आज के ही दिन 1868 में हुआ टाइपराइटर का पेटेंट

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टाइपराइटर एक यन्त्र है, जिसका प्रयोग कागज पर कोई पाठ टाइप करने के लिये किया जाता है। आज टाइपराइटर बीते जमाने की मशीन बनकर रह गयी हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लेखन, मुद्रण और प्रकाशन में जो योगदान टाइपराइटर का है, उसे कम करके नहीं आंका जा सकता है। आज हम भले ही कंप्यूटर के कीपैड या फिर मोबाइल के स्क्रीन्स पर खिटपिट कर रहे हों, लेकिन आज से कुछ साल पहले तक सारे काम टाइपराइटर पर हुआ करते थे। साल 1868 में 23 जून के रोज ही टाइपराइटर का पेटेंट किया गया था और 1873 में पहले टाइपराइटर की बिक्री हुई थी।

साल 1802 से 1870 के बीच कई लोगों ने ऐसे डिवाइस तैयार किए, जो कागज पर अक्षर छाप सकते थे। यह शोल्स, कार्लोस ग्लिडन और सैमूअल डब्ल्यू सोल का आविष्कार था, जो कॉमर्शियल तौर पर कामयाब डिवाइस बना। साल 1868 में 23 जून को अमेरिका ने क्रिस्टोफर लाथम शोल्स के टाइपराइटर को पेटेंट दिया था। इस डिवाइस को टाइपराइटर का नाम दिया गया। यह पहली मशीन थी, जिसमें क्वर्टी की-बोर्ड लेआउट लगा था। इसे सबसे पहले रेमिंगटन एंड संस ने बनाया, जो तब सिलाई मशीन बनाने के लिए जाने जाते थे।

1930 के दशक में बाजार में हिन्दी टाइपराइटर आया था। हिन्दी टाइपराइटर का विकास अत्यंत जटिल कार्य था। कारण यह कि देवनागरी के अनेक चिह्न येन-केन प्रकारेण 26 कुंजियों पर ही व्यवस्थित करने थे। इसके अतिरिक्त टाइपराइटर मैकेनिकल होने के कारण कम्प्यूटर की तरह न तो मात्राओं को खुद ही जोड़ सकता था, न वर्ण-क्रम के अनुसार संयुक्ताक्षर बना सकता था, अतः सभी चिह्नों, मात्राओं, संयुक्ताक्षरों के लिये अलग से कुंजियाँ याद रखनी पड़ती थी। इस कारण टाइपराइटर का लेआउट अत्यंत जटिल हो गया, परन्तु उस समय हिन्दी टाइप करने का केवल यही एक साधन था।

अंग्रेजी का मानक टाइपराइटर क्वर्टी लेआउट आधारित है। यद्यपि अंग्रेजी के लिये कई सारे लेआउट समय-समय पर बनाये गये, परन्तु समय के साथ क्वर्टी ही मानक बन गया। कम्प्यूटर के आविष्कार के पश्चात कीबोर्ड भी क्वर्टी लेआउट पर ही बने।

कम्प्यूटर पर यूनिकोड प्रणाली लागू से पहले उसके लिये नॉन-यूनिकोड फॉण्ट इसी लेआउट पर आधारित बनाये गये, परन्तु यूनिकोड के आने के बाद प्रचालन तन्त्र में स्क्रिप्ट प्रोसैसिंग इंजन के द्वारा मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों आदि को स्वचालित रूप से प्रकट करना संभव होने से सरल इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड बनाया गया। इसमें मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों आदि को अलग से याद नहीं रखना पड़ता। अतः हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के लिये इसे ही मानक बनाया गया।

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