लद्दाख का लोकतांत्रिक उल्लास

लद्दाख का लोकतांत्रिक उल्लास

नई दिल्ली। भारत के विशिष्ट राज्य रहे जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते समय विभिन्न प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं। निश्चित रूप से उनमें राजनीतिक प्रतिक्रियाएं ज्यादा थीं। इसीलिए कई राजनेताओं को नजरबंद करना पड़ा था। इनमें से पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को एक वर्ष से ज्यादा समय के बाद अभी हाल ही रिहा किया गया। नजरबंदी से बाहर आते ही इन दोनों नेताओं ने इस तरह से बयानबाजी की है, जिससे वहां का वातावरण अशांत हो गया। जाहिर है कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने के पक्षधर नेता थे, जनता नहीं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह सामने आयी है कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य से जुड़े लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने से वहां की जनता ही नहीं, जनप्रतिनिधि भी खुश हुए थे। वहां किसी को नजरबंद करने की जरूरत नहीं समझी गयी। लोग केन्द्र सरकार के फैसले से खुश थे। इसी का सबूत है कि स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव में जनता ने बड़ी संख्या में प्रतिभागिता निभाई । इसलिए चुनाव में किसको कितनी सीटें मिली हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना वहां की जनता में केंद्र सरकार के प्रति विश्वास का बना रहना। लद्दाख बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश है। जम्मू कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख का भी इतिहास बदल गया है। लद्दाख अब एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। साथ ही राज्य को अपने नए उपराज्यपाल भी मिले हैं। रिटायर्ड आईएएस राधाकृष्ण माथुर ने 31अक्टूबर 2019 को लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर शपथ ली थी। इसी के साथ ही लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग हो गया । केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से आईएएस अफसर उमंग नरूला को लद्दाख के उपराज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया था। इसके अलावा आईपीएस अफसर एस.एस. खंडारे को लद्दाख पुलिस का प्रमुख बनाया गया। लद्दाख के अलावा जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू ने भी उसी दिन शपथ ली थी। अब जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल का दायित्त्व मनोज सिन्हा संभाल रहे हैं। लद्दाख के पहले उपराज्यपाल बने राधा कृष्ण माथुर 1977 बैच के त्रिपुरा कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। वे नवंबर 2018 में मुख्य सूचना आयुक्त के पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने केंद्र में व्यय सचिव के तौर पर भी कामकाज संभाला था।

लद्दाख के स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 15 सीटें जीती हैं, वहीं कांग्रेस के खाते में 9 सीटें आई हैं। इसके अलावा दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी इन चुनावों में जीत हासिल की है। इस केन्द्र शासित प्रदेश में एलएएचडीसी की 26 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें बीजेपी को बहुमत मिला है। इस क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद पहली लोकतांत्रिक कवायद यही हुई है। इसमें जनता ने बहुत उत्साह से भाग लिया। बीजेपी की इस जीत पर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बधाई दी है। नड्डा ने ट्वीट किया कि लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद में भाजपा की जीत, लेह चुनाव ऐतिहासिक है। 26 में से 15 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। मैं जाम्यांग शेरिंग नामग्याल और बीजेपी की लद्दाख इकाई के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं। भाजपा में विश्वास के लिए लद्दाख के लोगों का आभार।

यह सच है कि लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) ही क्षेत्र के विकास की रूपरेखा बनाती है। एलएएचडीसी के चुनाव में 22 अक्टूबर को लेह में 65.07 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। इसे मतदान का अच्छा प्रतिशत कहा जा सकता है।एक अधिकारी ने बताया कि छठा लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद-लेह चुनाव पूरे जिले में हुआ। जानकारी के अनुसार, कुल 65.07 प्रतिशत मतदाताओं ने चुनाव में खड़े 94 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।

लेह जिले के छठे पर्वतीय परिषद की 26 सीटों के लिए भाजपा, कांग्रेस, आप के साथ ही 23 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे।

