ईरान में डीरेल हुई भारतीय रेल

ईरान में डीरेल हुई भारतीय रेल

लखनऊ। ईरान और भारत के बीच चार साल पहले चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान सीमा पर जाहेदान तक रेल लाइन बिछाने को लेकर समझौता हुआ था। भारत और ईरान के बीच दो समझौते हुए थे। उसमें पहला चाबहार-जहेदान रोड था और दूसरा चाबहार पोर्ट।

मंगलवार 14 जुलाई को ये खबर आई कि ईरान ने भारत को चाबहार रेल परियोजना से बाहर कर दिया है और इसकी वजह है भारत से फंड मिलने में देरी। ईरान और भारत के बीच चार साल पहले चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान सीमा पर जाहेदान तक रेल लाइन बिछाने को लेकर समझौता हुआ था। भारत और ईरान के बीच दो समझौते हुए थे। उसमें पहला चाबहार-जहेदान रोड था और दूसरा चाबहार पोर्ट। खबरों की माने तो ईरान ने अपने आप ही प्रोजेक्ट को पूरा करने का फैसला लिया है और इस पर काम शुरू भी कर दिया है। 628 किलोमीटर लंबे इस रेल मार्ग को बिछाने का काम बीते हफ्ते शुरू हो गया है। ईरान ने कहा है कि वह इस परियोजना पर भारत की मदद के बिना ही आगे बढ़ेगा। इसके लिए उसने देश के नेशनल डेवलपमेंट फंड में से 40 करोड़ डॉलर की राशि का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। अभी तक इसे भारत की सरकारी रेलवे कंपनी इरकाॅन पूरा करने वाली थी। इस योजना को लेकर ईरान, भारत और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। भारत ने पाकिस्तान से दूरी बनाने के लिए अफगानिस्तान में जरंज और दिलाराम के बीच 200 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई।

भारत ने जब से अमेरिकी दबाव में आकर ईरान से तेल खरीदना बंद किया है तब से ही ईरान और भारत के रिश्तों में तनाव घुलने लगा था। अब ईरान ने इसका जवाब चाबहार से जाहेदान तक की महत्वपूर्ण रेल परियोजना से भारत को बाहर कर के दिया है। इससे भारत की परेशानी की दो वजहें हैं, एक तो अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशियाई देशों तक कारोबार करने की भारत की रणनीति को गहरा धक्का लगा है। दूसरा, ईरान ने संकेत दिए है कि समूचे चाबहार सेक्टर में चीन की कंपनियों को बड़ी भागीदारी निभाने का रास्ता साफ किया जा सकता है। हाल ही ईरान ने चीन के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत चीनी कंपनियां ईरान में अगले 25 वर्षों में 400 अरब डॉलर का भारी-भरकम निवेश करेंगी। ईरान के परियोजना से हाथ खींचने की खबर ऐसे समय आई है जब भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।

