नेपाल पर चीन की संगत का असर

नेपाल पर चीन की संगत का असर

लखनऊ। हमारे यहां कहावत है- संगत से गुन ऊपजै, संगत से गुन जाएं। अर्थात् हमारा जिस तरह का साथ होगा, वैसे ही गुण हमें मिलेंगे। अच्छी संगत है तो हम अच्छी बातें सीखेंगे और बुरी संगत है तो उसी तरह के गुण भी हमारे अंदर पैदा होंगे। हमारे पड़ोसी देश नेपाल के साथ भी यही हो रहा है। नेपाल के भारत से बहुत ही नजदीकी संबंध रहे हैं। एक-दूसरे की संस्कृति मिलती है। नेपाल में जानकी का मंदिर है जहां आज भी अयोध्या से बारात जाती है। नेपाल की भारत से नजदीकी रही तो उसकी सरलता-सहजता की दुनिया भर में तारीफ भी होती थी लेकिन जबसे वहां वामपंथी दलों का वर्चस्व कायम हुआ है, तब से उसकी निकटता साम्यवादी चीन से हो गयी। चीन के बारे में सभी जानते हैं कि वह बहुत ही धूर्त स्वभाव का है। कितने ही देशों को सहायता के नाम पर कर्ज देकर उसने वहां की जमीन हड़प ली है। अभी ताजा मामला ताजिकिस्तान का चल रहा है और पामीर के साथ वह वहां की ढेर सारी जमीन हड़पना चाहता है। चीन की संगत का असर नेपाल पर भी पड़ रहा है। अब उसकी वाणी में सहजता नहीं रह गयी है। भारत के साथ उसका नक्शा विवाद तो चल ही रहा है, अब उसने भारत की सीमा पर सशस्त्र पुलिस बल तैनात कर दिया है। नेपाल के विदेश मंत्री कहते हैं कि पहले हम भारत के ज्यादा करीब थे लेकिन अब मध्य के रास्ते पर चल रहे हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार नेपाल की मौजूदा सरकार धीरे-धीरे चीन के चंगुल में फंसती जा रही है।

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा इसी वर्ष 8 मई को 80 किमी। लम्बे मानसरोवर मार्ग का उद्घाटन करने के बाद दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है। इसके बाद नेपाल की तरफ से छंगरू, डमलिंग, धारचूला, जौलजीवी, लाली व झूलाघाट में सीमा चौकी बनाने की तैयारी हो रही है। नेपाल के चीन की तरफ बढ़ते झुकाव और आंतरिक राजनीति में दखल का नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप गवाली ने बचाव किया है। नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा कि पहले हम भारत की तरफ ज्यादा झुके थे लेकिन अब हम सही रास्ते पर आए हैं। नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा, वर्तमान सरकार या नेपाल का चीन के प्रति झुकाव वाला आरोप परेशान करने वाला है। हमने बार-बार कहा है कि हम एक संतुलित और राष्ट्रीय हित पर आधारित संबंध बनाते हैं। हम दोनों पड़ोसियों भारत और चीन के साथ सहयोग और साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहते हैं। दोनों पड़ोसियों के साथ सहयोग हमारे लिए जरूरी है। हम एक की कीमत पर दूसरे के रिश्ते को बढ़ावा या अनदेखा नहीं कर सकते। गवाली ने कहा, नेपाल ने अब चीन को जो समझ दी है, वह वास्तव में इतिहास में पहले से ही होनी चाहिए थी। पहले नेपाल एक तरफ झुक गया। हमने उस एकतरफा ढलान को सही जगह लाने की कोशिश की है। इसलिए, नेपाल कहीं भी झुक नहीं रहा है बल्कि हमने अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ सहयोग के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की है। हमने एकतरफा निर्भरता को खत्म करने की कोशिश की है। हम कनेक्टिविटी को विविधता देना चाहते हैं। इसलिए, हमने चीन के साथ एक परिवहन समझौते पर हस्ताक्षर किए। हम न केवल भारत के साथ, बल्कि चीन के साथ भी एक बहुआयामी कनेक्टिविटी नेटवर्क से जुड़ना चाहते हैं ताकि हमारे पास अधिक विकल्प हों।

नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप गवाली ने कहा, हमें पता है कि भारत-चीन के बीच विवाद है लेकिन 21वीं सदी को एशियाई सदी कहा जाता है। इस संदर्भ में, चीन और भारत के बीच जितनी अच्छी समझ विकसित हो और सहयोग हो, क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि बढ़ेगी। यही नहीं, यह विश्व शांति के लिए एक उपलब्धि होगी। इसलिए उनके बीच की दूरी कम होने दें और सहयोग बढ़ाएं। हम भी यही चाहते हैं। यदि भारत और चीन के बीच कोई विवाद है, तो हम किसी का पक्ष नहीं लेंगे। हम योग्यता और मुद्दे के आधार पर अपने रिश्तों को आगे बढ़ाते हैं।

उन्होंने कहा, एक लैंडलॉक वाले देश के रूप में, नेपाल को उत्पादन और परिवहन में किसी अन्य देश की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक का भुगतान करना पड़ता है। बांग्लादेश में अगर कोई उत्पाद 100 डॉलर में बनाया जाता है तो नेपाल में उसी चीज की कीमत 120 डॉलर पड़ती है। इसे कम करने का एकमात्र तरीका परिवहन सुविधाओं में विविधता लाना है। यह नेपाल के हित में है। यह सोचना गलत है कि यह चीन के प्रति झुकाव है।

पिछले कुछ दिनों में चीनी राजदूत होउ यान्की नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात कर घेरे में आ गई थीं। कहा जा रहा था कि ओली की कुर्सी बचाने के लिए और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में फूट पड़ने से रोकने के लिए वह तमाम कोशिशें कर रही हैं। इसे लेकर भी नेपाल के विदेश मंत्री ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, हाल के दिनों में जिस तरह से चीनी राजदूत पर टिप्पणी की गई है, उसमें मुझे भी एक दोष नजर आता है। चीन की घोषित नीति है। वह दूसरों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है। इसलिए विकासशील देशों का चीन के साथ विश्वास और सहयोग है। वह कई मुद्दों पर पहल करते हुए छोटे और विकासशील देशों की वकालत करता है। इसलिए, चीन पर नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाना गलत है।

गवाली ने कहा, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच भाईचारा है। इसलिए, दोनों देश पिछले कुछ समय से अनुभवों का आदान-प्रदान कर रहे हैं और एक दूसरे की अच्छी परंपराओं और सफलताओं से सीख रहे हैं। यह स्वाभाविक है। हालांकि, इस पर पक्षपाती तरीके से टिप्पणी की जा रही है। उन्होंने कहा, हम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को मित्र मानते हैं। चीनी क्रांति से सीखने के लिए कई सकारात्मक चीजें हैं। आज, चीन ने अभूतपूर्व प्रगति की है। यह दुनिया के समाजवादियों के लिए एक प्रेरणा हो सकती है और हमें उनके अनुभव से सीखना होगा। हालांकि, हम चीनी क्रांति की नकल नहीं करते हैं। हम चीनी समाजवादी मॉडल का बिल्कुल पालन नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, ऐसा कहा जा रहा है कि नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी इन मतभेदों के बीच अंतर किए बिना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर झुक गई है। हमने चीन के अनुभव से सीखने की कोशिश की है। उन्होंने आज यह सफलता कैसे हासिल की, मुझे लगता है, यह कुछ ऐसा है जो न केवल सीपीएन (माओवादी) बल्कि दुनिया भर के देशों को सीखने की जरूरत है। हम मुख्य रूप से चीन से दो चीजें सीख सकते हैं। पहला है शासन। जब शी जिनपिंग सत्ता में आए, उन्होंने सख्त नियमों को लागू करने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया। दूसरा चीन का विकास है।

नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा, वर्तमान सरकार या नेपाल का चीन के प्रति झुकाव वाला आरोप परेशान करने वाला है। हमने बार-बार कहा है कि हम एक संतुलित और राष्ट्रीय हित पर आधारित संबंध बनाते हैं। हम दोनों पड़ोसियों भारत और चीन के साथ सहयोग और साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहते हैं। नेपाल का यह कथित संतुलन कहीं उसे ताजिकिस्तान बना दे। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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