अधिकारी ने कहा कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए प्रत्येक मतदान केंद्र पर भी एहतियाती उपाय अपनाये गए जिसमें मास्क लगाना, सेनेटाइजर का इस्तेमाल, एक दूसरे से दूरी बनाये रखने का नियम शामिल था। इसमें 45,025 महिलाओं सहित 89,776 मतदाता 26 निर्वाचन क्षेत्रों में फैले 294 मतदान केंद्रों पर मतदान करने के हकदार थे.। कुल 94 उम्मीदवारों में से भाजपा और कांग्रेस के 26-26 उम्मीदवार शामिल थे।

लद्दाख में शांति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुए इन चुनावों का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसी से लगे बड़े भू-भाग जम्मू एवं कश्मीर में कुछ लोग निहित स्वार्थ के चलते अशांति फैलाना चाहते हैं। दो पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370की बहाली और कश्मीर के झंडे का मामला उठा रखा है। इस झंडे की तीन रेखाओं में एक रेखा लद्दाख के नाम की भी है। इसका एक तात्पर्य यह भी है कि जो विवाद डाॅ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती उठा रही हैं, उससे एक तिहाई लोग तो सीधे-सीधे असहमत हैं। जम्मू में भी जिन लोगों ने महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के कार्यालय पर तिरंगा फहराया है, वे भी असहमत हैं। इसप्रकार चन्द लोग ही हैं जो अनुच्छेद और कश्मीर के अलग झंडे का राग अलाप रहे हैं।

ऐसा माना जाता है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के वजीरेआजम शेख मोहम्मद अब्दुल्ला 1952 में केंद्र और राज्य की शक्तियों को परिभाषित करने वाले एक समझौते पर राजी हुए थे। झंडे के मसले में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज माना गया और जम्मू-कश्मीर के झंडे को राज्य का झंडा माना गया और दोनों साथ फहराये गये। समझौते की धारा 4 में लिखा गया था, केंद्र सरकार केंद्रीय झंडे के साथ राज्य सरकार के अपने झंडे को लेकर सहमति जताती है लेकिन राज्य सरकार इस पर सहमत है कि राज्य का झंडा केंद्रीय झंडे का प्रतिरोधी नहीं होगा। यह भी मान्यता दी गयी थी कि केंद्रीय झंडे का जम्मू और कश्मीर में वही दर्जा और स्थिति होगी जो शेष भारत में है, लेकिन राज्य में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े ऐतिहासिक कारणों के लिए, राज्य के झंडे को जारी रखने की जरूरत को मान्यता दी गई है। बाद में जम्मू और कश्मीर के संविधान में भी इसे अपनाया गया। जम्मू और कश्मीर के झंडे का डिजाइन किसने बनाया था ये तो साफ नहीं है लेकिन इस संबंध में मोहन रैना नाम के एक व्यक्ति का नाम आता है। वह कलाकारों के परिवार से संबंध रखते थे और 21 नागरिकों के मारे जाने की कहानी के अलावा झंडा कुल मिलाकर एक राजनीतिक आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता था जो कि 1947 से पहले किसानों के शोषण और उसके खिलाफ केंद्रित था।

अब इस कहानी को महबूबा मुफ्ती और डाॅ. फारूक अब्दुल्ला भूल जाएं तो बेहतर होगा क्योंकि बीजेपी की मूल विचारधारा से पैदा हुई देश के एकीकरण की नीति को देखते हुए अब अनुच्छेद 370 की बहाली होना मुश्किल लगता है। जब तक बीजेपी सत्ता में है तब तक राज्य की शक्तियां बढ़ाने और उसे एक अलग दर्जा देने जैसे कदम स्वीकार नहीं हो सकते। लेकिन, जम्मू-कश्मीर में ये एक भावनात्मक मसला है जिसे नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल का भी संरक्षण हासिल है। लद्दाख इस पचड़े से अलग रहा ये अच्छी बात है। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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