सरधना के पूर्व विधायक अब्दुल वहीद कुरैशी का 96 साल की उम्र में इंतक़ाल

सरधना (मेरठ) :सरधना के पूर्व विधायक अब्दुल वहीद कुरैशी का 96 साल की उम्र में इंतक़ाल
"रुकी -रुकी सी नज़र आ रही है नब्ज़ -ए-हयात /ये कौन उठ के गया है मेरे सिरहाने से। आज सरधना नगर और देहात के साथ साथ बाबूजी के चाहने वाले बिल्कुल ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। मशहूर शायर इकबाल अशहर का ये शेर उनके चाहने वालों के हाल-दिल को बख़ूबी बयान कर रहा है"
एक कमज़ोर सी लरज़ती सी काया के बीच फौलादी जिगर और समाज को समरसता और सौहार्द के सूत्र में पिरोने की ग़ज़ब की क्षमता के मालिक रहे पूर्व विधायक अब्दुल वहीद कुरैशी अब किसी आयोजन का हिस्सा नहीं बन सकेंगे। होली-दुलहैंडी की रात 96 साल की उम्र में उनका इंतक़ाल हो गया।
एक जुलाई 1922 में बिस्मिल्ला कुरैशी के सरधना स्थित परिवार में जन्मे अब्दुल वहीद कुरैशी जब मेरठ कालेज से लॉ कर रहे थे, तभी उनका राजनीति में पदार्पण हुआ। वर्ष 1953 में वे पहली बार नगर पालिका परिषद् सरधना के चेयरमैन चुने गए तथा 18 वर्षो तक चेयरमैन पद पर कार्य किया। प्रारम्भ में वर्ष 1953 में राष्ट्रीय कांग्रेस में दो बार यूपीसीसी के सदस्य चुने गये। वर्ष 1967 में राष्ट्रीय कांग्रेस दल को छोड़कर बीकेडी पार्टी में शामिल हुए तथा वर्ष 1986 में राष्ट्रीय लोकदल पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए। कुरैशी जी वर्ष 2008 में चेन्नई फिशरीस रिसर्च इंस्टीटयूट ऑफ इण्डिया के सदस्य रहे। इसके अलावा कुरैशी जी ने रामलीला कमिटी के भवन हेतु भूमि दान के रूप में दी और दिलाई तथा अपनी चेयरमैनी समय में तयबजारी का अधिकार भी रामलीला कमेटी को ही दिलाया इसके अलावा मेला बूढा बाबू के मठ का चढ़ावा जो मुस्लिम जोगी को अपने पास से पैसा देकर हिन्दू मुस्लिम तनाव खत्म कराया। इसके अतिरिक्त कुरैशी जी संयुक्त व्यापार संघ सरधना के आजीवन संरक्षक भी रहे।
अब्दुल वहीद कुरैशी को हर समाज का व्यक्ति बाबूजी कहकर संबोधित करता था। जबकि विधायक बनने के बावजूद चेयरमैन के रूप में प्रसिद्ध रहे। उनकी नेतृत्व क्षमता और सम्मान का आलम यह रहा कि कोई सामाजिक आयोजन हो या धार्मिक, उनके बगैर जैसे पूरा ही न होता था। हर आयोजन के शुरू से लेकर आखिर तक साथ रहना, नगर में निकलने वाली तमाम धार्मिक यात्राएं जुलूस आदि में बाबूजी अग्रणी रहे। बदलते सामाजिक परिवेश के बीच नगर को सामाजिक समरसता आपसी सौहार्द का संदेश देने में मुख्य भूमिका निभाते रहे।
समाज के एकीकरण में उनका विशेष योगदान रहा। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के भामौरी कांड में काफी योगदान रहा। तथा वर्ष 1987 में जिला मेरठ में हुए साम्प्रदायिक दंगे में हिन्दू मुस्लिम समन्वय समिति स्थापित करके कस्बे को दंगे से मुक्त रक्खा तथा कस्बे में अमन चैन कायम रखा। इसके अलावा वर्ष 2004 में मेला बूढा बाबू सरधना में भी सांप्रदायिक झगड़ा समाप्त करने में विशेष सहयोग रहा। उनकी इसी विशेषता के कारण नगर ही नहीं जिला और प्रदेश स्तर के अधिकारियों के बीच बाबूजी को हमेशा सम्मान की नज़र से देखा जाता था। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि शुक्रवार शाम उनके जनाजे में उमड़े हज़ारों गमगीन चेहरों में किसी जाति या धर्म के लोगों की पहचान कर पाना नामुमकिन हो चला था।
यूं तो जीने को जिये एक जमाना साहिब
फिर भी अच्छा न लगा आपका जाना साहिब
जाते जाते भी रहा उनको हमारा ही ख़याल
दे गए हमको दुआओं का खज़ाना साहिब।
*साजिद अहमद क़ुरैशी पत्रकार*
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