ईरान के इस फैसले पर भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ईरान का फैसला चाबहार पोर्ट के जरिए रणनीतिक हित साधने की कोशिश करना है। चाबहार परियोजना भारत के लिए रणनीतिक तौर पर एक महत्वपूर्ण परियोजना रही है। चाबहार पोर्ट सिर्फ भारत की अफगानिस्तान नीति और अफगान में पाकिस्तान की घुसपैठ को कम करने के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि जिस रेल प्रोजेक्ट से भारत को अलग किया गया है वह भविष्य में भारतीय उत्पादों को रेल मार्ग से यूरोप तक बहुत ही कम समय में और कम लागत पर भेजने का काम करने वाला था। यह रेल प्रोजेक्ट चाबहार पोर्ट से जाहेदान के बीच की है। भारत की तैयारी इसे जाहेदान से आगे तुर्केमिनिस्तान के बोर्डर साराख तक ले जाने की थी। इसकी संभावनाओं को देखते हुए भारत चाबहार पोर्ट पर एक बड़ा आर्थिक जोन भी बनाने की योजना बना रहा था। इसकी जानकारी जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में भी दी थी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल पहले यानी वर्ष 2016 में जब ईरान का दौरा किया था तब इस रेल परियोजना को लेकर समझौता हुआ था। इसकी वजह से अफगान तक मदद पहुंचाने के लिए भारत अब पाकिस्तान के भरोसे नहीं रह गया है। भारत की ओर से इंडियन रेलवेज कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (इरकॉन) को इस रेल ट्रेक के निर्माण में शामिल होना था। ये भारत-अफगानिस्तान और ईरान के बीच हुआ समझौता था। इरकॉन ने ईरानी रेल मंत्रालय के साथ एमओयू साइन किया था। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, इरकॉन ने इस रेल प्रोजेक्ट के लिए सभी सेवाएं, सुपरस्ट्रक्चर वर्क और आर्थिक सहयोग (करीब 1.6 अरब) देने का वादा किया था। खबरों के मुताबिक इरकॉन के इंजीनियर कई बार साइट पर गए और ईरानी रेलवे ने तैयारी भी कर ली थी, लेकिन भारत ने कभी काम शुरू नहीं किया। जानकारों का मानना है कि इसके पीछे जाहिर तौर पर अमेरिका की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने का डर था। हालांकि अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह और जाहेदान तक रेल लाइन के काम को लेकर प्रतिबंधों में छूट दे दी थी, लेकिन इक्विपमेंट सप्लायर और पार्टनर मिलने में दिक्कत आ रही थी क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से कोई भी इस काम में जुड़ना नहीं चाहता था। बता दें कि अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से भारत ने ईरान से तेल खरीदना एकदम बंद कर रखा है जबकि वर्ष 2018-19 तक वह भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश था। वर्ष 2019-20 के शुरू के दो महीने भी भारत ने तेल खरीदे, लेकिन उसके बाद कोई भी खरीद नहीं की है। भारत ने दूसरे देशों से तेल तो हासिल कर लिया है लेकिन इस बीच अमेरिका के बढ़ते दबाव में चीन और ईरान के बीच रिश्ते तेजी से सुधरने लगे हैं। चीन ईरान और पाकिस्तान को भी एक साथ ला सकता है जिससे अफगानिस्तान में भारतीय पक्ष और कमजोर हो सकता है।

मई 2016 में जब भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने एक अंतरराष्ट्रीय यातायात मार्ग बनाने का निर्णय लिया था, तब से ही चाबहार बंदरगाह पर काम चल रहा है। भारत इस रास्ते का इस्तेमाल अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए भी करना चाहता था। वैसे भारत से अफगानिस्तान पहुंचने का आसान तरीका तो पाकिस्तान के रास्ते है, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध लंबे दौर से अच्छे नहीं हैं और दोनों के दरवाजे एक-दूसरे के लिए एक तरह से बंद हैं। इसलिए चाबाहर परियोजना भारत के लिए बेहद जरूरी थी। इस चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का जवाब भी माना जा रहा था। ग्वादर पोर्ट चाबहार से 70 किलोमीटर ही दूर है। चीन ने अब जिस तरह से मध्य पूर्व में ईरान के जरिए एंट्री मारी है, यह सिर्फ भारत के लिए ही चुनौती नहीं है बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी चिंता का विषय है और न ही इस चुनौती से भारत अकेला लड़ सकता है, क्योंकि अब पूरा ग्वादर से लेकर चाबहार और बंदर-ए-जस्क पोर्ट, जो चाबहार से करीब 350 किलोमीटर दूर है, उन सब पर धीरे-धीरे चीन का कब्जा होता जा रहा है और तो और ईरान के साथ डील कर चीन ने उसकी अर्थव्यवस्था में बड़ी सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। उसकी नजर वहां के ऑयल माइनिंग सेक्टर पर होगी ताकि उसकी जरूरतें भी आसानी से पूरी हो सकें। पाकिस्तान के बाद अब अगर ईरान में उसकी पैठ बन गई तो अफगानिस्तान और भारत के रिश्ते खतरे में आ जाएंगे। सेंट्रल एशिया के देशों पर रूस का प्रभाव रहा है और अगर वे चीन का सहयोग करने लगे तो ड्रैगन को सुपरपावर बनते देर नहीं लगेगी। साउथ एशिया के साथ चीन का ट्रेड पिछले दो दशक में 23 गुना तक बढ़ गया है। म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल तक चीन की सड़कें हैं। श्रीलंका, मालदीव में उसके ठिकाने हैं। ईरान पर चीन का कंट्रोल जितना बढ़ेगा, भारत के लिए उतना बुरा है। भारत को चीन की इस सॉफ्ट-एग्रेसिव पॉलिसी से सावधान रहना होगा।

(नाज़नींन -हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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