रवि शंकर प्रसाद ने सम्भाली कानून मंत्री के साथ-साथ संचार व इलैक्ट्रोनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की जिम्मेदारी

नई दिल्ली। इन्दिरा गांधी की सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन आरम्भ करने वाले व आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में बिहार में छात्र आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले रविशंकर प्रसाद को मोदी सरकार -2 में कानून मंत्री के साथ-साथ संचार व इलैक्ट्रोनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की जिम्मेदारी भी दी गयी है। इससे पहले रविशंकर प्रसाद मोदी सरकार-1 में कानून मंत्री पद पर रहते हुए अपने कौशल का लोहा मनवा चुके हैं।
रवि शंकर प्रसाद का जन्म बिहार में पटना के एक प्रख्यात कायस्थ परिवार में 30 अगस्त 1954 को हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी०ए०(ऑनर्स), एम०ए०(राजनीति विज्ञान) तथा एलएल०बी० की डिग्रियाँ लीं। उनके पिता ठाकुर प्रसाद पटना उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित वकील थे तथा तत्कालीन जनसंघ (वर्तमानकाल में भाजपा) के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। उनका विवाह 3 फरवरी 1982 को डॉ॰ माया शंकर के साथ हुआ। वे पटना विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर हैं। रवि शंकर प्रसाद कई वर्षों तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़े रहे और संगठन में विभिन्न पदों पर आसीन रहे। छात्र जीवन में वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव और विश्वविद्यालय की सीनेट तथा वित्त समिति, कला और विधि संकाय के सदस्य रह चुके हैं।
रवि शंकर प्रसाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक पेशेवर वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। उन्होंने 1980 में पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की थी। पटना उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा उन्हें वर्ष 1999 में वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया। 2000 में उनका नामांकन सर्वोच्च न्यायालय में हुआ। बिहार के पूर्व मुख्य मन्त्री और पूर्व केंद्रीय रेल मन्त्री लालू प्रसाद यादव के विरुद्ध चारा और तारकोल घोटाले में जनहित याचिका पर बहस करने वाले वे प्रमुख वकील थे। वे पटना उच्च न्यायालय में पूर्व उप प्रधान मन्त्री लालकृष्ण आडवाणी के वकील भी रहे। उन्होंने बड़ी संख्या में सार्वजनिक, निजी एवं कार्पोरेट निकायों के मुकदमे लड़े हैं। वे रेलवे, बेनेट एण्ड कोलमैन, डाबर आदि प्रमुख संगठनों के न्यायिक मुकदमे भी संभालते रहे हैं। रवि शंकर प्रसाद बिहार बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड के वरिष्ठ वकील रहे हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन मामला, टी०एन० थिरुमपलाड बनाम भारत संघ, रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (बिहार विधान सभा भंग मामला) तथा भारत में चिकित्सा शिक्षा पर प्रो॰ यशपाल का मामला, उनके द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक मामलों में से हैं। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में लम्बे समय से चल रहे अयोध्या मुकदमे के तीन अधिवक्ताओं में से प्रसाद भी एक थे।
रवि शंकर प्रसाद वर्षों तक भाजपा की युवा शाखा तथा पार्टी संगठन में राष्ट्रीय स्तर के उत्तरदायित्व संभालते रहे हैं। सन् 2000 में वह सांसद बने और सन् २००१ में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला एवं खान राज्य मंत्री बने।
रवि शंकर प्रसाद को 1 जुलाई 2002 मे विधि एवं न्याय मन्त्रालय में राज्य मन्त्री का अतिरिक्त भार दिया गया था। कार्यभार संभालने के एक पखवाड़े के अन्दर उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन हेतु एक विधेयक तैयार किया और फास्ट ट्रैक अदालतों की प्रक्रिया को गति दी थी। सूचना एवं प्रसारण राज्य मन्त्री के रूप में उन्होंने रेडियो, टेलीविजन और एनिमेशन क्षेत्र में सुधारों तथा गोवा में भारतीय अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के केन्द्र की स्थापना की शुरुआत की थी। अप्रैल 2002 में, उन्हें भारतीय शिष्टमण्डल के नेता के रूप में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) गुट निरपेक्ष मन्त्रिस्तरीय बैठक में भाग लेने के लिए भेजा गया था। इसके बाद उन्हें गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के मन्त्रिस्तरीय प्रतिनिधिमण्डल में भारतीय सदस्य के रूप में रामल्ला में फिलिस्तीनी नेता स्वर्गीय यासिर अराफात से मिलकर उनके साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भेजा गया। उन्हें राष्ट्रमण्डल कानून मन्त्री शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए था। भारतीय शिष्टमण्डल के नेता के रूप में सेण्ट विंसेन्ट (वेस्टइण्डीज) भेजा गया। उन्होंने कान, वेनिस और लन्दन फिल्म समारोहों में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व भी किया है। अक्टूबर 2006 में उन्हें न्यूयॉर्क में हुई 61वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ भेजा गया था।
रवि शंकर प्रसाद 2006 में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने और अप्रैल 2006 में बिहार से राज्य सभा के लिए पुनः सांसद चुने गए। 2007 में उन्हें फिर भारतीय जनता पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया। पिछले 10 वर्षों से वे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वे विभिन्न संसदीय समितियों के भी सदस्य हैं। हाल ही में वे उत्तरांचल विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रभारी थे। 2009 में लोकसभा के लिए चुनाव अभियान में उन्होंने विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर भाजपा की स्थिति प्रस्तुत की है। वे बातचीत में बहुधा यह वाक्य दोहराते हैं-लेट मी टेल यू माई गुड फ्रेड! (मेेरे अच्छे दोस्त! मुझे भी बताने दीजिए।)