठ इसी नगर में स्थित है।

बताया जा रहा है कि मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाकर समूची दुनिया के जगन्नाथ भक्तों को जोड़ा जाएगा। मंदिर निर्माण की लागत करीब 40 मिलियन पाउंड (लगभग 40 करोड़ रुपए) आंकी गई है, जो दान के माध्यम से जुटाई जाएगी। बहरहाल वृहत्तर लंदन में इसके लिए जमीन खोजी जा रही है।

सोसाइटी सदस्यों ने शुरुआती खर्चों के लिए ब्रिटेन में रह रहे लोगों को ही जोड़कर धनराशि एकत्रित की है। सोसाइटी की योजना है कि मंदिर निर्माण के लिए बनाए जा रहे न्यास में समूची दुनिया में फैले ओडिया लोग और भगवान जगन्नाथ के भक्त शामिल हों। स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, निलाद्री महोदया और बामदेब संहिता सहित अनेक पुराणों में बताया गया है कि जगन्नाथ महाप्रभु (जिन्हें पुराणों में पुरुषोत्तम कहा गया है) परमात्मा हैं। वे कोई अवतार नहीं हैं , अपितु अवतारी हैं और जगन्नाथ धाम पृथ्वी पर उनका स्थाई निवास है।

स्मरणीय है कि पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु की आराधना व उनके विविध विग्रह की पूजा-अर्चना पुण्यदायक मानी गई है। पुरुषोत्तम का अर्थ होता है पुरुषों में सबसे उत्तम। भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम व श्रीकृष्ण को लीला पुरुषोत्तम कहा गया है। उनके प्रमुख मंदिरों में जाकर उपासना करना भी इस मास में अति उत्तम माना गया है। बहुत से ऐसे श्रीराम या श्रीकृष्ण मंदिर हैं जहां पर उनके चतुर्भुज रूप के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार जगन्नाथ पुरी में भी श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण और श्रीहरि विष्णु के भक्तों के एक साथ दर्शन होते हैं। यद्यपि कोरोना आपदा के चलते मंदिरों में दर्शन-पूजन प्रतिबंधित है। धीरे-धीरे कहीं-कहीं अनेक प्रतिबन्धों के साथ सीमित मात्रा में मंदिरों के द्वार खोल जा रहे हैं।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तब उत्तर में हिमालय की चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पूर्व में पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्घ्वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ यानी जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। अनेक चमत्कारिक विशेषताओं को समेटे भगवान का यह मंदिर देश के बड़े मंदिरों में गिना जाता है। भगवान जगन्नाथ की रसोई, भोग व अन्नक्षेत्र अनुपम है, जिसका कोई दूसरा जोड़ नहीं है। पुराणों में धरती का बैकुंठ के रूप में वर्णित इस स्थान को श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि तथा जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मी नारायण भगवान विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु 'पुरुषोत्तम नीलमाधव' के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां 'भगवान राम' का रूप जैसा भी माना गया है। मत्स्य पुराण में वर्णित है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। अद्यावधि पुरी के मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा जारी है। जगन्नाथ मंदिर का वर्णन महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्घ्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। अभी भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।

स्मरण रहे ब्रिटेन दुनिया के उन प्रमुख देशों में से है, जहां भारत के बाद सबसे ज्यादा हिंदू मंदिर हैं। इस समय ब्रिटेन में मौजूद हिंदू मंदिरों की संख्या 210 के आसपास बताई जा रही है। ग्रेटर लंदन जहां जगन्नाथ मंदिर बनाने का प्रस्ताव है, वहां भी लगभग 35 मंदिर स्थित हैं। इस्कॉन स्वामीनारायण संप्रदाय, रामकृष्ण मिशन सहित कई बड़े समूहों ने यहां मंदिर बनाए हैं।

