प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने शिकायत पर तुरंत लिया संज्ञान- फौज़िया हुई भर्ती

प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने शिकायत पर तुरंत लिया संज्ञान- फौज़िया हुई भर्ती

मुज़फ्फरनगर। सरकारी अस्पतालों की बदहाली किसी से छिपी नही है। एक तरफ सरकार और शासन लगातार कोशिश में जुटा है कि अस्पतालों में गरीब आदमी को बेहतर इलाज मिल सके तो दूसरी तरफ डॉक्टर और स्टाफ है कि सरकार की मंशा पर पानी फेरने में जुटा हुआ है। कल भी ऐसा ही एक वाक्या हुआ जब मुज़फ्फरनगर के जिला अस्पताल में एक गरीब की बीमार बेटी को जबरदस्ती डिस्चार्ज कर दिया गया। घर जाकर तबियत फिर खराब हुई तो पिता उसको अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में ले आया लेकिन स्टाफ ने स्पष्ट मना कर दिया कि मरीज भर्ती नही होगा। वो भला हो प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद का जो एक शिकायत मिलने पर उन्होंने तत्काल संज्ञान लिया तो अस्पताल स्टाफ ने फोजिया को दोबारा से अस्पताल में भर्ती कर लिया।

गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर शहर के किदवई नगर इलाके के रहने वाले नफीस की पुत्री फोजिया को सीने में दर्द होने के कारण दिखाई देने में परेशानी , ब्लड में इन्फेक्शन के साथ साथ खांसी के धसके से लगातार परेशान फोजिया को जब ज्यादा परेशानी हुई तो उसके पिता नफीस उसे लेकर 8 अगस्त को मुजफ्फरनगर के सरकारी अस्पताल पहुंच गए। डॉक्टरों से गुहार लगाकर नफीस ने अपनी पुत्री को मेडिकल वार्ड में भर्ती तो करा दिया मगर डाक्टरों के उदासीन रवैये और स्टाफ के भ्रष्ट व्यवहार से उसे सुकून नहीं मिला। 3 दिन से अस्पताल की व्यवस्था से जूझ रहे नफीस को 12 अगस्त को तब हैरानी हुई जब उसकी बेटी की तबीयत खराब होने के बाद भी उसको जबरदस्ती डिस्चार्ज कर दिया गया। पिता नफीस डॉक्टरों की मनुहार करता रहा कि मेरी बेटी की तबीयत ठीक नहीं है, आप इसका इलाज जारी रखो। मगर कोई सुनने को तैयार नहीं था। ऐसे में नफीस ने अपने एक परिचित पत्रकार को फोन कर अपनी बेटी के इलाज में मदद मांगी। उसके परिचित पत्रकार ने सीएमओ मुजफ्फरनगर को फोन कर उसकी मदद करने को कहा तो अगले दिन फोजिया के पिता को यह कहकर डिस्चार्ज स्लिप थमा दी गई कि तुम शिकायत कर रहे हो। इसकी शिकायत मुजफ्फरनगर के सीएमओ से की गई तो उन्होंने अस्पताल में इलाज की व्यवस्था सीएमएस के जिम्मे बताते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।

12 बजे से 3 बजे तक नफीस अपनी बेटी के इलाज के लिए मनुहार करता रहा मगर डॉक्टर और स्टाफ पर कोई असर नहीं हुआ। सरकारी अस्पताल की व्यवस्था से हताश और निराश नफीस अपनी बीमार बेटी को अपने घर ले आया लेकिन 2 घंटे के दौरान ही उसकी बेटी की तबीयत फिर से बिगड़ने लगी। घबराए हुए नफीस अपनी बेटी को लेकर सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंच कर अपनी बेटी के इलाज की रिक्वेस्ट करने लगे लेकिन इमरजेंसी वार्ड के स्टाफ ने स्पष्ट कर दिया कि तुम्हारी बेटी को आज ही डिस्चार्ज किया गया है, इसको हम भर्ती नहीं करेंगे।

हताश और निराश नफीस ने फिर से अपने परिचित पत्रकार से गुहार लगाई कि मेरे पास इलाज के पैसे नहीं है। मैं सरकारी अस्पताल के अलावा दूसरी जगह अपनी बेटी का इलाज कराने में असमर्थ हूं, आप मेरी मदद कीजिए तब उनके परिचित पत्रकार ने उत्तर प्रदेश शासन में प्रमुख सचिव स्वास्थ्य का दायित्व संभाल रहे, आईएएस अफसर अमित मोहन प्रसाद को व्हाट्सएप पर एक डिटेल भेज कर फोन कर नफीस की मदद की गुजारिश की। कई जिलों में कलेक्टर के रूप में काम करने वाले और मुजफ्फरनगर में भी डीएम की ज़िम्मेदारी संभाल चुके अमित मोहन प्रसाद ने उस शिकायत पर तत्काल संज्ञान लिया तो सरकारी अस्पताल में नफीस की बेटी को दोबारा भर्ती करने के लिए अस्पताल का स्टाफ दौड़ पड़ा और सीएमएस पंकज अग्रवाल ने खुद नफीस से बात कर हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। अब अस्पताल के ज़िम्मेदार नफीस के बेटी फौजिया को मनोरोगी साबित करने की जुस्तजू में है ताकि अगर फिर से आला अफसरों ने यह पूछ लिया कि फौज़िया को क्यों डिस्चार्ज किया गया था तो अब भर्ती क्यों कर लिया तो जवाब दिया जा सके ।

इस पूरे प्रकरण में आईएएस अफसर और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित अमित मोहन प्रसाद की कार्यशैली साबित करती है कि वो जनता की हिमायत के लिए बतौर कलेक्टर ही नही प्रमुख सचिव के तौर पर भी अपनी ज़िम्मेदारी बेहतर ढंग से संभाल रहे है।


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