दिल्ली में एलजी की सर्वोच्चता!

दिल्ली में एलजी की सर्वोच्चता!

नई दिल्ली। केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गत 15 मार्च को लोकसभा में एक बिल पेश किया जो तय करेगा कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में चुनी गयी सरकार और नामित उपराज्यपाल को कौन-कौन से अधिकार मिलना चाहिए। माना जा रहा है कि दिल्ली प्रदेश में अब सिर्फ उपराज्यपाल अर्थात् एलजी की ही सरकार चलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनी हुई सरकार को ज्यादा महत्व दिया था। लोकतंत्र में यही उचित भी माना जाता है। यही कारण है कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसका विरोध किया है। सिसोदिया ने कहा कि यदि प्रस्तावित संशोधन कानून नेशनल कैपिटल टेरोटरी ऑफ दिल्ली ऐक्ट 1991 पारित हो गया तो दिल्ली राज्य सरकार का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा।

इस प्रकार देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर अधिकारों की जंग छिड़ गई है। केंद्र सरकार द्वारा संसद में लाए गए एक बिल के कारण राज्य बनाम केंद्र सरकार की स्थिति बन गई है। केंद्र सरकार ने बीते दिन संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक (2021) को पेश किया। इसके अनुसार दिल्ली में उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ जाएंगे।

इसी का विरोध अरविंद केजरीवाल की सरकार कर रही है और इसे राज्य सरकार के अधिकार दबाने वाला बता रही है। केंद्र द्वारा लाए गए इस बिल में क्या है और इस पर आपत्तियां क्यों की जा रही है, इसे समझना जरूरी है। इस बिल के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए हैं, जिनमें उपराज्यपाल के पास कुछ अतिरिक्त अधिकार होंगे, जिनका असर दिल्ली सरकार, विधानसभा द्वारा लिये गए कुछ फैसलों पर दिखेगा। केंद्र द्वारा जो बिल पेश किया गया है उसमें कहा गया है, 'ये बिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को बढ़ावा देता है, जिसके तहत दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियों को बताया गया है।


बिल में कहा गया है, 'राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा। इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार आपत्ति दर्ज कर रही है। बिल में ये भी कहा गया है कि राज्य सरकार, कैबिनेट या फिर किसी मंत्री द्वारा कोई भी शासनात्मक फैसला लिया जाता है, तो उसमें उपराज्यपाल की राय या मंजूरी जरूरी है। साथ ही विधानसभा के पास अपनी मर्जी से कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा, जिसका असर दिल्ली राज्य में प्रशासनिक तौर पर पड़ता हो।

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की ये जंग कोई नई नहीं है। दिल्ली में जब से अरविंद केजरीवाल की सरकार आई है, वक्त-वक्त पर ये विवाद होता रहा है। यही कारण रहा कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और साल 2018 में सर्वोच्च अदालत ने एक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, दिल्ली में जमीन, पुलिस या पब्लिक ऑर्डर से जुड़े फैसलों के अलावा राज्य सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है. हालांकि, दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए फैसले की सूचना उपराज्यपाल को दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद राज्य सरकार ने किसी प्रशासनिक फैसले की फाइल को उपराज्यपाल के पास निर्णय से पहले भेजना बंद किया और सिर्फ सूचित करने का काम किया। इसी को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल में तकरार होती रही थी।


