ओली के बारे में सनसनीखेज खुलासे!

ओली के बारे में सनसनीखेज खुलासे!

लखनऊ। नेपाल का घटनाक्रम रोज नए-नए मोड़ लेता है। असन्तोष के बावजूद प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हो रहे हैं। परन्तु उनके कारनामे चर्चा के विषय बने हुए हैं। भगवान राम को नेपाल का बताने के बाद प्रधानमंत्री की जग हंसाई हो रही है। अब नेपाली पुरातत्व विभाग प्रधानमंत्री के दावे के समर्थन में प्रमाण गढ़ने की तैयारी कर रहा है। क्योंकि नेपाल में तो अयोध्या नाम का कोई स्थान ही नहीं है। ऐसा ही विकट परिस्थिति तब उत्तपन्न हुई थी जब कालापानी इत्यादि भारतीय क्षेत्रों को नेपाल की सीमा में बताने के बाद नेपाली संसद से प्रस्ताव भी पारित करा लिया गया। जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से पूछा गया कि सीमा में जो भारतीय क्षेत्र दिखाए जा रहे है, उनका आधार क्या है ? तब उन्होंने स्वीकार किया कि इसका प्रमाण नहीं है। इसके बाद तथ्य जुटाने के लिए आदेश दिया गया। नेपाली प्रधानमंत्री पर चीनी एजेंडे ओर चलने के आरोप लगते रहे है । चीनी राजदूत द्वारा उन्हें हनी ट्रैप में फंसाने के आरोप भी लगे, जिससे वे बुरी तरह से चिढ़े। सनसनीखेज रहस्योद्घाटन में पता लगा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की संपत्ति में पिछले कुछ सालों के दौरान भारी वृद्धि हुई है। विदेशों में भी उनके खातों का पता चला है। इस भ्रष्टाचार में चीनी राजदूत उनके बड़े मददगार बताए जाते हैं। यह चीन की कोई नई चाल नहीं है। वह नेपाल जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में घुसने के लिए वहां के भ्रष्ट नेताओं का इस्तेमाल करता रहा है। ऐसा आरोप ग्लोबल वॉच एनालिसिस की ताजा रिपोर्ट में लगाया गया है।

रिपोर्ट के लेखक रोलांड जैकार्ड के अनुसार, इसके पीछे चीन के दो उद्देश्य हैं। पहला, सम्बन्धित देश में चीनी कंपनियों के व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाना। दूसरा, सम्बन्धित देश की नीतियों को प्रभावित करना ताकि चीन का दीर्घकालिक प्रभाव कायम रहे।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ओली का जेनेवा स्थित मिराबॉड बैंक में भी खाता है। इस बैंक में ओली ने लांग टर्म डिपॉजिट और शेयर्स के तौर पर 5.5 मिलियन डॉलर (करीब 48 करोड़ रुपये) निवेश कर रखा है। इससे ओली और उनकी पत्नी राधिका शाक्य को सालाना करीब 3.5 करोड़ रुपये का मुनाफा होता है। जबकि बैंक ने अपने यहां ओली के नाम से कोई खाता नहीं होने की बात कही है। रिपोर्ट में चीन की मदद से ओली के भ्रष्ट कारनामों के कई उदाहरण भी बताए गए हैं।

रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 में नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ओली ने चीन के तत्कालीन राजदूत वु चुन्ताई की मदद से कंबोडिया के टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर में निवेश किया था। ओली के करीबी नेपाली कारोबारी अंग शेरिंग शेरपा ने यह सौदा कराया था। इसमें कंबोडिया के प्रधानमंत्री हू सेन और चीनी राजनयिक बो जियांगओ ने भी मदद की थी। ओली अपने दूसरे कार्यकाल में भी भ्रष्टाचार के ऐसे ही आरोपों से घिरे हुए हैं। उन्होंने नियमों को दरकिनार कर चीनी परियोजनाओं को मंजूरी दी। रिपार्ट के अनुसार दिसबंर 2018 में एक डिजिटल एक्शन रूम के निर्माण का ठेका बिना किसी निविदा के चीनी कंपनी हुआवे को दे दिया गया। जबकि, सरकारी कंपनी नेपाल टेली कम्युनिकेशन इस काम को अच्छी प्रकार कर सकती थी। जब हो - हल्ला मचा और इसकी जांच कराई गई तो पता चला कि ओली के राजनीतिक सलाहकार विष्णु रिमल के बेटे ने यह सौदा कराने में अहम भूमिका निभाई थी ताकि उसे वित्तीय लाभ मिल सके। एक अन्य उदाहरण मई 2019 का बताया जाता है जब मनमाने ढंग से चीनी कंपनियों को करोड़ों के ठेके दे दिए गए। ओली की इन्हीं करतूतों के चलते गत जून में छात्र सड़कों पर उतर आए थे। वे कोरोना वायरस से निपटने के तौर-तरीकों से गुस्से में थे। छात्रों का आरोप था कि चीन से जो पीपीई किट, टेस्ट किट आदि खरीदे गए, वे घटिया ही नहीं, महंगे भी हैं। इस मामले में नेपाल के स्वास्थ्य मंत्री के अलावा ओली के कई करीबी सलाहकारों के खिलाफ रिश्वतखोरी की जांच चल रही है। भ्रष्टाचार के ऐसे आरोपों से नेपाल में ओली और उनके चीनी सहयोगियों के लिए विकट स्थिति उत्पन्न होती जा रही है।

