इन्ही शख्सियात मे से एक अज़ीम मुजाहिद हैं अल्जीरिया के शैख़ अब्दुल क़ादिर अल जेज़ायरी(रह.)एक अज़ीम मुजाहिद हैं अल्जीरिया के शैख़ अब्दुल क़ादिर अल जेज़ायरी(रह.) और ये तस्वीर उन्ही की है और मैं आज इनका मुख़्तसार सा तारूफ़ पेश कर रहा हू ताकि हम अपने माज़ी की कीयादत और उनकी जुर्रत-ओ-बहादुरी को देख सके और वैसा ही शौक पैदा करे इस उम्मत की सरबुलंदी के लिये जद्द-ओ-जहद और ज़ेहनी फ़िक्र का....
शैख़ अब्दुल क़ादिर 1808 मे पैदा हुये और 21 की उम्र मे हज करने मक्का गये और फिर जब वापस अल्जीरिया आये तो वहाँ1830 मे फ्रांस ने अल्जीरिया पे हमला कर वहाँ क़ब्ज़ा कर लिया था और उस समय अल्जीरिया के ठीक वही हालात थे जैसे हिंदोस्तान मे था यानी की छोटी छोटी रियासते थी जो आपस मे ही लड़ा करती थी ठीक वैसे ही अल्जीरिया मे मुसलमानो के मुख्तलीफ कबीले थे जो एक दूसरे के कट्टर दुश्मन थे और सिर्फ़ आपस मे ही लड़ा करते थे और फ्रांस ने इसी का फ़ायदा उठा के हमला किया और फ़ौरन बेगैर किसी परेशानी के अल्जीरिया पे क़ब्ज़ा कर लिया था....
शैख़ अब्दुल क़ादिर ने सभी कबीलो को इकट्ठा किया और उनके आपसी एख्तिलाफात को ख़त्म कर उन सभी को इस बात पे आमादा कर लिया की वो सब मुत्तहीद हो कर फ्रांस के खिलाफ लड़ेंगे और उन सब ने शैख़ अब्दुल क़ादिर को अपना अमीर चुन लिया.....
आप जानते है की उस समय उनकी उम्र क्या थी...???....
जिस उम्र मे हमारे यहाँ के नौजवानो को इश्क-ओ-आशिकी के भूत सवार होते है शादी और लड़कियो के हसीन सपने आते है उस उम्र शैख़ अब्दुल क़ादिर ने पूरे अल्जीरिया को फ्रांस के खिलाफ जद्द-ओ-जहद के लिये एकजुट कर लिया था जब उन्हे फ्रांस के खिलाफ जिहाद के लिये अल्जीरिया की अवाम द्वारा अमीर चुना गया उस वक़्त उनकी उम्र सिर्फ़ 25 साल थी....
शैख़ अब्दुल क़ादिर ने सबसे पहले एक मस्जिद से फ्रांस के खिलाफ जिहाद का एलान कर फ्रांस की ताक़त से टकरा गये उस समय उनके पास कोई आर्थिक और न ही सैन्य मदद हासिल थी बस वो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के भरोसे फ्रांस से टकरा गये और जल्द ही फ्रांस को उन्होने शिकस्त देनी शुरू की और सिर्फ़ 7 साल के अंदर अल्जीरिया के एक तिहाई से अधिक हिस्से को फ्रांस से आज़ाद करा लिया और जो उन्होने इलाक़ा फ़तेह किया वहाँ इस्लामिक शरीयत नाफीज़ कर उसे दारूल इस्लाम घोषित कर दिया लेकिन फ्रांस ने अपनी पूरी ताक़त वहाँ झोंक दी और बिल आख़िर ये मर्दे मुजाहिद 1849 मे जा कर गिरफ्तार हुआ और फिर उन्हे नज़रबंद कर दिया गया और फिर बाद मे इन्हे रिहा कर दिया गया और बाद मे ये दमिश्क(आज के सिरिया की राजधानी) चले गये और जब 1860 मे माउंट लेबनान सिविल वॉर छिड़ी और ड्रूज़ और ईसाइयो के बीच जंग छिड़ी तो इन्होने अपनी जान पर खेल कर हज़ारो ईसाइयो की जान बचाई और उन्हे पनाह दी ध्यान रहे की ड्रूज़ एक इस्लाम से खारिज फिरका है ये शियो के इस्मायली फिरके से निकले थे.......
जिस शख्स के मुल्क के उपर एक ईसाई देश फ्रांस ने हमला किया और शख्स के खानदान व मुल्क को तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया और जिनके खिलाफ उन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी जद्द-ओ-जहद की लेकिन जब उस धर्म के लोगो पे कही ज़ुल्म हुआ तो ये शख्स चट्टान की तरह ढाल बन गया और उनकी ज़िंदगी के लिये अपनो से दुश्मनी मोल ली जिस धर्म के लोगो ने उस मर्दे मुजाहिद को अपना मुल्क छोड़ने पे मजबूर कर दिया वही शख्स दूसरे मुल्क मे जा कर उस धर्म के खिलाफ उठने वाली तलवारो को अपने सिने पे ले कर उनकी हिफ़ाज़त करता है....
मोबश्शिर एहसान अल अज़ीज़ी