कुछ चौंकाने देने वाली हकीक़त

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डायनामाइट का आविष्कार करने वाले अल्फ्रेड नोबेल ने हथियारों की 90 फ़ैक्ट्रियाँ स्थापित की और हथियारों के कारोबार से भारी मात्रा में धन एकत्र किया। इसके बाद एक घटना हुई जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी को ही बदल दिया।
1888 में उसके भाई की मौत पर कई अखबारों में गलती से अल्फ्रेड नोबेल की मौत की श्रद्धांजलियाँ प्रकाशित हो गयीं। एक फ्रेंच अखबार के श्रद्धांजलि संदेश में लिखा गया कि, "मौत के सौदागर की मृत्यु"। इसमें आगे लिखा था कि, "पहले से कहीं ज्यादा तेज़ी के साथ लोगों को मारने का तरीका खोज कर अमीर बनने वाले अल्फ्रेड नोबेल की कल मौत हो गई" अल्फ्रेड ये खबर पढ़ कर स्तब्ध रह गया और इसके बाद उसने अपने जीवन के बारे में एक सकारात्मक निर्णय लिया। 1895 में पेरिस में स्वीडिश नार्वेजियन क्लब में अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत पर हस्ताक्षर किया और प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार समेत पाँच नोबेल पुरस्कारों को स्थापित करने के लिए अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा समर्पित कर दिया।
ज़िंदगी में मिलने वाले आघात हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। ये विचारशीलता की ऐसी प्रक्रिया को शुरु करता है जिससे एक पूरी तरह नई मानसिकता आकार लेती है और जिसके नतीजे में एक नया मानव व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। अगर आघात लगने से पहले कोई एक आम आदमी था लेकिन इसके बाद की अवधि में वो सुपरमैन बन जाता है।
आघात बड़े हों या छोटे बहुत आम हैं। लगभग हर व्यक्ति को इसका अनुभव होता है। लेकिन ज्यादातर लोग इसे नकारात्मक अनुभव के रूप में लेते हैं और इनसे सबक़ नहीं सीखते हैं। हालांकि आघात एक दुर्घटना नहीं बल्कि आघात प्रकृति की भाषा है। प्रकृति आघात की भाषा में बोलती है। यदि कोई आघात का शिकार होने के बाद नकारात्मक बनने से खुद को बचा लेता है तो ये उसके लिए एक बहुत रचनात्मक अनुभव हो सकता है।
आघात आपके मन को प्रोत्साहित करेगा और आपकी क्षमताओं को बाहर लायेगा। ये आपके अंदर रचनात्मक सोच की प्रक्रिया शुरू करता है। जीवन की पटरी से उतर दोबारा पटरी पर जीवन को लाने पर ये आपको अपने जीवन में बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में ये आपको यथार्थवादी बना देता है।
अगर कोई जीवन में मिलने वाले झटकों को सकारात्मक रूप में ले तो ये किसी के भी जीवन में सबसे बड़ा सकारात्मक कारक हो सकता है। हर कोई अल्फ्रेड नोबेल की तरह प्रेरणादायक बन सकता है और इसके लिए शर्त यही है कि व्यक्ति इन्हें आक्रोश के स्रोत के बजाय इसे सीखने और अनुभव प्राप्त करने के स्रोत के रूप में ले।
ऐसे बहुत से लोगों की मिसालें हैं जिन्हें आघात पहुँचा लेकिन सकारात्मक मानसिकता के साथ उन्होंने इसका सामना किया। ये आघात उनके उत्थान के लिए उत्तेजक साबित हुए।
इसकी एक मिसाल मोहनदास करमचंद गाँधी हैं, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में बीस साल बिताए। जून 1893 में उन्हें प्रिटोरिया, ट्रांसवाल की यात्रा के लिए जाना था, ये ऐसी यात्रा थी जो गाँधी जी को पीटरमैरिट्ज़बर्ग ले गयी। वहाँ पर गाँधी जी प्रथम श्रेणी के डिब्बें में अपनी सीट पर बैठ गये, क्योंकि गाँधी जी ने प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदा था। रेलवे अधिकारियों ने गांधी जी को वैन कम्पार्टमेंट में जाने का आदेश दिया क्योंकि गोरों के अलावा किसी और को प्रथम श्रेणी डिब्बों में बैठने की इजाज़त नहीं थी। गाँधी जी ने आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया, उन्हें सर्दियों की ज़बरदस्त ठंड में धक्का देकर उनके सामान के साथ ट्रेन से बाहर कर दिया गया।
गाँधी जी के साथ जो हुआ वो हिंसा की एक मिसाल थी। इसके बावजूद उन्होंने शांति के लिए संघर्ष करने का फैसला किया। वो भारत लौटे और उन्होंने आंदोलन शुरू किया जिसका आधार अहिंसा था। जल्द ही वो अहिंसक आंदोलन के प्रतीक बन गये।
प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन की यात्रा आसान नहीं है। ये यात्रा आघातों से होकर गुज़रती है। ये एक वास्तविकता है और इसे इसी रूप में स्वीकार करने के अलावा किसी के पास कोई और विकल्प नहीं है। बेशक प्रकृति जिन मार्गों को अपनाती है वो आघातों और चुनौतियों से निर्धारित होते हैं। जो कोई भी खुद को सफल बनाना चाहता है उसे इस सच्चाई को समझना चाहिए और आघातों को जीवन में सीढ़ी मानना चाहिए।
मौलाना वहीदुद्दीन खान

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