आज ही मनाया जाता है अन्तर्राष्ट्रीय विधवा दिवस

आज ही मनाया जाता है अन्तर्राष्ट्रीय विधवा दिवस
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आज के दिन 23 जून को अन्तर्राष्ट्रीय विधवा दिवस पूरे विश्व में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह दिवस विधवा महिलाओं की समस्याओं के प्रति समाज में जागरुकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। यह दिवस विधवाओं की स्थिति पर प्रकाश डालता है, जिससे पता चलता है कि उन्हें समाज में किस प्रकार की उपेक्षा एवं दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर नागरिक समाज संगठन भी समाज के इस उपेक्षित वर्ग की अनदेखी करते हैं। सभी उम्र, क्षेत्र और संस्कृति की विधवाओं की स्थिति को विशेष पहचान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र संघ ने 23 जून 2011 को पहली बार अन्तरराष्ट्रीय विधवा दिवस की घोषणा 22 दिसम्बर 2010 को की थी। ब्रिटेन की लूम्बा फाउन्डेशन विश्वभर में विधवाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को लेकर 7 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ में अभियान चला रहे थे। इसी संस्था के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र में विधवाओं के खिलाफ जारी अत्याचारों के आंकड़ों के आधार पर विधवा दिवस घोषित किया था।

जानकारों की मानें तो विधवाओं और उनके बच्चों से दुर्व्यवहार मानव अधिकारों का सबसे गंभीर उल्लंघन और आज के विकास में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। दुनिया की लाखों विधवाओं को गरीबी, बहिष्कार, हिंसा, बेघर, बीमार स्वास्थ्य जैसी समस्याएं और कानून व कस्टम में भेदभाव सहन करना पड़ता है।

एक अनुमान के अनुसार 115 मिलियन विधवाएं गरीबी में रहती हैं और 81 मिलियन शारीरिक शोषण का सामना करती हैं। एक अनुमान के अनुसार 40 मिलियन विधवाएं भारत में रहती हैं। 15000 विधवाएं उत्तर प्रदेश में मथुरा के पवित्र शहर वृंदावन की सड़कों पर अकेले रहती हैं। विधवाओं को समाज से बहिष्कार जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है। विधवाओं एवं उनके बच्चों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार मानव अधिकारों की श्रेणी में गंभीर उल्लंघन है।

सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने हाल ही में भारत में विधवाओं के संरक्षण के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार किया है। संसद के बजट सत्र में वृंदावन में रहने वाली हजारों विधवाओं की साहयता के लिए एक विधवा संरक्षण विधेयक को बनाने की इच्छा व्यक्त की गई। जानकार बताते हैं कि मोक्षनगरी के तौर पर जाने जाने वाले दुनिया के प्राचीनतम जीवित शहर काशी में मौत का इंतजार करती जर्जर काया वाली विधवाओं की अपनी अलग दुनिया है। ऐसी दुनिया, जिससे आंखें चुराकर निकलता यह समाज शायद ही संतोष के साथ शीशे में अपना चेहरा देख सके। काशी में ऐसे कई आश्रम हैं, जहां सैकड़ों विधवाएं 'मोक्ष' का इंतजार कर रही हैं। वे अतीत को भूलना तो चाहती हैं, लेकिन भूल नहीं पातीं। बातें करने पर आंसुओं का जलजला आ जाता है। भजन-कीर्तन में समय गुजारती हैं। अपनों की याद आती है तो किसी कोने में जाकर सिसक लेती हैं।

हालांकि विश्वभर के आंकडों पर गौर करें तो विधवाओं की सबसे ज्यादा हालत भारत में ही है, लेकिन यहां विधवा दिवस को आयोजित करने में सरकारी स्तर पर कोई दिलचस्पी दिखायी नहीं दे रही है। आज जरूरत इस बात की है कि जैस 21 जून को योग दिवस पर सरकार से लेकर प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों से लेकर हर खासोआम एकजुट नजर आया, उसी तरह से विधवाओं का दर्द समेटने के लिए भी सभी एक जुटता से इस कार्य को एक अभियान के रूप में लें, तभी विधवाओं के बारे में कुछ अच्छा होने की उम्मीद की जा सकती है, अन्यथा केवल औपचारिकता भर से कुछ होने वाला नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस के मौके पर देशभर से लगभग 10 हजार विधवाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान, झारखंड और पंजाब की विधवाओं ने पत्र में अपनी समस्याएं पीएम मोदी के समक्ष साझा की हैं। आपको बता दें कि साल 2009 में एकल महिला अधिकारों के राष्ट्रीय मंच ने इस पोस्टकार्ड अभियान का आगाज किया था, जिसके तहत देश भर की विधवाएं पीएम को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस पर पोस्टकार्ड भेजती हैं।

महिला अधिकारों के राष्ट्रीय मंच की संयोजक निर्मल चंदेल ने बताया कि एकल महिलाओं ने पहले भी साबित किया है कि वे न केबल अपना जीवन बेहतर कर सकती हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन कर सकती हैं, इसलिए सरकार को इनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देना होगा। इस पोस्टकार्ड अभियान की आयोजक पारुल चैधरी का कहना है कि प्रधानमंत्री को पत्र लिखने से सरकार इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझेगी।

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