निर्मला नहीं सुलझा पा रही GST विवाद

निर्मला नहीं सुलझा पा रही GST विवाद

नई दिल्ली। जीएसटी धारा 10 के मुताबिक, राज्यों को कंपेनसेशन फंड से पैसे मिलने चाहिए। इसके लिए कर्ज नहीं लिया जा सकता है। स्वयं एटॉर्नी जनरल ने कहा है कि पाँच साल के संक्रमण काल में राज्यों को मुआवजा मिलना ही चाहिए। जीएसटी परिषद की बैठक में वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था सुधारने पर जोर दिया और बताया कि किस तरह केंद्र सरकार इसके लिए मांग व खपत बढ़ाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सोमवार को ही एलान की गई केंद्रीय स्कीमों का हवाला दिया और कहा कि इससे जीएसटी राजस्व भी बढ़ेगा।

जीएसटी पर राज्य मचल गये और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भले ही यह कहें कि जीएसटी के मुद्दे पर केंद्र और राज्यों के बीच कोई विवाद नहीं, सिर्फ विचारों की भिन्नता है, सच लेकिन यह है कि विवाद है जो दिनोंदिन गहराता ही जा रहा है। यह विवाद सिर्फ आर्थिक मुद्दे पर नहीं है, यह राज्य-केंद्र रिश्ते और संविधान के संघीय ढाँचे की अवधारणा से मेल नहीं खाने के कारण भी है। मामला राजनीतिक भी है। बीजेपी और गैर-बीजेपी राज्य जीएसटी के मुद्दे पर अलग-अलग रुख अपना रहे हैं। गैर बीजेपी राज्य केंद्र को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार अपने पहले के स्टैंड से टस से मस नहीं हो रही है। जीएसटी परिषद की बैठक में गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया कि वे जीएसटी मुआवजा की रकम के बदले बाजार से कर्ज लें। इन राज्यों ने जोर देकर कहा कि यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जीएसटी की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई करे। ऐसा नहीं करना जीएसटी कानूनों का उल्लंघन है।

निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर राज्यों को दो विकल्प दिए। एक वे 97,000 करोड़ रुपए की रकम, जो उन्हें जीएसटी मुआवजे के रूप में इस साल मिलनी चाहिए थी, बाजार से ले लें। दूसरा विकल्प यह है कि वे चाहें तो जीएसटी में कमी की पूरी रकम 2.35 ट्रिलियन रुपए बाजार से उगाह लें। इसमें जीएसटी के अलावा कोरोना महामारी और दूसरी केंद्रीय योजनाओं के मद में मिलने वाले पैसे भी हैं। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि पहला विकल्प चुनने पर कंपेनसेशन सेस से पैसे दिए जाएंगे जो 30 जून, 2022 के बाद भी बरकरार रहेंगे। लेकिन इसमें सिर्फ मूल रकम दी जाएगी, केंद्र ब्याज नहीं देगा। लेकिन सवाल है कि ब्याज कौन देगा। राज्यों ने ब्याज देने से इनकार कर दिया है। केरल के वित्त मंत्री ने सवाल उठाया कि केंद्र सरकार बाजार से कर्ज क्यों नहीं ले सकती। राज्यों को पैसे देना उसका दायित्व है, लिहाजा, वह बाजार से पैसे लेकर राज्यों को दे। वह चाहे तो बॉन्ड जारी करे। पंजाब समेत तमाम गैर-बीजेपी राज्य इन सुझावों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन बिजनेस स्टैंडर्ड का कहना है कि 21 राज्य इन सुझावों में से एक मानने पर राजी हैं। यदि जीएसटी परिषद में इस मुद्दे पर मतदान हुआ तो केंद्र को अपनी बात मनवाने के लिए कम से कम 20 राज्यों के समर्थन की जरूरत होगी। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल बेहद मुखर रहे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पंजाब के 9,000 करोड़ रुपए बतौर जीएसटी मुआवजा केंद्र के पास हैं और उसे वह पूरी रकम चाहिए।

जीएसटी धारा 10 के मुताबिक, राज्यों को कंपेनसेशन फंड से पैसे मिलने चाहिए। इसके लिए कर्ज नहीं लिया जा सकता है। स्वयं एटॉर्नी जनरल ने कहा है कि पाँच साल के संक्रमण काल में राज्यों को मुआवजा मिलना ही चाहिए। जीएसटी परिषद की बैठक में वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था सुधारने पर जोर दिया और बताया कि किस तरह केंद्र सरकार इसके लिए मांग व खपत बढ़ाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सोमवार को ही एलान की गई केंद्रीय स्कीमों का हवाला दिया और कहा कि इससे जीएसटी राजस्व भी बढ़ेगा। याद दिला दें कि पिछले महीने एक बैठक में 8 राज्यों ने केंद्र की इस सलाह को खारिज कर दिया था कि वे कघ्र्ज ले लें। इस बैठक में पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल, दिल्ली, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान, पुद्दुचेरी के प्रतिनिधि मौजूद थे।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल, तमिलनाडु के ई.के. पलानीस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी लिख कर दो टूक कहा था कि उन्हें हर हाल में पैसे चाहिए।

मोदी को लिखी चिट्ठी में के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि कोरोना महामारी की वजह से उनके राज्य को अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, कम राजस्व उगाही हुई है और राजस्व का कई दूसरा बड़ा स्रोत भी नहीं है। उन्होंने कहा था कि केंद्र के पास तो फिर भी आयकर, कॉरपोरेट टैक्स और कस्टम्स ड्यूटी के पैसे आते हैं, राज्यों के पास तो वह साधन भी नहीं है।

केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने कहा कि केंद्र के लिए उधार लेना बहुत ही आसान है, वह सीधे बाजार से कर्ज उगाह सकता है, यदि उसे ब्याज बढ़ने का डर है तो उस कर्ज को मोनेटाइज कर दे, जो आसान है, सारे देश यही करते हैं।

ध्यान रहे जीएसटी कम्पेनसेशन टू स्टेट्स एक्ट, 2017 के तहत राज्यों को यह गारंटी दी गई है कि जीएसटी लागू करने की वजह से उन्हें जो राजस्व का नुकसान होगा, अगले पाँच साल तक केंद्र उसकी भरपाई करता रहेगा लेकिन इस साल तो राज्यों को अप्रैल से ही इस मद में पैसे नहीं मिले हैं और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और उनके राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर कोई रास्ता भी नहीं खोज पाए। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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