मिर्जा ग़ालिब : शायर-ए-आजम
“रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है”
“रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है”
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“रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है”