एक अन्य घटनाक्रम में नेपाल के पुरातत्व विभाग ने अब उस जगह खुदाई करने का ऐलान किया है जहां प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भगवान राम का असली जन्म स्थान होने का दावा किया था. पुरातत्व विभाग ने देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित थोरी में खुदाई और अध्ययन शुरू करने की योजना की घोषणा की है। सूत्रों के अनुसार यह कदम ओली द्वारा किए गए दावे के लिए सबूत जुटाने के लिए उठाया गया है।

स्मरण रहे राम से संबंधित ओली के दावे को नेपाल के कई बड़े नेताओं ने निराधार और अप्रासंगिक बताया है और प्रधानमंत्री की आलोचना भी की है. ओली ने कहा था कि बीरगंज के पास थोरी में भगवान राम का जन्म हुआ था और असली अयोध्या नेपाल में है। बताया जाता है कि ओली की टिप्पणी के बाद पुरातत्व विभाग (डीओए) ने क्षेत्र में संभावित पुरातात्विक अध्ययन के लिए विभिन्न मंत्रालयों के साथ चर्चा शुरू कर दी है. डीओए के प्रवक्ता राम बहादुर कुंवर के द्वारा बताया गया है. बीरगंज के थोरी में पुरातात्विक अध्ययन शुरू करवाने की संभावना को लेकर विभाग विभिन्न मंत्रालयों के साथ चर्चा कर रहा है।

डीओए के महानिदेशक दामोदर गौतम ने बताया कि प्रधानमंत्री ओली के बयान के बाद विभाग थोरी में पुरातात्विक अध्ययन शुरू करवाने के प्रति गंभीर है। उन्होंने कहा, श्विभाग विशेषज्ञों के साथ चर्चा करेगा और किसी नतीजे पर पहुंचेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा, प्रधानमंत्री के ऐसे बयान के बाद अध्ययन करना हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन, मैं यह नहीं कह सकता कि हमारे पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त आधार हैं कि अयोध्या नेपाल में है। जबकि ओली की कुर्सी पर संकट टलता नहीं दिख रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी की 45 सदस्यीय स्थायी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक से पहले ओली-प्रचंड ने मीटिंग की लेकिन ये बेनतीजा ही रही। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ओली पद से इस्तीफा देने या एनसीपी का अध्यक्ष पद छोड़ने, दोनों से ही इनकार कर रहे हैं। पार्टी के अध्यक्ष ओली, प्रचंड और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने बलुवाटा रमें प्रधानमंत्री आवास पर एक अनौपचारिक बैठक की. स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह ने कहा कि हालांकि, तीनों नेता किसी समझौते पर पहुंचने में नाकाम रहे. इससे पहले, प्रधानमंत्री ओली और असंतुष्ट समूह का नेतृत्व कर रह रहे प्रचंड अपनी-अपनी मांगों पर अड़े रहे। विगत कुछ हफ्तों में कम से कम आठ दौर की वार्ता होने के बाद भी सत्ता साझेदारी पर पहुंचने में ओली और प्रचंड नाकाम रहे। शीघ्र होने वाली स्थायी समिति की बैठक में 68 वर्षीय प्रधानमंत्री के राजनीतिक भविष्य पर निर्णय होने की संभावना है. ओली ने आरोप लगाया है कि भारत की मदद से उन्हें पद से हटाने की कोशिश की जा रही है. प्रचंड सहित पार्टी के नेताओं ने प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि भारत विरोधी उनकी हालिया टिप्पणी श्ना तो राजनीतिक रूप से सही है और ना ही कूटनीतिक रूप से उपयुक्त है। वे ओली के कामकाज करने की निरंकुश शैली के भी खिलाफ हैं। प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा ने भी स्वीकार किया कि बातचीत बेनतीजा रही, जबकि नेताओं ने करीब दो घंटे बैठक की। सूत्र बताते हैं कि एनसीपी की 45 सदस्यीय स्थायी समिति में प्रचंड के गुट को 30 से अधिक सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। आने वाला समय तय करेगा पुष्प कुमार दहल प्रचण्ड, माधव कुमार नेपाल के विरोध के बावजूद चीन के समर्थन से के पी शर्मा ओली कब तक अपनी कुर्सी बचा पाएंगे?

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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