अपने गाँव के लिए दुबई से दिखाई दरियादिली, कौन है वो .......

अपने गाँव के लिए दुबई से  दिखाई दरियादिली, कौन है वो .......

मुज़फ्फरनगर। कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में फैला तो पूरे देश को लॉकडाउन करना पड़ा । मुज़फ्फरनगर सदर तहसील के गाँव बिलासपुर में लॉकडाउन के कारण गरीब लोगो के सामने राशन की दिक्कत आने लगी तो ऐसे में यूपी सरकार और केंद्र सरकार ने गेंहूं और चावल का वितरण कराकर गरीब लोगो को मदद दी, मगर गेहूं और चावल के अतिरिक्त जरूरत की अन्य सामग्री की जब जनता को कमी पड़ने लगी, तो इसी गाँव के 22 साल पहले दुबई में कारोबार शुरू कर वहीं परिवार के साथ बस गए एक नौजवान ने अपने गाँव के लोगो की जरूरत की सामग्री घर घर भिजवाने की प्लानिंग की और गाँव के प्रधान एंव स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इस नौजवान ने 1500 राशन के पैकेट अपने गाँव के जरूरतमंदों को भिजवाकर साबित किया कि अभी इस युवा के मन में अपने गाँव की मिटटी से बहुत प्यार है। कौन है युवा एनआरआई, पढ़िए खोजी न्यूज़ कि आज की स्पेशल रिपोर्ट -------



कोरोना महामारी से बचाव हेतू 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लाॅक डाउन की घोषणा की थी तब शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये महामारी इतना भयावह रूप ले लेगी कि इस लाॅकडाउन का तीसरा चरण भी देश के लोगो को देखना पड़ेगा। साइकिल से लेकर रेल तक और कुम्हार के चाक से लेकर कल कारखानों के पहिये तक सब के सब जहां थे वही के वहीं थम गये। पूरी दुनियां की आर्थिक व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है कोई नही जानता है कि लाॅकडाउन खुलने के बाद क्या स्थिति होगी। लेकिन इस सब से पहले समाज का वो वर्ग जो गरीब,मजदूर व रोज़ का करने-खाने वाला है सबसे ज़्यादा परेशान है उसके सामने खाने पीने की समस्या मुंह बाये खड़ी है ये ऐसे लोग हैं जो रोज कमाते थे और अपने परिवार का पेट भरते थे पेशेवर लोगो को हाथ फैलाने मे ना कल कोई शर्म थी और ना आज कोई शर्म है परेशानी उन लोगो के साथ है जो अपने स्वाभिमान के कारण ना किसी के सामने हाथ फैला सकते है और ना अपनी मजबूरी किसी को बयान ही कर सकतें है। सरकार हो या पुलिस व प्रशासन अपने अपने स्तर पर हर संभव प्रयास कर रही हैं कि देश मैं कोई गरीब भूखा ना सोये लेकिन सामाजिक सहयोग के बिना ये संभव नही है इसलिये अलग अलग सामाजिक संस्थाएं, व्यापारी वर्ग व बड़े उद्योगपति अपनी अपनी क्षमता के अनुसार भूखों तक खाना पहुंचाने का कार्य कर रहें है।



इसका एक कारण ये भी है कि भूखे और मजबूर लोगो की ये परेशानी हम सब के सामने है और मानवता के नाते ये एक सभ्य समाज का फर्ज बन जाता है, लेकिन किसी व्यक्ति का अपने गाँव से लगभग ढाई हजार किलोमीटर दूर रहते हुए भी अपने क्षेत्र के गरीबों के लियें चिंतित होना मानवता की एक बडी मिसाल है। मुजफ्फरनगर की सदर तहसील के ग्राम बिलासपुर निवासी एनआरआई ज़ीशान हैदर ज़ैदी, जिन्होने दुबई बेठे हुए अपने गांव के उन लोगों की सुध ली , जिनके सामने खाने पीने की समस्याएं उत्पन्न थी।

