हाईकोर्ट ने परीक्षा में नकल को बताया बीमारी- लागू होगी नयी शिक्षा नीति

हाईकोर्ट ने परीक्षा में नकल को बताया बीमारी- लागू होगी नयी शिक्षा नीति

नई दिल्ली। अभी दो दिन पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने नकल की विभीषिका को लेकर चिंता जतायी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने परीक्षा में नकल को प्लेग की महा बीमारी बताया। अदालत ने निर्देश दिया है कि परीक्षा में पास होने के लिए अनुचित साधनों का इस्तेमाल करने वाले के खिलाफ सख्ती बरती जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि नकल के खिलाफ सख्ती का संदेश सभी शिक्षा संस्थाओं और छात्रों तक भी पहुंचना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा किसी भी देश की प्रगति और प्रतिष्ठा के लिए शैक्षिक प्रणाली की शुचिता और अखंडता अचूक होनी चाहिए। यह सच भी है कि परीक्षा में नकल एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी देश के समाज और शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर सकती है। नकल की महामारी को कैसे रोका जा सकता है इसको लेकर कोई एक मत नहीं है। शिक्षा व्यवस्था को सुधारना भी एक कारक है। नकल करने का कदाचार वही करता है जिसनें मन लगा कर पढा नहीं। पढने में मन क्यों नहीं लगा यह भी एक अहम सवाल है। पढाई समझ में क्यों नहीं आती इसका जवाब शिक्षा व्यवस्था में ही निहित है। हमारे देश की सरकार ने यह महसूस भी किया है। डाक्टरी और इंजिनीयरिग की किताबें हिंदी और स्थानीय भाषाओं में लिखाने का यही मकसद है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने नयी शिक्षा नीति इसी उद्देश्य से तैयार की है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान नयी शिक्षा नीति नये वर्ष 2023 में लागू करने वाले हैं। यह शिक्षा नीति हमारे इतिहास को सही रूप में सामने रखेगी।

हमारी प्राचीनतम संस्कृति और मौजूदा समय की गतिशीलता प्रमाण है कि भारत विश्व मानवता की धरोहर है। इसका मूल्यांकन विदेशी विद्वानों ने किया। वे हमारी योग्यता और छमता के साथ भेदभाव करते रहे और उसे प्रतिस्थापित करने का प्रयास भी किया है। एक ताजा अनुभव है। पिछले दिनों हिन्दी फिल्म अंगूर देख रहा था। यह फिल्म अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार विलियम। शेक्सपीयर की रचना द कॉमेडी आफ इरर्स पर आधारित है। शेक्सपीयर महान नाटककार थे लेकिन ऐसा भी नहीं जैसे उस फिल्म की भूमिका में बताया जाता है कि वह दुनिया में सबसे श्रेष्ठ नाटककार हैं। यह तो सीता स्वयंबर के समय राजा जनक की वीर बिहीन मही मैं जानी वाली बात हो गयी। इसका विरोध तो भरत का लक्ष्मण करेगा ही। हमारे देश में संस्कृत के महान नाटककार कालिदास क्या किसी से कम है। अभिज्ञान शाकुन्तलम और मेघदूत की मिसाल किसी साहित्य के नाटक में नहीं मिलती । बादलों के माध्यम से संदेश भेजने की कल्पना ने ही दूर संचार की मोबाइल सुविधा दुनिया भर को दी है तब फिर हमारे कालिदास से शेक्सपीयर श्रेष्ठ कैसे हो गये। इतिहास की इस तरह की भ्रांतियाँ भी सुधारना है। इसीलिए शिक्षा व्यवस्था को आमूल-चूल बदलने की जरूरत है।

भारत जैसा प्रजातंत्र दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं है। लार्ड मैकाले ने हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक आस्था पर चोट करने का काम किया। इस वर्ष 26 जनवरी को वसंत पंचमी के दिन देश में नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों को सही इतिहास पढ़ाया जाएगा। ये बातें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, जमुहार में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सह संगोष्ठी के दूसरे दिन 27 दिसम्बर को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहीं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इतिहास को सुधारने का मौका देती है। केवल जोरावर सिंह, फतेह सिंह ही भारतीय नायक नहीं, बल्कि भारत के हर जिले में नायकों के उदाहरण मिल सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा को प्रमुखता दी गई है। जब तक मातृभाषा को प्रमुखता नहीं दी जाएगी, तब तक बच्चों को सही तरीके से शिक्षा नहीं दी जा सकती।राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत संबंधित अध्ययन को बढ़ावा देने का काम किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए शिक्षा में नयी तकनीक के प्रयोग की जरूरत है। विश्व के 140 देशों को हमने करुणा का संदेश दिया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हुए कहा कि अब प्रतिरोध का जमाना चला गया। 500 करोड़ वैश्विक नागरिकों का केंद्र बिंदु भारत है। 7000 वर्ष पूर्व मूर्ति बनने का प्रमाण इसी इलाके में मिला है। प्रधान ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी पूंजी इतिहास और शिक्षा है। अब तक इतिहास को गलत तरीके से लिखा गया। अब भारत सरकार पूरी ताकत के साथ नए और सही इतिहास को लिखने की दिशा में प्रयासरत है। इस दिशा में इतिहास अनुसंधान परिषद व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा बहुत ही सराहनीय कार्य किया जा रहा है।

केंद्रीय शिक्षा व कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इससे पहले यह भी कहा था कि उच्च शिक्षा की किताबें 12 भारतीय भाषाओं के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं में भी मिलेंगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इनका अनुवाद कराएगा। वह केंद्र सरकार की आदिवासी कल्याण योजनाओं के बारे में चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत स्थानीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसका लाभ आदिवासी समुदाय को भी मिलेगा। प्रधान ने कहा, एनसीईआरटी की स्कूली शिक्षा और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रथम वर्ष की किताबें जनजातीय भाषाओं में उपलब्ध कराने पर काम तेजी से जारी है। दो जनजातीय विश्वविद्यालय भी शुरू किए जा चुके हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जनजातीय समुदाय के उगाए पोषक अनाज (मिलेट्स) को केंद्र सरकार जी-20 की बैठक में प्रमुख भोजन के तौर पर परोसेगी। इससे पोषक अनाज की ब्रांडिंग होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा, पीएम मोदी के प्रयासों से ही संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। प्रधान ने कहा कि मोटे अनाज के कई पोषक गुण हैं। इसकी ब्रांडिंग केंद्र करेगा, जिसका सीधा लाभ आदिवासी समुदाय को होगा। प्रधान ने कहा कि पीएम अपने मेहमानों को पोषक अनाज से बना खाना खिलाते हैं।

प्रधान ने कहा, मोदी सरकार ने आदिवासी कल्याण के लिए बजट में काफी वृद्धि की है। वर्ष 2014 में करीब 19000 करोड़ बजट का प्रावधान किया जाता था, जो आज 91 हजार करोड़ से अधिक हो गया है। सरकार ने बिरसा मुंडा जयंती को आदिवासी गौरव दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया। साथ ही देश भर में 10 आदिवासी म्यूजियम भी खोले जा रहे हैं।

आदिवासी बाहुल्य 34,628 गांव बुनियादी सुविधाओं से जोड़ेंगे ।केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी समुदाय से आती हैं। पीएम के प्रयासों से आदिवासी नायकों को नई पहचान मिली है। पीएम आदर्श ग्राम योजना के तहत 50 फीसद से अधिक आदिवासी आबादी वाले 34,628 गांवों को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ा जाएगा। इन बुनियादी सुविधाओं में शिक्षा और देश के सही इतिहास की जानकारी भी शामिल है। (हिफी)

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