ध्यान रहे अकेले भारत में ही नहीं, भगवान जगन्नाथ के दुनियाभर में अनेक मंदिर हैं। भारत के बाहर सबसे पुराना जगन्नाथ मंदिर अखण्ड भारत के भूभाग रहे बांग्लादेश में स्थित है। यहां कोमिला में 16वीं शताब्दी का जगन्नाथ मंदिर है। इसी प्रकार पाकिस्तान के सियालकोट में 2007 में एक मंदिर बनाया गया था। इनके अतिरिक्त आस्ट्रेलिया, इटली, लंदन, सेन फ्रांसिस्को, शिकागो, मास्को और मॉरिशस में भी भगवान जगन्नाथ के मंदिर हैं। जहां रथयात्राएं भी आयोजित की जाती हैं।

ज्ञात हो ग्रेटर लंदन में सोसाइटी द्वारा 10 से 12 एकड़ जमीन तलाशी जा रही है। जिसमें मंदिर का मूल स्वरूप तो होगा ही, साथ ही ओडिया संस्कृति को प्रदर्शित चीजें भी होंगी। इस सम्बन्ध में सोसाइटी ने पुरी के गोवर्द्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य जगदगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया है। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से यूके सोसाइटी ने शंकराचार्य से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए मंदिर निर्माण पर उनसे परामर्श प्राप्त किया है।

कहा जाता है कि सोसाइटी की योजना है कि मंदिर का निर्माण जल्दी प्रारम्भ कर 2024 तक हर हाल में पूरा कर लिया जाए। उल्लेखनीय है कि लंदन में पहले से एक जगन्नाथ मंदिर है लेकिन वह छोटा है और अब सोसाइटी उड़ीसा की परंपराओं को जिन्हें जगन्नाथ संस्कृति कहा जाता है, उन्हें समूचे विश्व में प्रसारित करना चाहती है। इसे सिर्फ मंदिर की भांति ही नहीं, अपितु ओडिया सभ्यता के केंद्र की भांति तैयार किए जाने की परिकल्पना की गई है।

आद्य शंकराचार्य ने श्रीजगन्नाथ के वैष्णवीय लक्षणों को प्रकट करते हुए जगन्नाथाष्टकम् में सुंदर वंदना की है-

कदाचित् कालिन्दी-तट- विपिन-सङ्गीतक-वरो

मुदाभीरी-नारी-वदन- कमलास्वाद-मधुपः।

रमा-शम्भु-ब्रह्मामरपति-गणेशार्चित-पदो

जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे

अर्थात यमुना तटपर वनविहार करने वाले संगीतमय-वंशीवदन गोपिका-वल्लभ और ब्रह्मादि-देवगण द्वारा पूज्यपाद कृष्णरूपी श्रीजगन्नाथ, मेरे नेत्रपथ में आकर दर्शन दें।

'भुजे सव्ये वेणुं शिरसि। शिखिपिच्छं कटितटे

दुकूलं नेत्रान्ते सहचर- कटाक्षं विदधते ।

सदा श्रीमद्-वृन्दावन- वसति-लीला-परिचयो

जगन्नाथः स्वामी नयन- पथगामी भवतु मे।।

अर्थात हस्त में वंशी धारणवाम करते हुए, मस्तक में मयूर-पुच्छ सजाते हुए, सुन्दर वस्त्र-शोभित, नेत्रकोण में साथी की भ्रूभंगी दरशाते करते हुए वृन्दावन-विहारी लीलामय भगवान् कृष्ण-स्वरूप श्री जगन्नाथ मेरे नेत्र-पथ में आकर दर्शन दें।

पुनः वे परं ब्रह्म-स्वरूप नाग-शयन नीलगिरिवासी नीलपद्म-नयन श्रीजगन्नाथ की कृष्ण-मूर्ति्त और श्रीराधा-प्रीति का उल्लेख करते हुए कहते हैं -

'परंब्रह्मापीड़ः कुवलय- दलोत्फुल्ल-नयनो

निवासी नीलाद्रौ निहित- चरणोऽनन्त-शिरसि ।

रसानन्दो राधा-सरस- वपुरालिङ्गन-सुखो

जगन्नाथः स्वामी नयन- पथगामी भवतु मे।।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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