लगभग 23 साल पहले मुजफ्फरनगर के गांव बिलासपुर को छोड़ चुके जीशान हैदर सपरिवार दुबई जाकर बस गयें है। दुबई मे ज़ीशान का कंस्ट्रक्शन व रियल एस्टेट का व्यापार है जो अब अन्य देशो मे भी फैल चुका है। ज़ीशान हैदर समय समय पर अपने गांव के लोगों को मदद पहुंचाते रहे हैं, चाहें गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी हो, किसी को आर्थिक मदद देनी हो या फिर गांव के ही युवकों को रोजगार पर खड़े करना हो , जीशान हैदर किसी ना किसी बहाने अपने गांव से जुड़े रहे। कोरोना वायरस के चलते देश में लगे लाॅकडाउन को देखते हुए ज़ीशान हैदर ने प्रशासन की अनुमति से गांव में पहले चरण में 1500 सूखे राशन के पैकेट वितरित किए। जिनमें सबसे पहले पूरे गांव में जरूरतमंद लोगों की लिस्ट तैयार की गई। उसके बाद बिना किसी दिखावे के सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए सूखे राशन के पैकेट पात्र व्यक्ति के घर तक पहुंचायें गए। इस कार्य में जीशान हैदर के चाचा उनके मामा तथा गांव के प्रधान सहित अनेक जिम्मेदार लोगो ने इस नेक मुहिम मे ज़ीशान का सहयोग किया । खास बात यह रही कि इस राशन वितरण में कोई धार्मिक भेदभाव देखने को नहीं मिला तथा भरपूर कोशिश की गई कि जो मजदूर पेशा लोग बिना काम के अपने घर बैठ गए थे और किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला सकते थे। उनको बिना किसी शोर-शराबे के मदद पहुंच सके।



जीशान हैदर कहते हैं कि 23 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैंने अपने आप को अपने गांव से अलग पाया हो। किसी ना किसी बहाने मैं अपने गांव और अपने गांव के लोगों की खैर खबर लेता रहता हूं। जीशान हैदर के परिवार में उनके भाइयों के अलावा उनकी माताजी भी दुबई में जीशान के साथ ही रहती हैं। ज़ीशान का अपने पैतृक गांव बिलासपुर में एक आलीशान मकान है, जिसमे वो कभी कभी आकर ठहरते है।

खोजी न्यूज़ द्वारा ये पूछने पर कि कोठी बिलासपुर गाँव में ही क्यों, आप चाहतें तो मुजफ्फरनगर शहर मे भी रह सकते थे, जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध है। इस बात पर ज़ीशान बताते हैं कि मै मुजफ्फरनगर मे रह सकता था लेकिन मेरे इस कदम से मेरा गांव मुझसे दूर हो जाता। जो मैं कभी नहीं चाहूंगा । मैं एक लंबे संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचा हूं और संघर्ष के दौरान मेरे स्वर्गीय पिताजी का सरंक्षण हमेशा मुझे मिलता रहा । मेरे गांव के साथ मेरे स्वर्गीय पिताजी की यादें जुड़ी हुई हैं। आज भी फुरसत के पलों मे मैं अपने आपको गाँव के लोगो , अपने गांव की सड़क और खेत खलियान के बीच महसूस करता हूँ।

व्यापारिक व्यस्तता के चलते ज़ीशान पिछले एक साल से गांव में नहीं आ पायें हैं लेकिन गांव की हर परेशानी को दुबई में रहकर दूर करने की कोशिश करते हैं और इसे अपनी जिम्मेदारी समझते है। ज़ीशान बताते है कि मेरी इच्छा है कि मै अपने ज़िले के लिये ऐसा कोई कार्य करूं जिससे मेरे गांव व ज़िले के युवाओं को रोज़गार मिले तथा मेरे ज़िले का नाम रोशन हो।

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