मौत का दरवाजा बनती सीवर की सफाई!

मौत का दरवाजा बनती सीवर की सफाई!

नई दिल्ली। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़े बहुत भयभीत करने वाले हैं तथा इस गंभीर समस्या की भयावहता की ओर इशारा करते हैं। इनकी रिपोर्ट बताती है कि 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई। आंकड़ों के अनुसार, 2019 में सीवर की सफाई के दौरान 110 लोगों ने जान गंवाई। इसी तरह 2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं।

एक बार फिर सीवर को लेकर हादसा सामने आया है फरीदाबाद के एक अस्पताल के सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस के कारण दम घुटने से चार सफाई कर्मियों की मौत हो गई। ये सभी मृतक दिल्ली के दक्षिणपुरी में संजय कैंप के निवासी थे, जो संतोष एलाइड सर्विस नाम की एजेंसी के माध्यम से फरीदाबाद सेक्टर 16 के क्यूआरजी अस्पताल में सीवर की सफाई के लिए आए थे। मृतकों के नाम रोहित, उसका भाई रवि, विशाल और रवि गोल्डर है। मैनुअल स्कैवैजिंग एक्ट 2013 के प्रावधानों के तहत मल जलयुक्त सीवर में घुसकर हाथों से सीवर की सफाई कराना पूरी तरह कानूनन निषेध है। इसके बावजूद यह सिलसिला जारी है। मौजूदा हादसे में भी सीवर में श्रमिकों को उतारकर सीवर की सफाई करायी जा रही थी। पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि चारों सफाई कर्मियों ने बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सफाई के लिए मैनहोल में प्रवेश किया था। इस दौरान, जहरीली गैस में सांस लेने के बाद उनका दम घुट गया और वे बेहोश हो गए।जब वे मदद के लिए चिल्लाए, तो उनके सहयोगी और अस्पताल के कर्मचारी मौके पर पहुंचे। चारों को बाहर निकाला गया और अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन डॉक्टरों ने चारों को मृत घोषित कर दिया। मामले की जांच की जा रही है। जिम्मेदार पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बताया जाता है कि हादसे में मरने वाले हर महीने काम के लिए अस्पताल आते थे। उधर, अस्पताल प्रबंधन ने पूरे प्रकरण से दूरी बनाते हुए कहा कि सीवर सफाई सेवाओं में लगी एजेंसी घटना के लिए जिम्मेदार है।

इस से पहले हाल ही में 9 सितंबर को भी दिल्ली में सीवर की सफाई करते हुए एक दर्दनाक हादसा हुआ था। मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली के मुण्डका बक्करवाला लोकनायक पुरम इलाके में सीवर की सफाई के लिए 5 सफाई कर्मी गए हुए थे। इसी दौरान सीवर की सफाई करते हुए पांचों कर्मचारी गैस की चपेट में आ गए।इस घटना में दो कर्मचारियों की दर्दनाक मौत हो गई थी। दिल्ली ही नही देश के सभी सूबों में इस तरह के हादसे घटित हो रहे हैं जिनमें बेचारे सफाई कर्मचारी सीवर सफाई के दौरान बेमौत मारे जा रहे हैं।

अभी मार्च माह में लखनऊ में सआदतगंज के गुलाब नगर में तीन सफाईकर्मी सीवर में उतरे थे। इनमें से दो की मौत हो गई।बताया जाता है कि इन कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवर में सफाई के लिए उतार दिया गया था। इनके पास न तो कोई सुरक्षा उपकरण थे न अन्य साजो-सामान। ऑक्सिजन की कमी के चलते दो कर्मचारियों मौत हो गई। इसी दिन लखनऊ की इस घटना से पहले रायबरेली शहर में मनिका रोड पर अमृत योजना के तहत निर्मित सीवर लाइन की सफाई के दौरान दो श्रमिकों की मौत हो गई। ये मैनहोल में सफाई करने के लिए उतरे थे। इस दौरान जहरीली गैस से वो बेहोश हो गए। सीवर से जब तक इन्हें निकाला गया तब तक इनकी मौत हो गई थी।

हर साल सैकड़ों की संख्या में सीवर सफाई करते सफाई कर्मचारियों की पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं होने व बिना उपकरणों के बिना आक्सीजन बंदोबस्त के सीवर में उतरने के कारण मौत हो रही हैं। यह मामला अब बहुत गंभीर समस्या बन चुका है सिर्फ सीवर सफाई ही नहीं छोटे बड़े कारखानों में भी सेफ्टी टैंक की सफाई के दौरान अनेक कर्मचारियों की दम घुट कर मौत हो रहीं हैं।

सीवर सफाई के संबंध में मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत सीवर में सफाई के लिए किसी भी व्यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है। एक्ट में इस पर रोक का प्रावधान है। किसी खास स्थिति में अगर व्यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। मसलन, जो व्यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्पेशल सूट, मास्क, सेफ्टी उपकरण इत्यादि देना जरूरी है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़े बहुत भयभीत करने वाले हैं तथा इस गंभीर समस्या की भयावहता की ओर इशारा करते हैं। इनकी रिपोर्ट बताती है कि 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई। आंकड़ों के अनुसार, 2019 में सीवर की सफाई के दौरान 110 लोगों ने जान गंवाई। इसी तरह 2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं।

यहां बता दें कि सीवर सफाई के दौरान हो रहे हादसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई थी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने तब कहा था कि कोई भी देश अपने लोगों को मरने के लिए गैस चौंबर में नहीं भेजता। आजादी के इतने साल बाद भी बिना मशीन के हाथों से सफाई जारी है। यह दिखाता है कि देश में भेदभाव बना हुआ है। सभी बराबर हैं। लेकिन, सरकारें बराबर सुविधाएं नहीं दे रही हैं। दिल्ली और हरियाणा कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है। हालांकि, ऐसी व्यवस्था पूरे देश में नहीं है। सबसे चिंता जनक बात यह है कि आज कल संविदा पर बजरिया मध्यस्थ एलाइड एजेंसी के सफाई कराने का सिलसिला चल पड़ा है। ज्यादातर नगर निगम नगर पालिका ठेका देकर सफाई करा रहे हैं। ये ठेका पर काम करने वाली एजेंसी सफाई कर्मियों की जान की परवाह किए उन्हें कोई उपकरण व आक्सीजन के साधन मुहैया नहीं करा रहे हैं और उनकी जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। मुझे याद आ रहा है कि पिछले कुम्भ मेला पर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफाई कर्मचारी के चरण धोकर सफाई कर्मियों के काम व उनकी निष्ठा के प्रति सम्मान जताया था लेकिन क्या इतना कर वाहवाही लेना पर्याप्त है। क्या पीएम व उनकी सरकार को सफाई कर्मियों की असमय काल कलवित हो रही जिन्दगियों को बचाने के लिए ठोस पहल नहीं करनी चाहिए? (हिफी)

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