भाजपा और उसके सहयोगी कहते हैं कि दिल्ली सरकार को बिल से क्या आपत्ति है? केंद्र सरकार द्वारा संसद में जो संशोधित बिल पेश किया गया है, उस पर दिल्ली सरकार घोर आपत्ति जता रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत पूरी आम आदमी पार्टी ने मोर्चा खोल लिया है। अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अगर ये बिल पास होता है, तो दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ एलजी होगा और हर निर्णय के लिए एलजी की मंजूरी जरूरी होगी। आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली की जनता ने सरकार को वोट दिया है, न कि उपराज्यपाल को, ऐसे में ये बिल दिल्ली की जनता के साथ धोखा है। आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस पार्टी ने भी अब केंद्र सरकार के बिल का विरोध किया है। कांग्रेस के मनीष तिवारी का कहना है कि अगर ये बिल पास होता है, तो दिल्ली सरकार सिर्फ उपराज्यपाल के दरबार में याचिकाकर्ता होगी।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसी साल 4 फरवरी को उपराज्यपाल को और अधिक अधिकार देने के लिए दिल्ली सरकार के एनसीटी अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी थी। सूत्रों ने बताया था कि गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी दिल्ली ऐक्ट में कुछ संशोधन कर निर्वाचित सरकार को तय समय में ही उपराज्यपाल के पास विधायी और प्रशासनिक प्रस्ताव भेजने का प्रावधान भी है। सूत्रों ने यह भी बताया था कि इनमें उन विषयों का भी उल्लेख है, जो विधानसभा के दायरे से बाहर आते हैं। सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से एलजी के अधिकार को बढ़ाने वाले बिल को इसी सत्र में पारित कराने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली की सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव को कम करने और गवर्नेंस को बेहतर करने के उद्देश्य से ये बिल लाया जा रहा है। इस संशोधन के अनुसार, अब उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले, जबकि प्रशासनिक प्रस्ताव 7 दिन पहले पहुंचाने होंगे। अब वही बिल लोकसभा में पेश हो गया है।

यहां याद रखना होगा कि राष्ट्रीय राजधानी में सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों के बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जनवरी 2019 के फैसले के बाद स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत पड़ी है। बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी के केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते दिल्ली के उपराज्यपाल को कई अधिकार मिले हैं। हालांकि इन अधिकारों को लेकर कई बार दिल्ली की केजरीवाल सरकार विरोध कर चुकी है। यह मसला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों को तय किया था। हालांकि फिर भी कई बार उपराज्यपाल और सरकार आमने-सामने आते रहे हैं।

बीते दिनों दिल्ली दंगों के मामलों में वकील को तय करने को लेकर भी उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार में टकराव की स्थिति पैदा हो गई । इससे पहले दिल्ली के अस्पतालों में बाहर वालों के इलाज पर सरकार ने रोक लगाई थी, मगर उपराज्यपाल ने इस फैसले को पलट दिया था। इसके अलावा भी कई मुद्दों पर एलजी और सरकार के बीच टकराव की स्थिति देखी जा चुकी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गत 15 मार्च को ही 39,742 लोगों को कोरोनावायरस की वैक्सीन दी गई। यह एक दिन में वैक्सीनेशन का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले 13 मार्च को 39,853 को वैक्सीन लगाई गई थी। कुल 29,690 को वैक्सीन का पहला डोज दिया गया। बीते दिन जिन्हें वैक्सीन दी गई उनमें, 60 साल से ज्यादा उम्र के 21,622 लोग, 45-59 साल के 3429 को-मॉर्बीड लोग, 2996 फ्रंटलाइन वर्कर्स और 1643 हेल्थ केयर वर्कर्स थे जबकि 10,052 लोगों को वैक्सीन का दूसरा डोज दिया गया।


22,100 स्लॉट्स प्राइवेट सेंटर्स पर उपलब्ध थे। वैक्सीनेशन के लिए 15,917 लोग पहुंचे। यह कुल उपलब्धता का 72.02 फीसदी है। सरकारी सेंटर्स पर 37,000 स्लॉट्स उपलब्ध थे। वैक्सीनेशन के लिए 23,825 लोग पहुंचे. यह कुल उपलब्धता का 64.39 फीसदी रहा।

बताते चलें कि दिल्ली में पिछले पांच दिनों से कोरोना संक्रमण के औसतन रोज 400 नए मामले सामने आ रहे हैं। गत 15 मार्च शाम जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटों में 368 नए मामले सामने आए हैं। कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 6,44,064 हो गई। दिल्ली में पिछले 24 घंटों में 3 कोरोना संक्रमितों की मौत हुई है। दिल्ली में अब तक कुल 10,944 मरीजों की मौत हुई है। कोरोनाकाल में अच्छा काम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तारीफ की थी। इसके बावजूद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह की पराजय मिली है, केन्द्र सरकार उसे भुला नहीं पा रही है। (हिफी)





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