आज ही के दिन 1564 में शहीद हुई थी रानी दुर्गावती

आज ही के दिन 1564 में शहीद हुई थी रानी दुर्गावती
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जबलपुर से कुछ किलोमीटर दूर एक गांव है बरेना। बरेना में श्वेत पत्थरो की एक समाधि बनी हुई है। वह समाधि देश की स्वतंत्रता पर बलिदान होने वाली वीर रानी दुर्गावती की है। जो भी मनुष्य उस ओर से निकलता है, वह समाधि के सामने मस्तक झुकाए बिना आगे नही बढता। वह मस्तक झुकाकर समाधि के पास एक श्वेत पत्थर भी रख देता है। समाधि के पास अनगिनत श्वेत पत्थर रखे हुए है। जो श्रद्धालु मनुष्यों की श्रद्धा के प्रतीक है।

अनन्य देशभक्त वीर रानी दुर्गावती ने अपने देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक युद्ध किया। रण के मैदान में जब उन्होने देखा कि उनका शौर्य कुछ काम न दे सकेगा तो उन्होने आज ही के दिन 1564 को अपनी ही कटार से आत्महत्या कर ली। उनके शौर्य और उनके साहस को देखकर मुगल सम्राट अकबर का सेनापति आसफ खां भी विस्मित हो उठा था। उसने दांतो तले उंगली दबाते हुए विस्मय भरे स्वर में कहा था कि कोई नारी भी इतनी शूरवीर हो सकती है, मैने तो सोचा तक नही था।

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को बांदा जिले के कालिंजर किले में महोबा के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की पुत्री के रूप में हुआ था, वे अपने पिता की एकमात्र संतान थीं। रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी। दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी। उनका विवाह गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी के पुत्र दलपत शाह मडावी से हुआ था। विवाह के एक वर्ष पश्चात् दुर्गावती का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। जिस समय वीरनारायण केवल तीन वर्ष का था, राजा दलपतशाह का निधन हो गया और पुत्र वीर नारायण को गद्दी पर बैठाकर रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था।

मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। अकबर भी रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती ने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये, लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी ने अपने को कमजोर महसूस करते हुए अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। युद्ध करते समय एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका, लेकिन दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अपना अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में रानी दुर्गावती 24 जून 1564 को अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर राज्य पर बलिदान हो गयीं।

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