आज ही के दिन 1869 में हुआ था आजादी कि दीवाने वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म

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भारत की आजादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून 1869 को महाराष्ट्र में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर भी भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गये हैं। चापेकर बंधु बालगंगाधर तिलक को गुरुवत सम्मान देते थे।

वर्ष 1897 पुणे में प्लेग जैसी महामारी फैल गयी और इस बीमारी ओट में कमिश्नर मि. रेन्ड खूब अत्याचार करने लगा था। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई थी। सारे महाराष्ट्र में असंतोष के बादल छा गए थे। इसकी बाल गंगाधर तिलक व आगरकर आलोचना की, तोे उन्हें जेल में डाल दिया गया। तिलक जी को जब गिरफ्तार किया गया, तो दामोदर बहुत रोये। उन्होंने खाना भी नहीं खाया। इस पर उसकी माँ ने कहा कि तिलक जी ने रोना नहीं, लड़ना सिखाया है। दामोदर ने माँ की वह सीख गाँठ बाँध ली थी। और उन्होंने संकल्प लिया कि इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों को छोड़ेंगे नहीं और उन्हें वह अवसर जल्द ही मिल गया। उन्हीं दिनों पूना के गवर्नमेन्ट हाउस में महारानी विक्टोरिया का 60वाँ राजदरबार बड़े समारोह के साथ मनाया गया। 22 जून 1897 को जिस समय मि. रेन्ड अपने एक मित्र के साथ उत्सव से वापस आ रहा था, इसी मौके का फायदा उठाकर दामोदर हरी चापेकर और बालकृष्ण चापेकर ने रेन्ड को गोली मार दी थी, जिससे चापेकर बंधुओं को वहीं से गिरफ्तार कर लिया गया।

अदालत में चापेकर बंधुओं पर एक और साथी के साथ अभियोग चलाया गया और सारा भेद खुल गया। एक दिन जब अदालत में चापेकर बंधुओं की पेशी हो रही थी तो उनके तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने वहीं पर उस सरकारी गवाह को मार दिया, जिसने दामोदर और बालकृष्ण को पकड़वाया था।

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